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दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको जेनेवा समझौता क्या है, किन किन देशो के बीच हुआ और क्या है इसका प्रोटोकॉल।
जेनेवा समझौता क्या है ?
जेनेवा समझौता दो या दो से अधिक देशो के बीच युद्ध काल में कुछ नियमों को निर्धारित करने वाला एक समझौता है, जिसके अनुसार युद्धकाल में भी बंदी बनाये गए सैनिक और असैनिक के साथ मानवीय भावना का ध्यान रखा जाएँ। इस प्रकार यह नियम इस बात का निर्धारण करता है कि युद्धकाल में जब सम्बंधित देशो के सैनिक किसी कारण से दुश्मन देश की सीमा को पार करके चला जाएँ और उसे बंदी बना लिया जाता है तो उसके साथ किसी प्रकार की बर्बरता नहीं होनी चाहिए बल्कि उसके साथ भी सभी प्रकार की मानवीय भावना का ध्यान रखा जाना चाहिए। इस समझौता के अनुसार उस पर अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू हो जाता है और उसे प्रिजनर ऑफ वॉर भी कहा जाता है। इस कानून में कई नियम है इसके अंतर्गत बंदी के साथ सभी प्रकार की मानवीय भावनाओ का ध्यान रखते हुए उसे अपने देश को वापस भेजा जाना आवश्यक है।
जेनेवा समझौता का नियम
स्विट्जरलैंड का एक प्रमुख शहर जेनेवा में एक कानून बनाया गया था जिसके अंतर्गत दो या दो से अधिक देशो के बीच जब युद्ध या युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाए और उस अवधि में कोई सैनिक या नागरिक किसी कारण से दुश्मन देशो की सीमा में प्रवेश करने पर उन्हें बंदी बना लिया गया हो तो उसके साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। यह संधि युद्धकाल में बंदी बनाये गए सैनिक व नागरिक के साथ सभी प्रकार की बर्बरता पर रोक लगाता है और वैसी स्थिति में उन पर अंतर्राष्ट्रीय कानून अर्थात जेनेवा समझौता के तहत सुविधा उपलब्ध कराना अनिवार्य है। ऐसा नहीं करने पर सम्बंधित देशो के कार्य जेनेवा समझौता के विरुद्ध माना जाएगा। वर्तमान में इस संधि पर अब तक 194 देशो ने हस्ताक्षर किये है जिसमे भारत और पकिस्तान भी शामिल है। 1 मार्च, 2019 को पाकिस्तान को भारतीय पायलट विंग कमांडर अभिनन्दन को रिहा करना पड़ा था। यह भारत की राजनैतिक जीत थी। इसमें भारत की मजबूत विदेश नीति के साथ साथ एक कारण जेनेवा समझौता भी था।
जेनेवा समझौता के अनुसार युद्ध काल में यदि दुश्मन देश के सैनिक अथवा नागरिक किसी कारण से सीमा पार चला जाता है और उसे बंदी बना लिया जाता है तो उसके साथ सभी प्रकार की मानवीय भावनाओ का ध्यान रखना अनिवार्य होगा। ऐसी स्थिति में उस पर अंतर्राष्ट्रीय कानून लागू होता है।
जेनेवा समझौता के अनुसार
- दो या दो से अधिक देशो के बीच युद्ध अथवा युद्ध जैसी स्थिति में जब कोई सैनिक किसी कारणवश दुश्मन देश की सीमा में चला जाएँ तो उस सैनिक के साथ किसी प्रकार की अपमानजनक, अमानवीय या भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
- यदि वो घायल अथवा बीमार है तो उसकी चिकित्सकीय देखभाल की जिम्मेदारी सम्बंधित देश की होगी। इसके साथ ही उसके जीवन रक्षा की जिम्मेदारी भी सम्बंधित देश की होगी।
- युद्धबंदी के साथ किसी प्रकार का अत्याचार भी नहीं होना चाहिए। साथ ही उसे डराया, धमकाया भी नहीं जा सकता।
- युद्धबंदी के लिए खाने-पीने का भी उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। यदि उसे चिकित्सा की आश्यकता है तो उसे उचित चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- पकड़े गए सैनिक से केवल उसका नाम, यूनिट, पद एवं नम्बर ही के बारे में ही पूछी जा सकती है।
- लेकिन इस संधि में एक बात यह भी है कि पकड़े गए सैनिक के विरुद्ध सम्बंधित देश मुक़दमा चला सकता है परन्तु ऐसी परिस्थिति में भी उस सैनिक को भी अपने बचाव का अवसर देते हुए आवश्यक क़ानूनी सुविधा देना आवश्यक है।
- युद्ध अथवा युद्ध जैसी स्थिति समाप्त होने पर सैनिक को अपने देश वापस भेजना अनिवार्य है।
- यही नियम दुश्मन देश के आम नागरिक पर भी लागू होता है, जो धोखा से अथवा अन्य कारण से सीमा पार चला गया हो।
जेनेवा समझौता का इतिहास
जेनेवा समझौता युद्ध बंदियों को मानवीय आधार पर सुरक्षा प्रदान करता है। इसका उद्देश्य युद्धकाल में दुश्मन देशो के द्वारा विरोधी देशो के सैनिको के बंदी बनाये जाने की स्थिति में उसके जीवन और उसके सम्मान की रक्षा करता है। जेनेवा समझौते में चार संधिया और तीन प्रोटोकॉल शामिल है, इसके अंतर्गत पहली संधि 1864 में हुई थी। इसके बाद दूसरी संधि 1906 में हुई और तीसरी संधि 1926 में हुई थी। तीसरी संधि के बाद चौथी संधि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1949 में हुई थी जिसमें 196 देशो ने हस्ताक्षर किये है और चौथी संधि ही अब तक लागू है।
जेनेवा समझौता का प्रथम स्वरुप
- पहला जेनेवा समझौता 1864 को हुआ।
- इसमें युद्धकाल में घायल और अस्वस्थ्य सैनिको को सुरक्षा प्रदान करने की बात कही गई।
- इस समझौता में युद्धकाल में चिकित्सा के क्षेत्र में लगे कर्मचारियों व वाहनों, धार्मिक संस्था से जुड़े लोगो को सुरक्षा प्रदान किया गया।
जेनेवा समझौता का द्वितीय स्वरुप
- दूसरा जेनेवा समझौता 1906 में हुआ।
- इस समझौते में विशेषकर समुद्री युद्ध और उससे जुड़े नियमो को इसमें शामिल किया गया।
- इस समझौते का मुख्य केंद्र बिंदु समुद्री क्षेत्रो में कार्यरत लोग थे।
- यह समझौता समुद्री क्षेत्रो में कार्यरत सैन्य कर्मचारियों व अधिकारियों की रक्षा सुनिश्चित करना था।
जेनेवा समझौता का तृतीय स्वरुप
- तीसरा जेनेवा समझौता 1929 में हुआ।
- तीसरा जेनेवा समझौता मुख्य रूप से युद्धकाल में पकड़े गए सैनिको के जान और सम्मान की रक्षा करने वाला था।
- इस समझौता में दुश्मन देशो के द्वारा सैनिको के पकड़े जाने पर उसकी स्थिति और स्थानों का विस्तार से विचार किया गया है।
- इस समझौते में युद्ध बंदियों को उचित और मानवीय उपचार देने की बात कही गई है।
- इस समझौते में इस बात को भी स्वीकार किया गया है युद्ध के समाप्त होते ही बंदियों को बिना देरी के उसे अपने देश भेजना आवश्यक होगा।
जेनेवा समझौता का चौथा स्वरुप
- चौथा जेनेवा समझौता 1949 में हुआ।
- इस समझौते में तीसरे समझौते के कुछ नियमो को संसोधित किया गया।
- इसमें नागरिको की सुरक्षा की बात भी कही गई।
- इस समझौते में युद्धबंदियों के मानवीय अधिकारों का विस्तार से वर्णन किया गया। इसमें सैनिको के साथ साथ नागरिको के अधिकार और उसकी सुरक्षा को और अधिक विस्तार से वर्णन किया गया।
- वर्तमान में जेनेवा समझौता का चौथा स्वरुप ही मान्य है और इसके नियम अब तक जारी है।
- वर्तमान में इसमें 196 देश शामिल है।
जेनेवा समझौता से सम्बंधित मुख्य बिंदु
- जेनेवा, स्विट्जरलैंड का एक प्रमुख शहर है जहाँ युद्धकाल से सम्बंधित कुछ देशो के बीच एक समझौता हुआ।
- यह समझौता युद्धकाल में सैनिक व आम नागरिक के अधिकारों की रक्षा करने के उद्देश्य से हुआ था। इसी को जेनेवा समझौता के नाम से जाना जाता है।
- इस प्रकार जेनेवा समझौता दो या दो से अधिक देशो के बीच युद्ध काल में कुछ नियमों को निर्धारित करने वाला एक समझौता है, जिसके अनुसार युद्धकाल में भी बंदी बनाये गए सैनिक और असैनिक के साथ मानवीय भावना का ध्यान रखा जाएँ।
- यदि युद्धकाल में कोई सैनिक शत्रु देश की सीमा में प्रवेश कर जाता है जो पकड़े जाने की स्थिति में उसे युद्धबंदी माना जाएगा।
- जेनेवा समझौता में युद्धबंदी के मानवीय अधिकारों की रक्षा करता है और
- जेनेवा समझौता के अंतर्गत युद्धबंदियों के जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए कठोर नियम पारित किये गए है।
- इस समझौते के अंतर्गत नियम पारित किये गए है जिससे युद्धबंदियों के साथ कोई बर्बरता न हो और उसके मानवीय अधिकार की रक्षा सुनिश्चित हो।
- युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता है। साथ ही उसे किसी प्रकार से अपमानित नहीं किया जा सकता है।
- बंदी सैनिक के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।
- जेनेवा समझौता में दिए गए अनुच्छेद 3 के अनुसार युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदियों का सही से उपचार किया जाना आवश्यक है।
- युद्धबंदियों के साथ किसी प्रकार अमानवीय व्यवहार नहीं होना चाहिए।
- युद्धबंदियों के खाने-पीने का उचित प्रबंध किया जाना चाहिए। इसके साथ ही उसे जरुरत की प्रत्येक चीजे उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
- इस समझौते में आम लोगो के जीवन की रक्षा की बात भी कही गई है।
- इस संधि में एक विकल्प यह भी है कि युद्ध समाप्ति के साथ ही युद्धबंदियों को तत्काल उसे अपने देश भेजना आवश्यक है।
- जेनेवा समझौता के अन्तर्गत सम्बंधित देश को यह अधिकार देता है कि वो पकड़े गए सैनिको पर मुकदमा चला सकता है मगर ऐसी स्थिति में पकड़े सैनिक को भी अपने बचाव के लिए क़ानूनी सुविधा प्रदान करना आवश्यक है।
- इस समझौते के अंतर्गत पकड़े गए सैनिको से केवल उसके नाम, पद, नम्बर, यूनिट ही पूछा जा सकता है।
- वर्तमान में इस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देशो की संख्या 196 है।
- जेनेवा समझौता का चौथा और अब तक का अंतिम स्वरुप ही मान्य है, जो 1949 में पारित हुआ था।
निष्कर्ष :- तो आज के इस लेख में आपने जाना जेनेवा समझौता क्या है एवं किन देशों के बीच हुआ (Geneva Conventions in Hindi) के बारे में.
FAQ
Q : जेनेवा समझौता कब हुआ?
Ans : सन् 1954 ईस्वी में
Q : जेनेवा समझौता क्या है ?
Ans : दो या दो से अधिक देशो के बीच युद्ध काल में कुछ नियमों को निर्धारित करने वाला एक समझौता है
Q : जेनेवा समझौता किसके बीच हुआ ?
Ans : भारत और पाकिस्तान के बीच
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