मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, कहानियाँ, उपन्यास, (Munshi Premchand Biography In Hindi, stories, award, eassy, books, jeevan parichay, kahani)
जिस प्रकार पाब्लो पिकासो की कलाकृतियां मानव वेदना का जीवांत नजारा दिखाती थी, ठीक उसी प्रकार का सजीव चित्रण एक हिंदी साहित्यकार 20वी सदी में किया करते थे, जिनका नाम मुंशी प्रेमचंद था। इनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, जो बाद में मुंशी प्रेमचंद नाम से जाने गए। वो अपने शब्दों को कुछ इस तरह पिरोते थे, कि वो सब एक साथ मिलकर किसी के भी मन को प्रभावित कर जाते थे। 1903 से 1936 तक का समय हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है क्योंकि इस दौरान मुंशी प्रेमचंद ने स्वयं अपनी लेखनी से हिंदी भाषा का श्रृंगार किया है। मुंशी प्रेमचंद के इसी अद्वतीय योगदान को आज हम मुंशी मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography In Hindi) में विस्तार से जानेंगे।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand Biography In Hindi
नाम (Name) | मुंशी प्रेमचंद |
असली नाम ( Real Name) | धनपत राय श्रीवास्तव |
जन्म तारीख (Date of birth) | 31 जुलाई 1880 |
जन्म स्थान (Place) | लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु तारीख (Date of Death ) | 8 अक्टूबर 1936 |
मृत्यु स्थान (Place of Death) | वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | बीमारी से |
उम्र (Age) | 56 साल (मृत्यु के समय) |
जाति (Caste) | कायस्थ |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
व्यवसाय (Business) | लेखक, उपन्यासकार |
शिक्षा (Educational Qualification) | बी.ए की डिग्री |
नागरिकता(Nationality) | हिंदुस्तान |
राशि (Zodiac Sign) | कन्या |
भाषा (Languages) | हिंदी, उर्दू |
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म और परिवार (Munshi Premchand Birth and Family)
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 18 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही नामक गांव में हुआ था। यह कायस्थ परिवार में जन्मे थे, इनके पिता जी डाक मुंशी थे जिनका नाम अजायबराय था, और इनकी माता आनंदी देवी थी जो कि ग्रहणी थी।
पारिवारिक जानकारी (Munshi Premchand family)
पिता का नाम (Father’s Name) | अजायब लाल श्रीवास्तव |
माता का नाम (Mother’s Name) | आनन्दी देवी |
पत्नी का नाम (Munshi Premchand Wife) | शिवरानी देवी (1895) |
बच्चो के नाम (Child’s Name) | अमृत राय, कमला देवी, श्रीपत राय |
मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा एवं विवाह (Munshi Premchand Education & Marriage)
मुंशी प्रेमचंद के शिक्षा की शुरुआत फारसी भाषा में हुई थी। शुरुआती कुछ साल अच्छे रहे, लेकिन जब वह मात्र 7 वर्ष के थे, तब उनसे मां का आंचल छीन गया और उनकी माता का देहांत हो गया। इसके ठीक 8 वर्ष बाद यानी जब वह 15 वर्ष के थे, तब उनके सर से पिता का हाथ भी उठ गया, यानी 15 वर्ष की आयु तक वह अपने माता-पिता दोनों को खो चुके थे। उनकी जिंदगी को और कष्टमय उनकी सौतेली मां ने बना रखा था। मुंशी प्रेमचंद्र के दो विवाह हुए थे, जिनमें से पहला विवाह तो मात्र उनकी 15 वर्ष में ही हो गया था जबकि दूसरा विवाह 1906 में शिवरानी देवी से हुआ था। पिता का साया उठने के बाद और सौतेली मां का अच्छा व्यवहार ना होने के चलते मुंशी प्रेमचंद्र शिक्षा बीच-बीच में बाधित होती रही, हालांकि उनकी पढ़ाई में बहुत ज्यादा रुचि थी, लेकिन जैसे तैसे करके 1898 में मैट्रिक परीक्षा पास कर लिया। इसके बाद आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के चलते पढ़ाई फिर बीच में बाधित हुई, लेकिन दोबारा पढ़ाई शुरू की और 1910 में अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और इतिहास विषय से इंटर पास कर लिया। इसके बाद 1919 में इन्होंने दर्शन को छोड़ दिया और अंग्रेजी, फारसी और इतिहास विषय के साथ उन्होंने एक बार फिर बी ए का कोर्स पूरा कर लिया। और यहीं से इनकी शिक्षा पूरी हो गई।
मुंशी प्रेमचंद की कार्यशैली
इन्हें पहली नौकरी 1898 में उस वक्त मिली, जब उन्होंने मैट्रिक पास किया था। मैट्रिक पास करते ही इन्हें एक विद्यालय में शिक्षक के तौर पर पढ़ाने की नौकरी मिल गया था। इसके बाद ये पढ़ाई करते रहे पढ़ाई के साथ-साथ आगे पढ़ने के लिए पैसे भी जोड़ते रहे। जैसे ही उन्हें उचित समय लगा, इन्होंने आगे की पढ़ाई शुरू कर दी और इसके बाद बी ए. किया जिसके चलते इनकी नियुक्ति शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर हो गई। लेकिन नौकरी इनकी मंजिल नहीं थी, असल में इनके अंदर एक लेखक था और इसका जन्म बहुत पहले ही हो चुका था। उन्होंने बचपन से ही बहुत परेशानियां देखी थी, सौतेली मां का रुखा व्यवहार ने इनके बाल मन पर एक बहुत गहरी छाप छोड़ी थी, इसके अलावा मजदूर और क्लर्क वर्ग के लोगों की परेशानियों ने भी अंदर तक छुआ था। दर्द को इन्होंने अपनी जिंदगी में इतना ज्यादा महसूस किया था कि शायद इसीलिए दूसरे लोगों के दर्द की व्याख्या बहुत अच्छी तरह कर सकते थे।
मुंशी प्रेमचंद्र शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर बन चुके थे, इसलिए उनकी आर्थिक समस्याओं का समाधान मिलता दिख रहा था। तभी 1921 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया और इस आंदोलन में उन्होंने पूरे देश के लोगों से आवाहन किया कि जो भी व्यक्ति सरकारी नौकरी कर रहे हैं वह छोड़ दें। तब प्रेमचंद ने भी ऐसा ही किया, और 23 जून को नौकरी से त्याग पत्र देकर पूर्ण रूप से लेखक बन गए।
मुंशी प्रेमचंद की लेखनशैली
प्रेमचंद्र को उर्दू भाषा का भी अच्छा गया था इसलिए उनके शुरुआती कुछ लेख उर्दू भाषा में है, पर वहां पर उनका नाम मुंशी प्रेमचंद्र नहीं बल्कि नवाब राय हुआ करता था। इनका पहला लिखित और रचना ज्ञात नहीं है लेकिन ऐसा अनुमान है कि उन्होंने सबसे पहले एक नाटक लिखा था और उस नाटक की पटकथा कुछ इस प्रकार थी कि इनके मामा जी को प्यार हो जाता है और उस प्यार के चक्कर में चमारों के द्वारा उनकी पिटाई कर दी जाती है।
- वैसे इनकी पहली ज्ञात रचना एक उर्दू उपन्यास था, जिसका नाम असरारे मआबिद था, जिसे देवस्थान रहस्य नाम से हिंदी में रूपांतरित किया गया था। इनका दूसरा उपन्यास हमखुर्मा व हमसवाब था, ये भी एक उर्दू उपन्यास था, जिसका हिंदी रूपांतरण प्रेमा था।
- इनकी अगली रचना असल मे कहानियों का एक संग्रह थी, जिसका नाम सोज़े-वतन था, जिसका प्रकाशन 1908 में हुआ था। यह देशभक्ति के भावना से ओतप्रोत रचना थी, इसलिए अंग्रेजो को बिलकुल पसंद नही आई, और इसकी सारी प्रतियां जप्त कर ली।
- इस समय तक मुंशी प्रेमचंद का कार्य नवाब राय के नाम से प्रकाशित होता था, पर अब अंग्रेजों ने इस नाम पर प्रतिबंध लगा दिया, इसलिए इन्होंने अपना नाम बदलकर मुंशी प्रेमचंद कर लिया और इसी नाम से रचनाएं प्रकाशित करने लगे।
- प्रेमचंद नाम से इनकी पहली रचना बड़े घर की बेटी थी, जिसका प्रकाशन 1910 में ज़माना पत्रिका के दिसम्बर वाले अंक में हुआ था। 1915 में उनकी पहली कहानी सरस्वती नाम की एक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी, जिसका नाम सौत था।
- इसके बाद यह सिलसिला रुका नही और 1918 में सेवासदन का प्रकाशन हुआ, जो इनका पहला हिंदी उपन्यास था। इसके पहले मुंशी प्रेमचंद उर्दू में ज्यादा लिखते थे, लेकिन इस उपन्यास की प्रसिद्धि के कारण वो पूरी तरह हिंदी लेखन में आ गए। बहुत कम लोग जानते है कि उनको जितना हिंदी से प्यार था, उतना ही उर्दू भाषा से भी प्यार था, इसलिए 300 से भी ज्यादा हिंदी और उर्दू की रचनाएं प्रकाशित हुई थी।
- 1928 में इन्होंने रंगभूमि नाम का एक उपन्यास लिखा जिसके लिए इन्हें मंगलप्रसाद पारितोषिक सम्मान भी मिला। साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष बनने का अवसर मिला। 1934 में मजदूर नाम की एक फ़िल्म आई थी, जिसकी कहानी भी इन्होंने ही लिखी थी, लेकिन उन्हें बॉलीवुड रास नही आया, इसलिए दोबारा इसके लिए नही लिखा।
मासिक पत्रिकाओं में लेखन
1921 में नौकरी छोड़ने के बाद मर्यादा नामक पत्रिका संपादित करते थे, लेकिन कुछ वक्त बाद बंद कर दिया। इसके बाद माधुरी नामक पत्रिका का संपादन किया, जो 6 वर्षो तक चला। 1926-1928 तक महादेवी वर्मा की मासिक पत्रिका चाँद के लिए भी लिखा। इसमे निर्मला की रचना की, जो कि धारावाहिक उपन्यास था। 1930 में खुद की मासिक पत्रिका हंस का प्रकाशन शुरू किया। 1932 में जागरण नाम के हिंदी साप्ताहिक पत्र का संपादन शुरू किया। इसके बाद अजंता सिनेटोन कंपनी में जो कि मोहन दयाराम भवनानी की कंपनी थी, वहाँ कथा-लेखक का कार्य भी किया था। उनकी मृत्यु के बाद मानसरोवर नाम की एक पुस्तक में उनकी लिखी सभी कहानियां प्रकाशित हुई, इसके 8 भाग है। अपने जीवनकाल में प्रतिवर्ष 8-10 कहानियां लिखा करते थे।
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मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ
सेवासदन – मुंशी प्रेमचंद्र के पहले हिंदी उपन्यास सेवासदन का प्रकाशन 1918 में हुआ था इस उपन्यास के केंद्र बिंदु में भारतीय महिलाएं और उनसे जुड़ी समस्याएं थी जैसे दहेज प्रथा, वेश्यावृत्ति, स्त्री की दूसरे के ऊपर निर्भरता।
प्रेमाश्रम – मुंशी प्रेमचंद्र का किसानों के ऊपर लिखा गया यह पहला उपन्यास था, हालांकि इसकी पृष्ठभूमि भी पहले उर्दू में तैयार की गई थी लेकिन हिंदी में प्रकाशन पहले हुआ। 1922 में प्रकाशित इस उपन्यास में सामंती प्रथा, नौकर पुलिस, जमीदार, आदि को कहानी का हिस्सा बनाकर किसानों की समस्याओं का जीवांत वर्णन किया गया हैं।
रंगभूमि – 1925 में प्रकाशित रचना की कहानी एक अंधे भिखारी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका नाम सूरदास होता है वही इस कहानी का नायक रहता है।
गबन – इसका प्रकाशन 1928 में किया गया था, इसके केंद्र बिंदु में और रमानाथ और उसकी पत्नी जालपा थी। कहानी दफ्तर में गबन के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें रमानाथ की पत्नी के व्यक्तित्व को प्रभावशाली दिखाया गया है।
गोदान – यह आखिरी उपन्यास था, जो किसानों पर केंद्रित था। इसमें एक बार फिर इन्होंने किसानों के जीवन की आकांक्षा, निराशा, देशप्रेम, स्वार्थपरायणता, बेबसी जैसी तमाम इंसानो भावों को अपने शब्दों से कागज पर उकेरा है।
मुंशी प्रेमचंद के लेखन की विशेषताएं
मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की विशेषता यह होती थी कि वह यथार्थवादी विचारधारा के साथ लिखते थे। वह अपनी रचनाओं से समस्याओं को उजागर करने के साथ उनका उचित समाधान दे प्रस्तुत करते थे। इंसानी भावनाओं खासकर दलित, किसान, गरीब, महिला, जिनके ऊपर अत्याचार होता है उनकी भावनाओं को काफी अच्छी तरह लिख सकते थे। मुंशी प्रेमचंद्र शायद ऐसे पहले लेखक थे जिन्होंने राजाओ, भोग विलास, वीरता इत्यादि से हटकर एक आम इंसान के अंदर चल रहे अंतर्द्वंद को इतने सरल शब्दों में लिखा है।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां (Premchand Stories in Hindi)
- पंच परमेश्वर
- ईदगाह
- गुप्त दान
- दो बैलों की कथा
- बड़े घर की बेटी
- दो बैलों की कथा
- पूस की रात
- स्वर्ग की देवी
- बूढ़ी काकी
- आखिरी मंजिल
मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास (Premchand Upanyas)
- रंगभूमि
- सेवासदन
- गब्बन
- गोदान
- कर्मभूमि
- मंगलसूत्र
- गबन
- प्रतिज्ञा
- प्रेमाश्रम
मुंशी प्रेमचंद के अनमोल विचार (Munshi Premchand Quotes in hindi)
मुंशी प्रेमचंद का निधन (Death of Premchand)
हिंदी साहित्य को उस वक़्त एक कभी न पूरे होने वाला नुकसान हुआ जब 8 अक्टूबर 1936 को लंबी बीमारी के चलते उनका निधन हो गया, लेकिन अपनी कहानी, उपन्यास के माध्यम से आज भी मुंशी प्रेमचंद जी हमारे दिलो में मौजूद है।
निष्कर्ष :- तो यह था प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार मुंशी प्रेमचंद बायोग्राफी। उम्मीद है कि आपको मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand Biography In Hindi) का यह पोस्ट पसंद आया होगा। ऐसे ही जानकारी प्राप्त करने हेतु हमारे वेबसाइट पर हमेशा आते रहें।
FAQ
Q : मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब हुआ?
Ans : 31 जुलाई 1880 को
Q : मुंशी प्रेमचंद का जन्म कहाँ हुआ है?
Ans : वाराणसी के लमही गांव में
Q : मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु कब और कैसे हुई?
Ans : मुंशी प्रेमचंद जी की मृत्यु लम्बी बीमारी के चलते दिनांक 8 अक्टूबर 1936 को हुई।
Q : मुंशी प्रेमचंद की अंतिम कहानी कौन सी है?
Ans : मंगलसूत्र
Q : मुंशी प्रेमचंद की कितनी पत्नियां थी?
Ans : मुंशी प्रेमचंद की 2 पत्नियां थी।
Q : प्रेमचंद की सबसे अच्छी कहानी कौन सी है?
Ans : मन्दिर और मसजिद, बड़े घर की बेटी, आभूषण, रानी सारन्धा, सौत, नमक का दरोगा, कामना, प्रायश्चित
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