दीपावली कब और क्यों मनाई जाती है | Diwali Kab Aur Kyo Banai Jaati Haiदीपावली कब और क्यों मनाई जाती है, निबंध, लेख, शायरी, शुभ मुहूर्त (Diwali 2023 Kab Aur Kyo Banai Jaati Hai, Date, Story in Hindi, Importance, Eassy)
Diwali 2023 – दिवाली अन्धकार पर प्रकश की विजय का एक ऐसा त्यौहार है, जिसको सभी पसंद करते है. जिसका वर्ष भर सभी की प्रतीक्षा होती है. दिवाली से पहले घर-द्वार की साफ-सफाई की जाती है, दिवाली के दिन घरो में रंगोली बनाई जाती है, हर ओर दीये से या इलेक्ट्रिक लाइट्स से रोशन किया जाता है, ऑफिस में, कंपनियों में कर्मचारियों को ‘दिवाली-उपहार’ प्रदान किये जाते है, जिसका कर्मचारियों को वर्षो से प्रतीक्षा होती है. घरो में धन व समृद्धि की महादेवी माता लक्ष्मी व विघ्नहर्ता, दुःखहर्ता भगवान श्री गणेश की भक्तिपूर्वक पूजन किया जाता है. इसका कारण यह है कि इस दिन यदि माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद किसी को प्राप्त हो जाता है तो उसे वर्ष भर धन की कमी नहीं होती है. इसलिए दिवाली की रात्रि की माता लक्ष्मी की पूजा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है.
दिवाली भारत में मनाये जाने वाले सबसे बड़े त्योहारों में से एक है. दिवाली भारत सहित विश्व के अनेक देशो में मनाई जाती है. प्रकाश और हर्सोल्लास का पर्व दिवाली की प्रतीक्षा लोग वर्षो से करते है और यह जब आती है तब लोगो के जीवन में भी प्रकाश भर देती है. उपहारों का आदान प्रदान होता है और समूचा माहौल आनंद से भर जाता है. लेकिन दिवाली यूँ ही नहीं मनाई जाती है इसके कई धार्मिक कारण भी है. इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले है दीपावली कब और क्यों मनाई जाती है (Diwali Kab Aur Kyo Banai Jaati Hai) के बारें में पूरी जानकारी.
दीपावली क्यों मनाई जाती है ? (Why Is Diwali Celebrated In Hindi)
दीपावली दो शब्दों ‘दीपा’ और ‘आवली’ के मेल से बना एक शब्द है, जिसका अर्थ है दीपो की श्रृंखला. यह त्यौहार पांच दिनों का होता है. दिवाली प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन मनाई जाती है. इस दिन माँ लक्ष्मी और प्रथम पूज्य देव श्री गणेश जी की पूजा विधि विधान के साथ की जाती है. माँ लक्ष्मी धन-धान्य, सुख-समृद्धि की महादेवी है जबकि श्री गणेश विघ्नहर्ता, दुखहर्ता है. श्री गणेश जी के आशीर्वाद से बिगड़े काम बड़े आसानी से बन जाते है. इसलिए दिवाली की पूजा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. अब यही कारण है कि दिवाली की रात्रि को लोग माता लक्ष्मी की विशेष साधना करते है एवं उनसे धन व सुख-समृद्धि की कामना करते है.
14 वर्ष की वनवास के बाद भगवान राम, माता सीता एवं लक्ष्मण की घर वापसी
दिवाली मनाने का एक सबसे प्रमुख कारण यह है कि इसी दिन भगवान राम 14 वर्ष की कठोर वनवास पूरी करके वापस अपने घर लौटे थे. भगवान राम के साथ उनकी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण भी घर वापस आये थे. इस कारण उनके राज्य में प्रजा की खुशी का ठिकाना नहीं था क्योकि वे सब राम से बहुत स्नेह करते थे. इसी कारण अयोध्या की प्रजा उस संध्या को अपने घर के बाहर दीप जलाकर उनके आगमन का स्वागत किया.
दिवाली पर घर की सजावट कैसे करें
भगवान राम के वनवास का कारण यह था कि जब उनका राज्याभिषेक होने की तैयारी चल रही थी तभी भगवान राम की विमाता कैकेयी की सेविका ने कैकेयी से कहा कि यह उचित नहीं हो रहा है और कैकेयी को इसका विरोध करना चाहिए एवं अपने सगे बेटे भरत की राजगद्दी के लिए राजा दशरथ से कहना चाहिए. भगवान राम की विमाता कैकेयी अपनी सेविका मंथरा के बहकावे में आ गई और उसने राजा दशरथ से राम के लिए 14 वर्ष का वनवास एवं अपने सगे बेटे भरत के लिए राजगद्दी मांग ली.
कहते है राजा दशरथ ने एक बार कैकेयी को वचन दिया था कि वह कुछ मांगे मगर रानी ने तब उनसे कुछ नहीं माँगा था और कहा था कि जब समय आएगा तब वह मांग लेगी और रानी कैकेयी ने उन्ही वचनों के आधार पर राजा दशरथ से राम के लिए वनवास एवं अपने बेटे भरत के लिए राजगद्दी मांग ली. उसी के बाद भगवान राम अपने माता पिता के वचन को सत्य करने के लिए वन की ओर गमन कर गए. उनके साथ उनकी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण भी थे. लेकिन वन में रावण ने सीता का हरण कर उन्हें लंका ले गया. जिसके बाद भगवान राम अपने भाई लक्षण, पवनपुत्र हनुमान एवं सुग्रीव की सेना के सहयोग से लंका पर चढ़ाई कर दिया. भगवान राम का लंकापति रावण के साथ बड़ा भयानक युद्ध हुआ और अंत में भगवान राम ने रावण का कुल समेत अंत कर दिया.
दिवाली पर ऐसे बनाएं रंगोली के डिजाइन
युद्ध में रावण के विनाश के बाद भगवान राम ने रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया और माता सीता व लक्ष्मण के साथ स्वयं वहां से अयोध्या की ओर प्रस्थान कर गए. इस समय उनके साथ हनुमान, सुग्रीव, अंगद एवं अन्य वीर भी अयोध्या में पधारे थे. जिस दिन राम अयोध्या आये थे उस दिन अमावस्या था. इसी कारण प्रजा अपने होने वाले राजा के स्वागत के लिए घर के चौखट एवं गली गली दीप जलाये. तभी से दिवाली मनाई जाने लगी.
इसी दिन भरत की भी घर वापसी हुई थी. क्योकि भले ही उनकी माता ने उनके लिए राजगद्दी मांगकर राम को वनवास दे दिया था मगर भरत महान त्यागी एवं भातृ प्रेम का दूसरा स्वरुप थे. उन्होंने त्याग का आदर्श प्रस्तुत किया और भगवान राम के वन गमन के बाद राम की खड़ाऊ को सिंहासन पर रखकर स्वयं घर छोड़कर तपस्या करने के लिए वन को गमन कर गए थे और इसी दिन भरत भी तपस्या पूरी करके अपने घर लौटे थे. तभी से यह पर्व अंधकार पर प्रकाश के विजय के प्रतिक के रूप में हर्सोल्लास के साथ प्रत्येक वर्ष मनाया जाने लगा.
दिवाली का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण से भी जुड़ा है?
भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर नामक एक महापापी, दुराचारी असुर का अंत किया था. नरकासुर को स्त्री के द्वारा ही मारे जाने का वरदान प्राप्त था. जिस दिन नरकासुर का वध हुआ था उस दिन कार्तिक का कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी. नरकासुर ने सोलह हजार स्त्रियों का अपहरण कर लिया था, जिसको भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करके मुक्त कराया और इसी खुशी में अगले दिन अन्धकार पर प्रकाश की विजय प्रतिक स्वरुप दीपक जलाये गए. अब यही कारण है कि दिवाली से एक दिन पहले की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी के नाम से पुकारा जाता है.
माता लक्ष्मी का सागर मंथन में प्रकट होना
सागर मंथन के बाद माता लक्ष्मी का प्रागट्य होना भी दिवाली का कारण माना जाता है. दिवाली में माता लक्ष्मी की पूजा इसी कारण होती है क्योकि सागर मंथन के बाद वह उसी दिन प्रगट हुई थी. चूँकि माता लक्ष्मी धन व समृद्धि की अधिष्ठत्री देवी है, इसलिए लोग उनकी भक्तिपूर्वक पूजा करके उनसे धन, सुख व समृद्धि की कामना करते है.
दिवाली के लिए ट्रेंडी रंगोली डिजाइन
माँ काली का प्रकट होना
दिवाली से एक घटना और भी जुडी हुई है. घटना यह है कि एक बार माता पार्वती राक्षसों के अन्याय को देखकर अत्यंत क्रोधित गई और उसी के बाद उनका स्वरुप महाकाली का हो गया. जिसके बाद वे कई दिनों तक राक्षसों का वध करती रही, लेकिन एक समय ऐसा भी आ गया जब राक्षसी शक्ति का अंत हो गया मगर महाकाली का क्रोध समाप्त नहीं हुआ और वह उसी क्रोध में ईधर उधर विचरने लगी. इससे सृष्टि का विनाश होने लगा क्योकि इससे निर्दोष प्राणियों के मारे जानें का भय उत्पन्न हो गया था. ऐसी विकट स्थिति देखकर भगवान भोलेनाथ स्वयं महाकाली के मार्ग में लेट गए. इसके बाद जैसे ही महाकाली का पैर भगवान शिव की छाती पर पड़ा वैसे ही उनका क्रोध शांत हो गया एवं पश्चताप में उन्होंने अपनी जीभ को बाहर करते हुए उन्हें दांतो से दबा लिया. इसके बाद वे पुनः पार्वती स्वरुप में आ गई.
इसी कारण उनके रौद्र रूप का बिलकुल विपरीत शांत स्वरुप – ‘देवी महालक्ष्मी’ की पूजा होती है और ठीक उसी के अगले दिन महाकाली की भी पूजा होती है. बिहार, झारखंड आदि क्षेत्र में दिवाली के अगले दिन माँ काली की पूजा मूर्ति की स्थापना करके बड़े ही धूम धाम के साथ मनाई जाती है.
दीपावली कब है 2023 (Diwali 2023 Date Hindi)
वर्ष 2023 की दिवाली 12 नवंबर को है. 10 नवंबर को धनतेरस है जबकि नरक चतुर्दशी व छोटी दिवाली 11 नवंबर है. दिवाली में माँ लक्ष्मी और भगवान श्री गणेश की पूजा प्रदोष काल में होती है. प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद से आरम्भ होता है. इस वर्ष दिवाली पर आयुष्मान और सौभाग्य नाम के दो शुभ योग भी बन रहे है. साथ ही दिवाली की संध्या काल में स्वाति और विशाखा नक्षत्र भी है जो अत्यंत मंगलकारी है. इस वर्ष दिवाली में माँ लक्ष्मी के पूजन का शुभ मुहूर्त संध्या 5 बजकर 40 मिनट से लेकर 7 बजकर 35 तक है. इस बार माँ लक्ष्मी के पूजन के लिए लगभग 2 घंटे है.
निष्कर्ष – आज के इस लेख में हमने आपको दीपावली कब और क्यों मनाई जाती है (Diwali Kab Aur Kyo Banai Jaati Hai) के बारें में बताया. उम्मीद करते है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आयी होगी. अगर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करके जरूर बताइए. अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो रेटिंग देकर हमें प्रोत्साहित करें.
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