Ganesh Chaturthi Essay in Hindi – गणेश चतुर्थी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख त्यौहार है. यह त्यौहार महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली समेत देश भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दिन सुबह से ही चहल पहल होती है. इसी दिन गणपति की प्रतिमा स्थापित की जाती है. जहाँ प्रतिमा की स्थापना की जानी है वहां भी अच्छे से डेकोरेट कर दिया जाता है, जिससे वह स्थान देखते ही बनती है. कई स्थानों पर बड़े बड़े पंडाल बनाये जाते है, जो रंग बिरंगे लाइट्स से जगमग करते है. भक्त यहाँ आकर गणपति के दर्शन करते है और अपने मन की कामनाओं को भगवान के सामने रखते है.
सनातन धर्म के शास्त्रों के अनुसार, गणेश चतुर्दशी के पावन समय में भगवान श्री गणेश (happy ganesh chaturthi) की श्रद्धा से पूजा अर्चना करने से साधना करने वाले को भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है और इससे उन्हें जीवन में सुख, समृद्धि, मानसिक शक्ति एवं बुद्धि की प्राप्ति है.
गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है?( Ganesh Chaturthi Kyon Manae Jaati Hai)
गणेश चतुर्थी का त्यौहार भगवान गणेश का जन्मोत्सव (vinayagar chaturthi 2023) के रूप में मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष (चांदनी रात) की चतुर्थी तिथि को ही भगवान गणेश का जन्म हुआ था. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह समय प्रत्येक वर्ष या तो अगस्त या फिर सितंबर के महीने में पड़ता है. चूँकि हिन्दू पंचांग चंद्र गणना पर आधारित है इसलिए हिन्दू पंचांग में यह तिथि प्रत्येक वर्ष बदलती रहती है.
गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है? (Ganesh Chaturthi Kab Hai 2023)
गणेश चतुर्थी का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद या भादो माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन से इस पावन त्यौहार का आरम्भ हो जाता है, जो अनंत चतुर्दशी पर समाप्त होता है.
2023 का अनंत चतुर्दशी 28 सितंबर को है. दस दिनों तक चलने वाली गणेश चतुर्थी का समापन इसी दिन होगा. इसी दिन प्रतिमा का विसर्जन भी होगा.
गणेश चतुर्थी में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना का महत्व (Ganesh Ji Ka Mahatva)
गणेश चतुर्दशी में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना (ganesh sthapana muhurat 2023) का अपना एक विशेष महत्व है. भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव है, अर्थात उनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है. गणेश जी को दुखहर्ता, विघ्नहर्ता, शुभकर्ता कहते है. इसलिए उनके पूजन से जीवन में संकट टलता है व शुभ का आगमन होता है. घर में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापना से घर की नकरात्मता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन होता है. प्रतिमा स्थापना से बुरे ग्रहो के कुप्रभाव दूर होते है, अमंगल टलता है और जीवन में मंगल का आगमन होता है. इससे जीवन के कष्ट, क्लेश, संकट दूर होते है. पहले महाराष्ट्र में इसका अधिक प्रचलन था लेकिन धीरे धीरे अब अन्य राज्यों में भी लोग भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना करने लगे है.
गणेश चतुर्थी में साधारण पूजा विधि (Ganesh Chaturthi Puja Vidhi 2023)
गणेश चतुर्थी में भगवान गणेश को मोदक, लड्डू और केले अवश्य चढ़ाना चाहिए. ये सब उनके प्रिय खाद्य पदार्थ है. इनके भोग के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. गणेश जी के पूजन में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है. उन्हें दूर्वा घास (एक प्रकार की घास) चढ़ाई जाती है. उन्हें लाल फूल, फूलो की माला, रुई की बनी हुई माला चढ़ाया जाता है. उन्हें खीर, पांच फल, पंचामृत, नारियल आदि भी चढ़ाया जाता है. गणेश जी की विधिवत पूजन के बाद आरती अवश्य करनी चाहिए. सम्भव हो तो प्रतिमा के पास एक अखंड ज्योति भी जलानी चाहिए. यदि मूर्ति की स्थापना की गई हो तो मूर्ति विसर्जन के समय उन्हें विदाई अवश्य दी जाती है मगर विदाई के साथ ही उनसे प्रार्थना भी की जाती है कि ‘हे प्रभु आप माँ लक्ष्मी के साथ हमारे घर में सदैव वास करें.‘
गणेश चतुर्थी के दिन क्या नहीं करने चाहिए
गणेश चतुर्दशी शुक्ल पक्ष में मनायी जाती है लेकिन धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन चंद्र दर्शन से बचना चाहिए. इस दिन चन्द्रमा को देखने से भविष्य में झूठा कलंक लगने की संभावना होती है. भगवान श्री कृष्ण को भी यह कलंक लग चुका है इसलिए इस दिन के चाँद को देखना अच्छा नहीं माना जाता है.
भगवान गणेश की जन्म की कहानी (Lord Ganesha Birth Story In Hindi)
भगवान गणेश की जन्म की कहानी रोचक है. एक बार माता पार्वती ने सोचा कि क्यों न एक ऐसा पुत्र हो जो उनकी आज्ञा का पालन करें और उनकी आज्ञा के बिना किसी को भी अपने भवन अंदर नहीं आने दें. ऐसा विचार करके माता पार्वती ने उसी समय उबटन (शरीर पर लगाए जाने वाले पदार्थ) से एक बच्चे का स्वरुप बनाया और बाद में उसमें प्राण डाल दिया. अब वह एक जीवित बालक था. वह माता पार्वती के सामने खड़ा था. माता पार्वती ने उस बालक से कहा कि मैं स्नान करने जा रही हूँ इसलिए तुम भवन के मुख्य द्वार पर दरवान की भांति खड़े रहना और और किसी को भी अंदर आने नहीं देना. ऐसा बोलकर देवी पार्वती अंदर स्नान करने चली गई और वह बालक अपने काम में लग गया.
वह भवन के मुख्य द्वार पर खड़ा होकर पहरेदारी करने लगा. उसी समय भगवान शिव का आना हुआ. शिव जी जैसे ही अंदर आने लगे वैसे ही उस बालक ने शिव जी को अंदर आने से रोक दिया. पहले तो शिव जी उस अनजान बालक को देखकर चौंक गए, साथ ही उन्हें उस बालक की साहस पर बड़ा आश्चर्य हुआ. शिव जी को उस बालक पर दया आयी और उन्होंने उसे बहुत समझया मगर बालक किसी भी स्थिति में शिव को अंदर आने नहीं देने को तैयार है. फिर तो शिव जी को उस बालक पर क्रोध आ गया और उन्होंने क्रोध में ही उस बालक के सिर को काट दिया.
उसी समय देवी पार्वती स्नान करके बाहर आयी तो देखा की उनके द्वारा तैयार बच्चे का सिर कटा हुआ है. फिर तो देवी पार्वती क्रोध से भर गई. उन्होंने तत्काल कालिका का रौद्र रूप धारण कर लिया. उनके क्रोध से सभी देवगण भयभीत हो गए. भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा सहित के साथ साथ सभी देवी देवता वहां उपस्थित हो गए. लेकिन माता पार्वती का क्रोध शांत नहीं हुआ. वह हर हाल में अपने बच्चे को जीवित देखना चाहती थी. तभी शिव जी ने अपने गण से कहा कि जाओ और धरती पर उपेक्षित बच्चे का सिर काटकर ले आओ.
उसी समय जब नंदी सहित कई गण जब धरती का चक्कर लगा रहें थे तभी उन्हें एक हाथी का बच्चा दिख गया जिसकी माता उसकी ओर पीठ किये हुए थी. फिर क्या था. उसी समय गणो ने उस हाथी के बच्चे के सिर को काट लिया और वह जाकर शिव जी को दे दिया. शिव जी उस हाथी के बच्चे का सिर देवी पार्वती द्वारा निर्मित बच्चे के सिर में लगा दिया. सिर के लगते ही वह बालक जीवित हो गया लेकिन उसका सिर हाथी का हो गया.
देवी पार्वती अपने बच्चे को जीवित हुआ देखकर शांत हो गई. जबकि शिव जी ने उस बालक को अपने सभी गणो का प्रधान बना दिया और उन्हें गणपति का नाम दिया. वहां उपस्थित सभी देवी देवताओ ने गणपति की स्तुति की. भगवान गणेश को सवारी के लिए एक चूहा दिया गया. देवी पार्वती ने अपने पुत्र का नाम गणेश रखा. भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु ने उन्हें प्रथम पूजा प्राप्त करने का अधिकार दिया. तभी से भगवान गणेश की सबसे पहले पूजा करने का विधान है. जिस दिन यह घटनाक्रम घटी वह दिन चतुर्थी का था. इसलिए गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाने का विधान है.
गणेश उत्सव और भारत का इतिहास
वैसे तो गणेश चतुर्थी सनातन धर्म का प्रमुख त्यौहार है. लेकिन यह त्यौहार दूसरे राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में अधिक धूमधाम से मनाया जाता है. इसके पीछे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने वाली घटना है. दरअसल महाराष्ट्र में यह त्यौहार शिवा जी के समय से ही मनाया जाता रहा है मगर तब यह उतना भव्य और अधिक दिनों का नहीं हुआ करता था. लेकिन बाल गंगाधर तिलक जब अग्रेजो से लड़ रहे थे तब वे समाज को एकजुट करने पर ध्यान केंद्र्ति किया.
चूँकि उस समय अग्रेजो का शासन था इसलिए वे समाज को एक करने वाले किसी भी गतिविधि पर रोक लगा दिया करते थे. तभी बाल गंगाधर तिलक ने एक युक्ति निकाली और इस त्यौहार को उन्होंने जन एकता की तरह मनाने का आंदोलन चलाया. अंग्रेज क्रूर अवश्य थे मगर वे धार्मिक कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करते थे. इस तरह से इस त्यौहार ने सामाजिक एकता को भी बढ़ावा दिया. अब यही कारण है कि गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र में सबसे अधिक धूमधाम से मनायी जाती है.
गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त कब है?( Ganesh Chaturthi 2022 Date Time)
- 2023 की गणेश चतुर्थी (ganesh chaturthi 2023 muhurat) 19 नवंबर को है.
- चर्तुथी तिथि का आरम्भिक समय – 18 सितंबर, दोपहर 12 बजकर 39 मिनट
- चतुर्थी तिथि का समापन समय – 19 सितंबर, दोपहर 1 बजकर 43 मिनट
- जबकि प्रतिमा स्थापना और पूजन का शुभ मुहूर्त (ganesh chaturthi muhurat) 19 सितंबर को सुबह 11 बजे से दोहपर 1 बजकर 28 मिनट तक है. इस तरह सुबह मुहूर्त 2 घंटे 28 मिनट का है.
- प्रतिमा विसर्जन – 28 सितंबर 2023
निष्कर्ष :- तो आज के इस लेख में आपने जाना गणेश चतुर्थी निबंध हिंदी में (Ganesh Chaturthi Essay in Hindi) के बारे में. उम्मीद करते है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी. अगर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करके जरूर बताइए. अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो रेटिंग देकर हमें प्रोत्साहित करें.
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