फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जीवनी, जीवन परिचय, भारतीय सेना, कोट्स, परिवार, युद्ध (Sam Manekshaw Biography in Hindi, wife, family, quotes, war, grandson, daughter, age, awards, biopic, Movie, death.
हम सब भारतीय सेना की वीरता और पराक्रम की हमेशा प्रशंसा करते हैं जब भी सेना कोई ऐसा काम करती है जिससे हमारे देश का सामर्थ्य दिखता हैं तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, लेकिन इसके बावजूद भी हम सेना के कई ऐसे अधिकारियों के बारे में नहीं जानते जिन्होंने अपनी रणनीतियों से विरोधी सेना के छक्के छुड़ा दिए हैं। कुछ ऐसे ही थे सैम मानेकशॉ जिन्हें देश का पहला फील्ड मार्शल बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्होंने एक नहीं बल्कि 5 युद्धों में भाग लिया है, और हर युद्ध में इनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है, फिर चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध हो या भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध जिसमें बांग्लादेश बना था। तो फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जीवनी (Sam Manekshaw Biography in Hindi) में हम इनके जीवन के महत्वपूर्ण कामो के बारे में जानेंगे।
सैम मानेकशॉ का जीवन परिचय
नाम (Name) | सैम मानेकशॉ |
पूरा नाम (Full Name) | सैम होर्मूसजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ |
निक नाम | सैम बहादुर |
जन्म (Date of birth) | 3 अप्रैल, 1914 |
जन्मदिन (Birthday) | 3 अप्रैल |
जन्म स्थान (Place) | अमृतसर, पंजाब |
उम्र (Age) | 94 साल |
मृत्यु (Date of Death) | 27 जून, 2008 |
मृत्यु स्थान (Place Of Death) | वेलिंगटन, तमिलनाडु |
जाति (Caste) | फारसी |
सेवा (Service) | भारतीय सेना |
सेवा अवधि (Years Of Service) | 1934-2008 |
युद्ध (Wars) | द्वितीय विश्व युद्ध, 1947 का भारत-पाकिस्तान युद्ध, भारत-चीन युद्ध 1965 का, भारत-पाकिस्तान युद्ध बांग्लादेश मुक्ति युद्ध |
नागरिकता(Nationality) | भारतीय |
पुरस्कार (Awards) | पद्म विभूषण, पद्म भूषण, सैन्य क्रॉस |
उपाधि (Rank) | भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल |
भाषा (Languages) | हिंदी, इंग्लिश, पंजाबी |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
सैम मानेकशॉ का जन्म और शुरुआती जीवन (Sam Manekshaw Birthday)
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था। इनके पिता पेशे से डॉक्टर थे, जबकि माता ग्रहणी थी। इनके माता-पिता पारसी परिवार से थे, जिनका नाता गुजरात से था। लेकिन सैम मानेकशॉ का जन्म अमृतसर में हुआ इसके पीछे एक दिलचस्प वाकया है। 1903 में फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के माता पिता गुजरात छोड़कर लाहौर में बस गए थे, वहीं पर उनके पिता के दोस्त भी रहते थे जिनकी खुद की क्लीनिक थी तो उन्होंने सोचा कि क्यों ना वह भी वहां पर जाकर अपना जीवन यापन शुरू करें।
इस दौरान उनका गुजरात आना जाना हुआ करता था तभी एक बार की बात है जब सैम मानेकशॉ का जन्म नहीं हुआ था वह अपनी माता की कोख में थे तो वह ट्रेन से लाहौर जा रहे थे तभी बीच में उन्हें बहुत तेज से दर्द होना शुरू हो गया। यह वह दौर था जब ट्रेन किसी जगह रूकती तो काफी दिनों तक रुकी रह जाती थी। इसलिए सैम मानेकशॉ के पिता काफी चिंतित हुए और स्टेशन मास्टर से सलाह मांगी जिस पर उन्होंने कहा कि आप लोगों को उस दिन यहीं रुक जाना चाहिए। जिसके बाद सैम मानेकशॉ के माता-पिता वहीं पंजाब के अमृतसर में ही रुक गए। ये कुल 6 भाई बहन है जिनमें से यह पांचवें नंबर के हैं। इनके तीन भाई और दो बहने भी हैं। इनका पूरा परिवार काफी पढ़ा-लिखा और अच्छे अच्छे पदों पर नियुक्त था।
सैम मानेकशॉ का परिवार (Sam Manekshaw Family)
पिता का नाम (Father) | होर्मसजी मानेकशॉ |
माता का नाम (Mother ) | हीराबाई मानेकशॉ |
भाई बहन | पांच |
भाई का नाम (Brother) | जान, सेहरू, फली |
बहन का नाम (Sisters) | जेमी, किल्ला |
पत्नी (Sam Manekshaw Wife Name) | सिल्लू |
कुल बच्चे | दो बेटी |
बच्चों के नाम | शैरी बाटीवाला, माज़ा दारुवाला |
सैम मानेकशॉ की शिक्षा (Sam Manekshaw Education)
इनकी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब में ही हुई है। इसके बाद हायर एजुकेशन के लिए शेरवुड कॉलेज नैनीताल में एडमिशन कराया गया था, लेकिन 1932 में इन्होंने यह कॉलेज छोड़ दिया। इस वक्त उनकी उम्र मात्र 15 वर्ष थी, हालांकि उन्होंने जूनियर कैंब्रिज सर्टिफिकेट हासिल कर लिया था। असल में यह एक तरह का एग्जाम होता था जिसको कैंब्रिज यूनिवर्सिटी कराती थी इस एग्जाम को पास करने का मतलब यह होता था कि उसकी इंग्लिश काफी अच्छी है और बाहर जाकर पढ़ाई कर सकता है।
चूंकि सैम के पिता मेडिकल ऑफिसर थे, इसलिए उनके मन में भी बचपन से मेडिकल ऑफिसर बनने का सपना पल रहा था, इसलिए उन्होंने अपने पिता से कहा की अब सर्टिफिकेट भी है इसलिए वह लंदन जाकर मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते हैं लेकिन उनके पिता ने उनकी कम उम्र का हवाला देकर ऐसा करने से मना कर दिया और उनका एडमिशन हिंदू सभा कॉलेज में करवा दिया जो कि अमृतसर में ही है। यहां पर साइंस विषय लिया। आखिरकार 1932 में इन्होंने थर्ड डिवीजन से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली।
सैम मानेकशॉ का सैन्य जीवन (Sam Manekshaw Military career)
इसी दौरान इंडियन मिलिट्री कॉलेज के मीटिंग में यह तय किया कि इंडियन मिलिट्री एकेडमी की शुरुआत करनी चाहिए, ताकि भारतीयों को सेना के उच्च पदों के लिए तैयार किया जा सके। इस एकेडमी में प्रवेश की उम्र 18 से 20 वर्ष की रखी गई और चयन की प्रक्रिया एक एग्जाम थी जो पीएससी लेगी। इसके बाद एग्जाम हुआ और सैम मानेकशॉ ने भी एग्जाम दिया और छठवीं रैंक हासिल की। इस तरह इनका देश को मिलिट्री सेवा देने का आगाज हुआ।
ट्रेनिंग पूरा होने के बाद सैम मानेकशॉ को इंडियन बटालियन में रखने की वजाय ब्रिटिश बटालियन में रखा गया। यह 12th फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट के फोर्थ बटालियन में थे, जिसकी पोस्टिंग बर्मा में हुई थी। यह वही समय था जब वर्ल्ड वॉर टू अपनी चरम सीमा की तरफ बढ़ रहा था, जापान की सेना बहुत प्रभावी तरीके से आगे बढ़ रही थी, तभी ब्रिटिश आर्मी को योग्य अफसरों की कमी महसूस होने लगी। इसलिए इन्होंने सैम मानेकशॉ को अस्थाई कैप्टन और मेजर की पोस्ट दे दी।
वर्ल्ड वॉर 2 में सैम मानेकशॉ का योगदान
द्वतीय विश्व युद्ध में इन्होंने बहुत बहादुरी का काम किया। इनकी बटालियन को पगोड़ा हिल पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई, जो कि काफी कठिन था। इसके बावजूद भी इन्होंने जापान की आर्मी का काफी कड़ा प्रतिकार किया और इस मिशन में इनकी टीम के करीब 50% सैनिकी या तो जख्मी हो चुके थे या शहीद हो चुके थे, उसके बावजूद भी उन्होंने उस पहाड़ी पर कब्जा कर ही लिया।
तब एक मशीन गन की गोली इनके शरीर को छलनी कर देती है। तभी उनकी टीम में मौजूद मेडिकल टीम के सदस्य शेर सिंह उन्हें एक ऑस्ट्रेलियाई सर्जन के पास लेकर जाते हैं। पहली नजर में तो सर्जन साफ-साफ मना कर देते हैं कि उनकी बचने की संभावना लगभग ना के बराबर है तभी सैम मानेकशॉ होश में आते हैं तो डॉक्टर पूछते हैं कि तुम्हारे साथ क्या हुआ है तो वह बड़े मजाकिया अंदाज में कहते हैं कि ऐसा लग रहा है किसी ने मुझे एक लात मार दिया है। उनके सेंस आफ ह्यूमर से डॉक्टर भी प्रभावित हो जाते हैं और उसके बाद उनका ऑपरेशन करते हैं जिसमें किडनी, लीवर और फेफड़े से 7 गोलियां निकालते हैं।
1947 में जब पाकिस्तान ने कश्मीर कब्जाने की कोशिश की
आजादी का जश्न एक तरफ था दूसरी तरफ था विभाजन का दर्द। इसी बीच नए नवेले देश पाकिस्तान ने भारत को एक और दर्द देने की सोची। वो बहुत गुप्त रूप से कश्मीर को कब्जाना चाहता था। उस वक़्त कश्मीर के राजा हरि सिंह थे। जब तक उन्हें इस बात की भनक लगी तब तक पाकिस्तान अपनी आधी चाल चल चुका था। तब महाराजा हरिसिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई, जिसके बाद सैम मानेकशॉ, वी. पी. मेनन जैसे कई बड़े लोग एक्शन में आये। हरिसिंह, वी. पी. मेनन के साथ दिल्ली आ गए, इसी दौरान सैम मानेकशॉ ने कश्मीर के पूरे इलाके का हवाई निरीक्षण किया, जिसके बाद यह तय हुआ कि जितना जल्दी हो सके भारतीय सेना को मैदान पर उतार दे, नही तो पाकिस्तानी सेना श्रीनगर पर कब्जा कर लेगी। इसके बाद सेना उतारी गई और उसके पहले श्रीनगर और फिर कश्मीर को अपने हाथों में ले लिया।
भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 में अहम भूमिका
8 जुलाई 1969 को इन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया गया था। 1971 में यह युद्ध असल ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान के बीच का युद्ध था। ईस्ट पाकिस्तान ऑटोनॉमी की मांग कर रहे थे जो वेस्ट पाकिस्तान के हुक्मरानों को पसंद नहीं आ रही थी, इसलिए उन्होंने वहां की स्थिति को कंट्रोल करने के लिए सेना उतार दी।
इसके बाद पाकिस्तानी सेना का अत्याचार शुरू हुआ और वेस्ट पाकिस्तानी मारे गए और कई रिफ्यूजी बंद कर पश्चिम बंगाल में रहने लगे। स्थिति बहुत जटिल होती जा रही थी तब भारत में यह निर्णय लिया कि वह इस युद्ध में भाग लेगा। उस वक्त की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इनसे पूछा कि क्या हमारी सेना युद्ध करने के लिए तैयार है?
इस पर उन्होंने जवाब दिया कि हमारी सेना अभी युद्ध करने की स्थिति में नहीं है और इसके कुछ कारण भी बताएं। इसके साथ ही उन्होंने अपने इस्तीफे की पेशकश की थी कि क्योंकि उनकी सेना तैयार नहीं थी, पर इंदिरा गांधी ने उस इस्तीफे को ठुकरा दिया और इनसे पूछा कि आप के हिसाब से हमें क्या करना चाहिए?
तब उन्होंने कहा कि यदि आप सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दे तो मैं आपसे वादा करता हूं कि हमारी जीत सुनिश्चित है। बस आप मुझे मेरे हिसाब से काम करने की अनुमति दे दे। इंदिरा गांधी उनकी बात मान गई और फिर जब उन्होंने इंदिरा गांधी से कुछ दिनों बाद कहा कि हां अब आर्मी युद्ध में उतरने के लिए तैयार है उसके बाद जो हुआ वह इतिहास में दर्ज है। 15 दिनों में 90 हज़ार पाकिस्तानी सेना से भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
फील्ड मार्शल के रूप में
वॉर खत्म होने के बाद इंदिरा गांधी ने यह तय किया कि इन्हें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बना दिया जाए लेकिन एयर फोर्स और नेवी को यह मंजूर नहीं था जिसके बाद यह नहीं हो सका। इनकी रिटायरमेंट जून 1972 में थी, जिसे 6 महीने बढ़ा दिया गया और इन्हें फील्ड मार्शल की रैंक में प्रमोट कर दिया गया इसी के साथ सैम मानेकशॉ देश के पहले फील्ड मार्शल बने।
सैम मानेकशॉ को मिले अवार्ड एवं उपलब्धियां (Sam Manekshaw Award and Achievement)
- पद्म भूषण – 1968
- पद्म विभूषण- 1972
- जनरल सर्विस मैडल – 1947
- पूर्वी स्टार
- पश्चिमी स्टार
- रक्षा मैडल
- संग्राम मैडल
- सैन्य सेवा मैडल
- इंडियन इंडिपेंडेंस मेडल
- 25Th इंडिपेंडेंस एनिवर्सरी मैडल
- 20 ईयर लांग सर्विस मैडल
- 9 ईयर लांग सर्विस मैडल
- मिलिट्री क्रॉस
- 1939-45 स्टार
- बर्मा स्टार
- वॉर मैडल 1939-45
- इंडियन सर्विस मैडल
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जी का निधन (Sam Manekshaw Death)
माँ भारती का यह वीर सपूत 27 जून 2008 को पंच तत्वों में विलीन हो गए। उस वक़्त उनकी उम्र 94 वर्ष थी। वो निमोनिया से ग्रसित थे, जिसके चलते तमिलनाडु के वेलिंगटन हॉस्पिटल में उनका निधन हुआ।
वैसे तो सेना का हर वक जवान साहसी और पराक्रमी होता है लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते है जिन्होंने देश को आकार देने में इतना बड़ा योगदान दिया हो। ऐसे वीर सपूत कभी भी हमारे बीच से नही जाते, वो हमारी यादो में, जज्बातों में और इस देश के हर उस नागरिक की स्वास में बस जाते है तो यहाँ आजादी से सांस ले रहे हैं।
सैम मानेकशॉ के जीवन पर आधारित बायोपिक फिल्म (Sam Manekshaw Biopic Film)
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के जीवन पर बेस्ड बायोपिक भी बनने जा रही है. सैम मानेकशॉ के किरदार में विक्की कौशल होंगे. इस बायोपिक का टीज़र भी आउट हो गया है. इस बायोपिक के टाइटल की घोषणा भी हो गई है जिसका नाम है “द मैन, द लीजेंड, द ब्रेवहार्ट हमारे ‘सैम बहादुर’। इस बायोपिक को रोनी स्क्रूवाला द्वारा निर्माण किया जा रहा है और निर्देशन मेघना गुलजार कर रही हैं।
निष्कर्ष – आज के इस लेख में हमने आपको फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जीवनी (Sam Manekshaw Biography in Hindi) के बारे में बताया है.
FAQ
Q : सैम मानेकशॉ का पूरा नाम क्या है?
Ans : सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ
Q : भारत के प्रथम फील्ड मार्शल कौन है?
Ans : सैम मानेकशॉ
Q : फील्ड मार्शल का क्या काम होता है?
Ans : सेना में सबसे ऊँचा पद (सर्वोच्च पद)
Q : सैम मानेकशॉ की जयंती कब है?
Ans : 3 अप्रैल को
Q : क्या जनरल मानेकशॉ का वेतन कभी रोका गया और यदि रोका गया तो क्यों?
Ans : ऐसा कभी नही हुआ कि जनरल मानेकशॉ का वेतन कभी रोका हो, हाँ एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी फील्ड मार्शल से नाराज़ हो गई थी क्योंकि इंदिरा गांधी ने मानेकशॉ से पूछा था कि क्या ये समय सही है पाकिस्तान पर हमला करने का, लेकिन मानेकशॉ ने हमले से मना कर दिया था।
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