संविधान के मौलिक अधिकार एवं कर्तव्य (Fundamental Rights In Hindi)
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और संविधान के लागू होते ही भारत एक गणतंत्र देश बन गया। भारत के संविधान में विश्व के अन्य लोकतान्त्रिक देशो में वर्णित नियमो को लिया गया है। जहाँ तक बात है मौलिक अधिकारों की तो संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का ऐसा पहला देश है जिसने अपने देश के संविधान में नागरिको के लिए मौलिक अधिकारों का लिखित वर्णन किया है। भारत के संविधान में नागरिको के लिए मौलिक अधिकार का नियम संयुक्त राज्य अमेरिका से ही लिया गया है।
संविधान में मौलिक अधिकार का वर्णन भाग-3 के अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 में किया गया है। लेकिन नागरिको को दिए जाने वाले इन अधिकारों में संसोधन भी किया जा सकता है और विशेष परिस्थिति में इसे हटाया भी जा सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित भी किया जा सकता है।
संविधान में वर्णित मौलिक अधिकार
भारत में नागरिको के लिए कुल 6 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है –
- समता अथवा समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18 तक)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से अनुच्छेद 24 तक)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक)
- संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से अनुच्छेद 30 तक)
- संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)
मौलिक कर्तव्य
- मौलिक कर्तव्य को संविधान में बाद में जोड़ा गया है। मौलिक कर्तव्यों की रुपरेखा तात्कालिक सोवियत संघ रूस से लिया गया।
- प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वो संविधान का पालन करें और राष्ट्र ध्वज व राष्टगान का सम्मान करें।
- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रिय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
- भारत की सम्प्रभुता, एकता व अखण्डता की रक्षा करे एवं उन्हें अक्षुण्ण रखें।
- देश की रक्षा करें।
- भारत के सभी लोगो में समरसता और सामान भातृत्व की भावना का निर्माण करें।
- हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्व समझे और उसका निर्माण करें।
- प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें और उसका संवर्धन करें।
- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें।
- व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रो में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञान की भावना का विकास करें।
- माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चो हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना।
1976 के संविधान के 42वें संशोधन में नागरिको के लिए 10 मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया है जबकि 2002 में संविधान के 86वें संशोधन तथा अनुच्छेद 21A के अंतर्गत उनमें एक और कर्तव्य को जोड़ा गया। शिक्षा के अधिकार के परिणामस्वरूप इस सूचि में जोड़ा गया। इस प्रकार ग्यारहवे स्थान पर उल्लेखित कर्तव्य शिक्षा के अधिकार के पूरक है।
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य में अंतर
- मौलिक अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 से सम्बंधित है। जबकि मौलिक कर्तव्य संविधान के भाग IV A में निहित अनुच्छेद 51A से सम्बंधित है।
- मौलिक अधिकार की रुपरेखा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से अपनाया गया है जबकि मौलिक कर्तव्य की अवधारणा को तात्कालिक सोवियत संघ के संविधान से अपनाया गया है।
- मौलिक अधिकार भारत के नागरिक का संविधान द्वारा प्राप्त अधिकार है। जबकि मौलिक कर्तव्य जनता के द्वारा देश व समाज के हित के लिए किये जाना वाला कार्य है।
- मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है क्योकि विशेष परिस्थिति में उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है जबकि मौलिक कर्तव्य निरपेक्ष है। यह नागरिको के ऊपर छोड़ दिया गया है कि वें इन कर्तव्यों का पालन करें।
- मौलिक अधिकार को न्यायालयों के माध्यम से लागू करवाया जा सकता है मगर मौलिक कर्तव्यों को किसी न्यायालयो के माध्यम से लागू नहीं करवाया जा सकता है क्योकि यह व्यक्तिगत है।
- मौलिक अधिकार संविधान के द्वारा जनता के लिए दिया जाना अधिकार है जबकि मौलिक कर्तव्य जनता की जिम्मेवारी है, जो उनके द्वारा देश, समाज व परिवार के लिए किया जाने वाला होता है।
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य एक दूसरे के पूरक
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्य एक दूसरे के पूरक है। इसे ऐसे समझा जा सकता है जहाँ एक ओर जनता को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है तो वही दूसरी ओर देश की सम्प्रभुता, एकता व अखण्डता की रक्षा करने का दायित्व भी जनता को दिया गया है। उसी प्रकार यदि संविधान में शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार दिया गया है तो सार्वजनिक संपत्ति के संरक्षण का दायित्व भी जनता को दिया गया है।
निष्कर्ष : मौलिक अधिकार न्यायसंगत है पर असीमित नहीं है। इन अधिकारों पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवस्था के हित हेतु कई तर्क संगत रोक लगाई जा सकती है। जिसको मानने के लिए जनता बाध्य है। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि कई बार राजनैतिक कारणों से सरकार इन अधिकारों का दुरूपयोग भी करती है। जैसे इंदिरा गाँधी के द्वारा आपातकाल का लगाना पूर्णतः असंवैधानिक था और वो संकीर्ण राजनीति की एक चरम बिंदु थी। इसलिए ऐसी स्थिति से निपटने के लिए न्यायालयों को अधिकार दिया गया है कि वो सही-गलत का विश्लेषण करके जनता के हितो की रक्षा करें। लेकिन जहाँ अधिकार है वहां कर्तव्य भी है। बिना कर्तव्य के अधिकार बेमानी से ज्यादा और कुछ नहीं है। जैसे यदि हमें नगरपालिका द्वारा संचालिक किसी स्वच्छ पार्क में टहलने का अधिकार है तो हमारा यह भी कर्तव्य है कि हम उसकी स्वच्छता को बनाये रखें। बिना कर्तव्य के अधिकार का दिया जाना न तो व्याहारिक है और न ही देश व समाजहित में है।
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