राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) क्या होता है?
देश को चलाने के लिए सरकार कई ऐसे वित्तीय निर्णय लेती है जिससे आम जनता के जीवन में खुशहाली आएं व देश का विकास हो। ये वो निर्णय होते है जिससे आम जनता प्रायः परिचित नहीं होते है। इन वित्तीय निर्णयों को कार्य के आधार पर अलग अलग नाम से जाना जाता है। इन्ही में से एक नाम है – राजकोषीय घाटा।
राजकोषीय घाटा को अंग्रेजी में फिस्कल डेफिसिट (Fiscal Deficit) कहते है।
राजकोषीय घाटा सरकार की वित्तीय लेन-देन में होने वाला एक घाटा है। जिसका अंतिम आकलन प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में होता है और जिसके आधार पर सरकार अपने कार्य की दिशा व दशा तय करती है। सरकार की ओर से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटे का एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित किये जाने की परम्परा रही है।
इस तरह से यदि सरकार का कुल व्यय, कुल आय के कम होता है तो उस अंतर को राजकोषीय घाटे का नाम दिया गया है। दूसरे शब्दों में, इसे ऐसे कहा जा सकता है कि जब सरकार की आय उसके व्यय से कम होती है तो उस स्थिति को राजकोषीय घाटा कहते है। लेकिन इसमें उधार और अन्य देनदारी शामिल नहीं होता है। अर्थात जब उधार को छोड़कर कुल व्यय, कुल आय या राजस्व से अधिक हो जाता है तो ऐसी स्थिति को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इसका आकलन जीडीपी के आधार पर प्रतिशत के रूप में किया जाता है।
राजकोषीय घाटे के कारण
राजकोषीय घाटे के अनेक कारण है। सरकार जनता के कल्याण हेतु अनेक अनेक कार्य करती है। सरकार का कार्य सबसे अंतिम छोड़ पर खड़े व्यक्ति का सहयोग करना होता है। विशेषकर भारत में सरकार, जनता के कल्याण के लिए अधिक कार्य करती है जैसे, सरकार के द्वारा दी जा रही अनेक प्रकार की सब्सिडी, बढ़ते बेतन, सरकारी उपक्रमों पर व्यय, कर्ज माफी, आपदा की स्थिति में सरकार की ओर से दी गई कोई विशेष आर्थिक पैकेज आदि इसके प्रमुख कारण है। मगर इसके अलावा भी कई अन्य कारण भी है जैसे कर चोरी, भ्रष्ट्राचार, गलत तरीके से सरकारी व्यय आदि। तो इन कारणों से सरकार का व्यय उसके आय (राजस्व) से अधिक हो जाता है जो, राजकोषीय घाटे का मुख्य कारण बनता है।
प्रायः भारत में सरकार घाटे का बजट ही पेश करती है। इसका अर्थ यह होता है कि सरकार कल्याणकारी योजनाओ पर अधिक व्यय कर रही है, जो विकास का सूचक होता है। परन्तु अधिक घाटे दिखलाना एक स्वस्थ या एक अच्छे अर्थव्यवस्था का लक्षण नहीं है। क्योकि इस घाटे की पूर्ति करने के लिए सरकार को कर्ज लेना पड़ता है। जिसका असर लम्बी अवधि में अर्थव्यवस्था के विकास को रोकने वाला होता है। लेकिन इसके साथ ही कई स्थितियों में यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा भी माना जाता है। क्योकि इससे विकास को प्रोत्साहन मिलता है। वास्तव में, सरकार के खर्च करने से अर्थव्यवस्था में पूंजी का प्रवाह बढ़ता है, जिससे आर्थिक गतिविधि बढ़ती है और देश का विकास होता है।
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राजकोषीय घाटे का प्रभाव
राजकोषीय घाटे का प्रभाव दो स्वरूपों में देखने को मिलता है। एक स्वरुप जहाँ इसके लाभ को दर्शाता है तो दूसरा इसके दुष्प्रभाव को। वास्तव में, ज्यादातर राजकोषीय घाटा सरकार के जनकल्याणकारी कार्यो के कारण होता है। क्योकि इसके माध्यम से सरकार देश के विकास कार्यो के साथ साथ जनता के हित सम्बन्धी नीतियों को अंतिम रूप देती है। सब्सिडी, कर्ज माफी, विशेष आर्थिक पैकेज व इंस्फ्रास्ट्रक्टर (आधारभूत संरचना) का विकास आदि इन्ही नीतियों में शामिल है। इस सन्दर्भ में इससे देश को बहुत लाभ होता है। यही कारण है कि सरकार की ओर से प्रत्येक वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटे का एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित किया जाता रहा है। ताकि सरकार का विकास कार्य व जनकल्याणकारी कार्य अनवरत जारी रहें।
मगर इसका दूसरा पक्ष भी है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से अर्थव्यवस्था में कई समस्यायें पैदा हो जाती है। कुछ अर्थशास्त्री तो इसे वित्तीय समस्याओ की जड़ तक मानते है। उनका मानना है कि इससे लाभ कम हानि अधिक होती है। क्योकि राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को ऋण लेने पड़ते है। जनता पर अतिरिक्त कर लगाना होता है। जिससे महंगाई में वृद्धि हो जाती है। महंगाई में वृद्धि होने के बाद लोगो की क्रय शक्ति में कमी आ जाती है। परिणामतः देश में बेरोजगारी व गरीबी में वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार यह अपने आप में एक बहुत बड़ी समस्या है क्योकि कभी कभी सरकार के लिए भी राजकोषीय घाटे को कम करना कठिन हो जाता है।
अतः जब राजकोषीय घाटा एक सीमा से बाहर हो जाता है तब यह एक बड़ी समस्या का रूप ले लेता है। इसलिए राजकोषीय घाटा एक सीमा तक तो ठीक है मगर राजकोषीय घाटे का अधिक होना एक बुराई है और सरकार के लिए यह एक सिरदर्द के समान है।
वैसे प्रायः विकासशील देशो में राजकोषीय घाटे का होना कोई बड़ी बात नहीं है। इससे वहां की सरकार विकास कार्य व जनकल्याणकारी कार्यो को करती है और यदि इसका खर्च सही दिशा में किया जाए तो अधिक राजकोषीय घाटे भी देश के लिए हानिकारक नहीं बल्कि लाभदायक साबित होता है।
राजकोषीय घाटे की गणना कैसे की जाती है?
भारतीय संविधान के द्वारा एक प्राधिकरण स्थापित किया गया है, जिसका नाम – नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) – कैग है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) केंद्र सरकार व राज्य सरकारों के सभी तरह के लेखो का अंकेक्षण करता है। यह स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता है। यही प्राधिकरण सरकार की सभी वित्तीय लेन देन का अध्ययन करता है। राजकोषीय घाटे का आकलन भी यही प्राधिकरण करता है।
राजकोषीय घाटे को एक सूत्र से निकाला जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल आय ( कुल राजस्व) [ जबकि इसमें उधार और अन्य देनदारी शामिल नहीं है।]
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