संसद क्या है (What is Sansad), Sansad Kya Hai

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संसद क्या है ? (What is Parliament)

संविधान के अनुच्छेद 79 में देश में एक शक्तिशाली संसद की नींव रखी गई है। भारत की संसद दो सदनों – लोक सभा और राज्य सभा एवं राष्ट्रपति से मिलकर बनी होती है। इस तरह से भारत में द्विसदनीय व्यवस्था की नींव रखी गई है। भारत का संविधान राष्ट्रपति को दोनों सदनों की सभा बुलाने, उसे स्थगित करने और आवश्यकता पड़ने पर लोकसभा को भंग करने का अधिकार देता है। भारत में संसदीय व्यवस्था का संचालन संसद भवन में होता है जो, नई दिल्ली में स्थित है। राज्य सभा को उच्च सदन और लोक सभा को निम्न सदन कहा जाता है। हालांकि इस तरह का नामांकरण केवल आम बोलचाल में ही प्रचलित है। संविधान में इस तरह का वर्गीकरण अथवा नामांकरण जैसे – राज्य सभा को उच्च सदन और लोक सभा को निम्न सदन नहीं किया गया है। व्यवहार में तो लोक सभा ही अधिक शक्तिशाली होती है और इसके सदस्य देश की जनता के द्वारा दिए गए प्रत्यक्ष मत से चुने जाते है। भारत की संसद को देश की सर्वोच्च विधायी शक्तियां प्राप्त है। यह देश की जनता का भाग्य निर्धारण करती है और शासन की बागडोर अपने पास रखती है। भारत की संसद ही सरकार पर नियंत्रण रखती है।

राज्य सभा (Rajya Sabha kya hai)

संविधान के अनुच्छेद 80 के द्वारा राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है। इनमें 12 सदस्यों को राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किया जाता है। जबकि अन्य 238 सदस्य चुनकर आते है। संविधान द्वारा राष्ट्रपति को राज्य सभा के 12 सदस्य मनोनीत करने का अधिकार दिया गया है। राष्ट्रपति साहित्य, विज्ञान, कला, खेल के क्षेत्र के चुनिंदा व्यक्ति को राज्यसभा का सदस्यों नियुक्त कर सकता है। राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव जनता के द्वारा अथवा प्रत्यक्ष विधि से नहीं होता है। इसका चुनाव प्रत्येक राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होता है। राज्य सभा के लिए सदस्यों की न्यूनतम आयु सीमा 30 वर्ष निर्धारित है। राज्य सभा एक स्थायी सदन है। इसका विधटन नहीं होता है। लेकिन इसके एक तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष के बाद सदस्यता से मुक्त हो जाते है। राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल छः वर्ष का होता है। राज्य सभा का पहली बार गठन 3 अप्रैल 1952 को हुआ था।

लोक सभा (Lok Sabha kya hai )

लोक सभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष विधि से जनता के द्वारा होता है। लोक सभा के सदस्य आम जनता के बीच के व्यक्ति होते है। उनका कार्य आम जनता के हित के लिए लोक सभा में उनके मुद्दे उठाने होते है। वे आम जनता का प्रतिनिधित्व करते है और उनके विश्वास पर ही वे चुनाव में विजय प्राप्त करते है। लोक सभा के लिए सदस्यों की न्यूनतम आयु सीमा 25 वर्ष निर्धारित है तथा लोक सभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। संविधान के द्वारा लोक सभा के लिए सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 निर्धारित की गई है। वर्तमान में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 543 है। संविधान का अनुच्छेद 83 (2) का अनुबंध यह व्यवस्था देता है कि लोक सभा का सामान्य कार्यकाल 5 वर्ष का होता है मगर राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वो विशेष परिस्थिति में समय से पूर्व भी लोक सभा को भंग कर सकता है। लोक सभा के भंग होते ही सभी सदस्य स्वतः पद मुक्त हो जाते है। भारत में पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ था।

लोक सभा और राज्य सभा में अंतर (Lok Sabha Aur Rajya Sabha Me Antar Hai)

  • संविधान के द्वारा लोक सभा का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए निर्धारित किया गया है जबकि राजयसभा एक स्थायी सदन है।
  • संविधान के अनुच्छेद 73 (3) के अधीन केंद्रीय मंत्रिपरिषद (मंत्रिमंडल) लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होते है न की राज्य सभा के प्रति।
  • लोक सभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है जबकि राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।
  • लोक सभा के सदस्यों का चुनाव देश की आम वयस्क जनता के द्वारा प्रत्यक्ष मतदान द्वारा होता है जबकि राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्येक राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होता है।
  • राज्य सभा केंद्रीय सरकार को न तो बना सकती है और न ही गिरा सकती है। यह केवल सरकार पर नियंत्रण रख सकती है। जबकि लोक सभा सरकार को बना भी सकती है और आवश्यकता पड़ने पर गिरा भी सकती है। लोक सभा केंद्रीय सरकार को अब तक कई बार गिरा चुकी है।

संसद के कार्य एवं शक्तियां (Sansad Ke Karya aur Shaktiyan)

विधायी कार्य एवं शक्तियां

  • संसद का मुख्य कार्य देश के लिए संघ सूची, समवर्ती सूची और कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाना है। संसद में स्वीकृत विधेयक को राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद कोई विधेयक कानून का रूप ले लेता है।

कार्यपालिका सम्बन्धी कार्य एवं शक्तियां

  • संविधान में यह स्पष्ट किया गया है कि देश की शासन व्यवस्था चलाने वाली कार्यपालिका को संसद का विश्वास अवश्य प्राप्त होना चाहिए। विशेषतः लोकसभा के प्रति। क्योंकि लोकसभा के प्रति ही कार्यपालिका जबावदेह होती है।
  • संसद विभिन्न माध्यम से कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है, जिसमें अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, प्रश्न काल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, वार्षिक बजट आदि प्रमुख है।

वित्तीय कार्य एवं शक्तियां

संसद वित्तीय संम्बधी मामलो में जनता के हितों की रक्षा करती है। संसद की स्वीकृति के बिना सरकार न तो कोई भी नया कर (टैक्स) नहीं लगा सकती है और न ही अतिरिक्त धन खर्च कर सकती है। लेकिन वित्तीय शक्तियां केवल लोक सभा के पास ही निहित होती है। संविधान के अनुसार धन विधेयक को केवल लोक सभा में ही पेश किया जाता है। लोक सभा से पारित होने पर उसे राज्य सभा में केवल विचारार्थ भेजा जाता है। राज्य सभा को 14 दिन के भीतर उसे अपनी राय अथवा बिना किसी राय के ही उसे लौटानी होती है। लेकिन लोक सभा राज्य सभा के राय को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

संविधान से सम्बंधित कार्य एवं शक्तियां

संसद को संविधान के प्रावधानों में संसोधन करने व कुछ नया जोड़ने का अधिकार प्राप्त है। किसी संसोधन विधेयक को संसद के किसी भी सदन में पारित होने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। दोनों सदनों से पारित विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद उसे संसोधित कानून का रूप दे दिया जाता है।

 

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