डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी, जयंती, पुण्यतिथि, इतिहास, जन्म, उम्र, जाति, शिक्षा, पत्नी, परिवार, बच्चे, पुस्तकें, मृत्यु, हिस्ट्री, राजनीतिक विचार, भाषण, सम्मान, (Dr B R Ambedkar Biography in Hindi, 67th Death Anniversary, Age, Birthday, Speech, Death, Wife, Child, Family, Book, Award, University, Quotes, Cast)
Bhim Rao Ambedkar Jayanti 2024 :- वैदिक काल में समाज में जाति व्यवस्था नहीं थी और इसीलिए अस्पृश्यता या छुआछूत भी नहीं थी। हम निश्चित रूप से नहीं जानते कि यह बुराई हिन्दू समाज में कब आ घुसी। वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के चलते शूद्रों को प्राचीन भारत का उद्यमी वर्ग माना है। अथर्ववेद में अपने श्रम के पसीने से विविध उत्पादकीय कार्य में रत वर्ग को शूद्र कहा गया है. इस प्रकार वैदिक काल में सामाजिक सौह्यार्द व समरसता का माहौल देखने को मिलता है परन्तु कालान्तर में कुछ बुराई हिन्दू समाज को प्रदूषित करने लगी और इसी के फलस्वरूप कई विचारकों, महापुरुषों ने इसी बुराई की जड़ता को मिटाने का भरसक प्रयत्न किया। और इन्हीं महापुरुषों में से एक थे बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर। हिन्दू समाज में ऊँच-नीच व भेदभाव के विरुद्ध तथा देश की एकता व अखण्डता के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अद्वितीय कार्य, विशाल आंदोलन तथा जागृति पैदा की।
आज के इस लेख में हम आपको डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी (Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi) के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी (Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi)
नाम (Name) | डॉ. भीमराव अम्बेडकर |
पूरा नाम ( Full Name) | डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर (Bhimrao Ramji Ambedkar) |
जन्म तारीख (Date of birth) | 14 अप्रैल, 1891 |
भीमराव अंबेडकर जयंती (Ambedkar Jayanti 2023) | 14 अप्रैल |
भीमराव अम्बेडकर की पुण्यतिथि (BR Ambedkar Death Anniversary) | 6 दिसम्बर |
जन्म स्थान (Place) | महु कैंट, इंदौर, मध्यप्रदेश, भारत |
जन्मदिन (Birthday) | 14 अप्रैल |
मृत्यु की तारीख (Date of Death) | 6 दिसम्बर 1956 |
मृत्यु स्थान (Place Of Death) | डॉ॰ आम्बेडकर राष्ट्रीय स्मारक, नई दिल्ली, भारत |
मृत्यु का कारण (Death Cause) | खराब स्वास्थ्य के कारण |
उम्र (Age) | 65 साल |
धर्म (Religion) | हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म |
जाति (Caste ) | दलित महरी |
व्यवसाय (Business) | अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता, शिक्षाविद् दार्शनिक, लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, धर्मशास्त्री, समाजशास्त्री, सम्पादक, मानवविज्ञानी, इतिहासविद् प्रोफेसर, शिक्षाविद् |
राजनीतिक दल (Political Party) | शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन स्वतंत्र लेबर पार्टी भारतीय रिपब्लिकन पार्टी |
शिक्षा (Educational Qualification) | बी. ए. 1915 में एम. ए. 1916 में PHD 1921 में मास्टर ऑफ सायन्स 1923 में डॉक्टर ऑफ सायन्स 1952 में डॉक्टर ऑफ लॉ 1953 में डॉक्टर ऑफ लिटरेचर कुल 32 डिग्रियां अर्जित |
स्कूल (School) | प्रतापसिंह हाईस्कूल, महाराष्ट्र गवर्न्मेंट हाईस्कूल, मुंबई |
कॉलेज (College) | मुंबई विश्वविद्यालय कोलंबिया विश्वविद्यालय लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स |
नागरिकता (Nationality) | भारतीय |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
विवाह की तारीख (Marriage Date ) | पहली पत्नी – रमाबाई अम्बेडकर (1906-1935) दूसरी पत्नी – सविता अम्बेडकर (1948-1956) |
समाधि स्थल | चैत्य भूमि, मुंबई, महाराष्ट्र |
बाबा साहेब का जन्म और परिवार (Bhimrao Ambedkar Birth and Family)
बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को महु कैंट, इंदौर में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए महार परिवार में हुआ। उनके पिता जी का नाम रामजी सकपाल थे जो एक सूबेदार के पद पर तैनात थे और माताजी का नाम भीमाबाई था. डॉ. अम्बेडकर की माताजी के देहांत के समय उनकी आयु महज 5 वर्ष थी। बचपन में माँ का आँचल छीन जाने के बाद उनकी बुआ मीराबाई ने इनकी परवरिश की. उनके पिता रामजी सकपाल ने बच्चों की देखभाल हेतू जिजाबाई नाम की विधवा से पुनर्विवाह कर लिया। सौतेली माँ के साथ बालक भीमराव तालमेल नहीं बैठा पाया। कुल मिलाकर जीवन की समुची कटुता ने भीमराव को जिद्दी और साहसी बना दिया। बालक भीमराव संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते गए।
बाबा साहेब का शुरूआती जीवन (Bhimrao Ambedkar Early Life)
डॉ. अम्बेडकर बचपन से ही स्वाभिमानी, कठोर परिश्रमी व प्रखर बुद्धि के धनी थे। परन्तु अपने अछूत समझे जाने वाली जाति में पैदा होने के कारण डॉ. अम्बेडकर को छुआछूत, जात्यापमान, मानवीय वैभिन्न और कई मानसिक यातनाएं सहनी पड़ी। लेकिन इन सबके बावजूद भी डॉ. अम्बेडकर विभिन्न कठिनाइयों का सामना करते हुए पढ़ते लिखते आगे बढ़ते रहे।
स्कूल में बालक भीमराव को अन्य विद्यार्थियों के साथ बैठने की अनुमति नहीं थी, उन्हें क्लास के बाहर टाँट पर बैठकर पढ़ना होता था तथा स्कूल के बाद टाँट को घर ले आते थे। एक बार गणित के जोशी नामक ब्राह्मण अध्यापक ने उन्हें बोर्ड पर गणित का सवाल हल करने को कहा, भीमराव सवाल हल करने को जैसे ही आगे बढे कि कक्षा के लडके चिल्लाये – हमारे खाने के डिब्बे बोर्ड के पीछे रखे हैं वे छू जायेंगें। गणित के मास्टरजी ने उन छात्रों से कहा कि भीमराव बोर्ड पर ही सवाल हल करेंगे। चाहें तो आप अपने डिब्बे वहां से निकाल लें। जब लड़कों ने अपने अपने खाने के डिब्बे वहां से हटा लिये तब जाकर भीमराव बोर्ड के पास जा सके और सवाल हल किया। उन्हें स्कूल के नल को छूने की इजाजत नहीं थी और जब उन्हें प्यास लगती तो स्कूल के चपरासी या अन्य किसी तथाकथित ऊँची जाति वाले व्यक्ति से पानी पिलाने के लिए विनती करनी पड़ती थी, तब उन्हें ऊपर से हथेलियों में पानी गिराकर पानी पिलाया जाता था।
उन दिनों एक अछूत समझे जाने वाले बालक के लिए मेट्रिक पास करना/हाईस्कूल जाना बहुत कठिन था। प्राथमिक शाला में भीमराव के गुरु एक देशस्त ब्राह्मण शिक्ष कृष्णा महादेव आम्बेडकर जिन्होंने बालक भीम के लिए सबसे पहले शिक्षा मंदिर के दरवाजे खोले, ने बालक भीमराव की अनुपम मेधा को पहचान लिया। वे भीमराव के प्रति सकारात्मक रवैया रखते थे तथा उन्हें चाहते थे। उन्होंने भीमराव का उपनाम ‘अम्बावडेकर’ जोकि उनके मूल अंबाडवे गांव से संबंधित था को बदल कर उच्चारण की दृष्टि से सीधा स्पष्ट “अम्बेडकर” नाम बाद में रजिस्टर में दर्ज कर दिया। बाबा साहेब ने गुरु शिष्य परम्परा का निर्वाह करते हुए इस उपनाम को अंत तक अपने हृदय से लगाए रखा।
डॉ. अम्बेडकर को हाईस्कूल की शिक्षा पाने के लिए ही कई मुश्किलें झेलनी पड़ी। माँ की अकाल मृत्यु से भीमराव को आघात लगा। और जीवन की समुची कटुता ने भीमराव को जिद्दी और साहसी बना दिया। बालक भीमराव संघर्ष करते हुए आगे बढ़ते गए।
बाबा साहब की शादी (Babasaheb Ambedkar Marriage)
डॉ. अम्बेडकर की शादी वर्ष 1906 में महज 15 साल की उम्र में हो गई थी उनकी पत्नी का नाम रमाबाई था उस समय वह सिर्फ 9 वर्ष की थी. बीमारी के चलते वर्ष 1935 में उनकी पत्नी रमाबाई का स्वर्गवास हो गया था। इसके बाद उन्होंने जाति प्रथा की बंदिशें तोड़ने के लिये व अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 15 अप्रैल, 1948 को दिल्ली स्थित अपने आवास पर डॉ. सविता कबीर से विवाह कर लिया।
डॉ.अम्बेडकर शिक्षा और डिग्री (BabaSaheb Bhimrao Ambedkar Education)
प्राइमरी शिक्षा के पश्चात् भीमराव ने बंबई के एल्फिस्टन हाईस्कूल में प्रवेश लिया, एल्फिस्टन हाईस्कूल में भीमराव ने अध्ययन की ओर विशेष ध्यान दिया। किताबों से उन्हें विशेष लगाव था, इसी शौक से उनके पास किताबों का अच्छा कलेक्शन बन गया था।
क्लास के सभी विद्यार्थी उनसे घृणा करते थे तथा उन्हें कोई चीज छूने नहीं देते थे, उनको वहां क्लास में सबसे पीछे बैठने के लिए मजबूर करते थे, और तो और शिक्षक भी उनसे पक्षपात करते थे। एक बार एक शिक्षक ने भीमराव का अपमान करने के उद्देश्य से कहा – “अरे ! तू महार का छोकरा, पढ़ लिखकर क्या करेगा?” ।
भीमराव को उस दिन बहुत बुरा लगा और उन्होंने भी उसे मुँह पर जवाब दिया कि “सर, पढ़ लिखकर मैं क्या करूंगा?, ऐसा प्रश्न पूछना आपका काम नहीं है, फिर भी अगर आपने मेरी जाति का नाम लेकर मुझे चिढ़ाने का प्रयास किया तो कहे देता हूँ, इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा।
सामाजिक भेदभाव, पक्षपात, अस्पृश्यता इत्यादि परिस्थितियों के बीच भीमराव ने हाईस्कूल की परीक्षा सन् 1907 में पास कर ली तथा 1912 में बी.ए. की परीक्षा पास की। उस रोज समस्त महार समाज ने हर्ष मनाया था। उस समय यह एक उपलब्धि थी क्योंकि उस समय अछूत माने जाने वाले लोगों के लिए शिक्षा के सभी द्वार बंद थे।
एल्फिस्टन कॉलेज, बंबई में अध्ययनरत होनहार प्रतिभाशाली युवक भीमराव से बड़ौदा नरेश महाराज सयाजीराव गायकवाड़ का मिलना हुआ और वे भीमराव से बहुत प्रभावित हुए। उच्च अध्ययन के लिए उन्होने भीमराव को छात्रवृत्ति मंजूर की और 21 जुलाई 1913 को वे अमेरिका पँहुचे। वहाँ कोलम्बिया यूनिवर्सिटी न्यूयॉर्क में दाखिल हुए। उनके अध्ययन का मुख्य विषय अर्थशास्त्र रहा। एकाग्र होकर वे दिन में सोलह से अठारह घण्टे पढ़ते थे। कड़ी मेहनत और गूढ अध्ययन के फलस्वरूप सन 1915 में “प्राचीन भारत का व्यापार” नामक प्रबन्ध पर उन्हें कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने एम.ए. की उपाधि प्रदान की तत्पश्चात् 1916 में भीमराव अम्बेडकर ने “भारत में जातिभेद” नामक शोधप्रबन्ध विद्यार्थी संघ के सामने पढ़कर सुनाया, वह सन् 1917 में “कास्ट्स इन इंडिया’ नाम से छपा। पी.एच.डी. की उपाधि के लिए किताब (थीसिस) छपवाने के लिए उनके पास पैसा नहीं था। 1924 में “पी.एस. किंग एण्ड संस” नामक संस्था, लंदन से उन्होंने अपनी किताब प्रकाशित करवायी और भीमराव अम्बेडकर को कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से पी.एच. डी. की उपाधि मिली तथा वे डॉ. भीमराव अम्बेडकर कहे जाने लगे। इसके बाद डॉ. अम्बेडकर ने लंदन जाकर अपना अध्ययन किया। वहाँ उन्होने “लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स एण्ड पॉलिटिकल साइंस’ में अपना नाम दाखिल करवाया।
कोलम्बिया यूनिवर्सिटी से एम.ए. और पी.एच.डी. होने से उन्हें सीधे एम.एस.सी. में बैठने की इज़ाजत मिल गयी। गहन अध्ययन के लिए उन्होने लाइब्रेरियों के चक्कर काटने व नोट्स जमा करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। परन्तु इसी बीच उनको मिल रही छात्रवृत्ति की अवधि समाप्त हो गयी और उन्हें भारत लौटना पड़ा।
भारत लौटकर 11 नवम्बर 1918 को बंबई के सिडनहम कॉलेज में वे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए, परन्तु डेढ़ वर्ष बाद ही वे नौकरी छोड़कर पुनः 5 जुलाई 1920 को लंदन चले गये।
लंदन जाने से पूर्व उन्होंने वंचित लोगों को सच का मंच व मूक लोगों को वाणी देने के उद्देश्य से एक समाचार पत्र “मूकनायक” आरम्भ किया। मूकनायक इत्यादि समाचार पत्रों के माध्यम व डॉ. अम्बेडकर के सतत् प्रयासों से लोगों में आत्मविश्वास पैदा हुआ। उनमें जागृति आई व वे संगठित हुए। अब ऐसा समय आ गया था और ऐसे लक्षण दिखाई देने लगे थे कि हिन्दू समाज अस्पृश्यता को अनुचित समझने लगा था।
1920 में लंदन पहुच कर “लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स” में “ग्रेज़ इन” में नाम दाखिल करा के डॉ. अम्बेडकर अध्ययन में निमग्न हो गये। लंदन में वे एक अंग्रेज महिला के घर में किराये पर रहते थे। “ब्रेड एण्ड ब्रेकफास्ट’ यानी रात में सोने के लिए जगह और सवेरे नाश्ता मकान मालकिन देती थी । नाश्ता करके वे दिनभर पढ़ने के लिए निकल जाते, दोपहर में वे सिर्फ चाय और डबलरोटी या सैण्डविच के सहारे अपना लंच पूरा करते थे। लाइब्रेरी में भी वे सबसे पहले आने वाले और सबसे अंत में जाने वाले व्यक्ति थे। प्रतिदिन 17-18 घंटे वे पढ़ने में ही गुजारते, जून, 1921 में लंदन युनिवर्सिटी ने “द इवोल्यूशन ऑफ प्रोविंशियल फाइनेंस इन ब्रिटिश इडिया’ शोध प्रबन्ध पर डॉ. अम्बेडकर को एम.एस.सी. की उपाधि दी। यह प्रबंध ब्रिटिश इडिया के सन् 1833 के 1921 के मध्य केन्द्र व राज्यों के बीच आर्थिक संबंधों को उजागर करता है। इस के बाद वे डी.एस.सी. की उपाधि के लिए जुट गये। पुस्तकें खरीदने में उनकी जो थोड़ी बहुत पूँजी थी, वह भी खर्च हो गयी। अब उन्हें आगे के खर्च की चिंता होने लगी। इसके लिए उन्होने भोजन लेना बंद कर दिया, अब वे 3-4 दिन में एक बार ही भरपेट भोजन करते और चाय, डबलरोटी पर निर्भर रहते। अक्टूबर 1921 में “रूपये की समस्या” विषय पर अपना शोध प्रबन्ध लंदन युनिवर्सिटी में प्रस्तुत किया और अब वे ‘बार एट लॉ’ परीक्षा के लिए कानून के अध्ययन में लग गये। वह परीक्षा देकर डॉ. अम्बेडकर बैरिस्टर बन गये।
बाबा साहेब का सामाजिक कार्य (Bhimrao Ambedkar Social Work)
लंदन से भारत लौटने के बाद डॉ. अम्बेडकर ने संकल्प लिया कि जब तक इस अछूत समझे जाने वाले समाज के साथ होने वाले अत्याचार व अन्याय को समाप्त कर तथा भारत की एकता व अखडता को कायम न कर दं, तब तक चैन से नहीं बैलूंगा। इसी कड़ी में डॉ. अम्बेडकर ने 20 जुलाई 1924 को “बहिष्कृत हितकारिणी सभा” का गठन किया, जिसका कार्य दलितों का चहुंमुखी विकास करना था। डॉ. अम्बेडकर ने संदेश दिया कि दलितों को भी कथित उच्च जातियों के समान सामाजिक और राजनीतिक समानता के अधिकार प्राप्त करने के लिए आर्थिक और शैक्षणिक प्रयास करने चाहिए। इसी क्रम में कोल्हापुर के शाहू महाराज ने अछूतों के लिए निःशुल्क शिक्षा के प्रबन्ध किये और उनमें से बहुतों को नौकरियां दीं। 1924 में वीर सावरकर, जो एक महान स्वतन्त्रता सेनानी व विचारक थे, अण्डमान निकोबार की जेल से छूट कर आये और उन्होंने भी अस्पृश्यता के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया।
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया की नींव (BR Ambedkar Formation of Reserve Bank of India)
वर्ष 1926 में भारत यात्रा पर आए हिल्टन यंग कमीशन के सभी सदस्यों के हाथ में डॉ. अम्बेडकर की “द प्रॉब्लम ऑफ रूपीजः इट्ज ओरजिन एण्ड इट्ज सोल्युशन “पुस्तक थी। डॉ. अम्बेडकर ने आयोग के सामने ब्रिटिश शासन की खामीयुक्त व्यवस्था का विवरण देते हुए धन का नियमन सरकार के बजाय एक स्वायत्त संस्था के माध्यम से होने का सुझाव दिया। बस यहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया की स्थापना की नींव रखी गई और आरबीआई एक्ट 1934 के जरिए रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया की शुरूआत हुई।
दलित जातिगत भेदभाव के खिलाफ आंदोलन (BR Ambedkar Dalit Movement)
19-20 मार्च 1927 को डॉ. अम्बेडकर की अध्यक्षता में कोलाबा जिले के महाड़ नामक स्थान पर “दलित जाति परिषद्” का सम्मेलन हुआ। उस समय चंवदार तालाब से अछूत माने जाने वाले लोगों का पानी पीना वर्जित था। इस तालाब में जानवर तक पानी पी सकते थे लेकिन अछूतों को इसका हक नहीं था। इस प्रतिबन्ध को तोड़ने के लिए डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में 20 मार्च 1927 को हजारों दलितों ने चवदार तालाब की ओर रुख किया।
सर्वप्रथम डॉ. अम्बेडकर ने अपने हाथों से पानी पिया और बाद में उनके साथ सभी उपस्थित लोगों ने पानी पिया। इस घटना से महाड़ में अराजकता की स्थिति बन गयी और कतिपय पोंगा पण्डित निर्दोष निहत्थे दलितों पर लाठियाँ लेकर टूट पड़े। इसके पश्चात् तथाकथित संवर्गों को तालाब का शुद्धिकरण करना था लेकिन इसके पूर्व ही महाड़ स्थित एक मुख्य ब्राह्मण बापुराव जोशी ने उस तालाब में छलांग लगाकर छुआछूत की मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया। बाबा साहेब का मानना था कि ब्राह्मणवादी वृत्ति से मुक्त रहने वाले ब्राह्मणों का मेरे आंदोलनों में सहयोग देने हेतु स्वागत है। महाड़ की घटना से अछूतों का स्वाभिमान जाग उठा। अछूतों को सम्बोधित व जागरूक करने के उद्देश्य से डॉ. अम्बेडकर ने 3 अप्रैल 1927 को एक पाक्षिक पत्र “बहिष्कृत भारत’ का प्रकाशन शुरू किया।
डॉ. अम्बेडकर यहीं चुप बैठने वालों में से नहीं थे। 24 दिसम्बर 1927 को वे दास गाँव पँहुचे और तालाब के पास विशाल दलित सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि “हिंदू समाज को समानता तथा जातिविहीन समाज में परिवर्तित करने तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी।” अगले दिन 25 दिसम्बर 1927 को शूद्रों व स्त्रियों की उपेक्षा कर समाज को वर्ण व जातियों में बाँटने का आदेश देने वाली पुस्तक “मनुस्मृति” को जलाया गया।
उस समय दलितों पर लगे प्रतिबंधों में उनका मंदिर प्रवेश भी निषेध था। महाराष्ट्र के नासिक जिले में कालाराम मंदिर में अछूत नहीं जा सकते थे, चूंकि “राम हिन्दुओं के आराध्य देवता हैं, हिन्दुओं के हृदय में राम का समान स्थान है इसीलिए राम के मंदिर में प्रवेश करने से अन्य मंदिरों का भी प्रश्न अपने आप समाप्त हो जाएगा” ऐसी धारणा के साथ 2 मार्च 1930 को डॉ. अम्बेडकर ने अछूतों को मंदिर प्रवेशाधिकार दिलाने के लिए शंखनाद किया। परन्तु मंदिर के तथाकथित पंडित पुरोहितों ने मंदिर के पट चारों ओर से बंद कर दिये तथा पुलिस का सशस्त्र पहरा लगवा दिया। मंदिर प्रवेश के लिए उपस्थित सभी लोग मंदिर के बाहर धरना देने बैठ गये। कुछ दिनों बाद अंत में रामनवमी आ गयी, इस रोज़ भगवान राम की रथ यात्रा का रिवाज़ था। जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में यह समझौता हुआ कि सवर्ण और अछूत दोनों ही रथ खीचेंगें।
लेकिन इस समझौते के पीछे एक षड़यन्त्र था। मंदिर से ज्यों ही रथ निकला तो कुछ तथाकथित सवर्ण रथ को आगे गली में ले गये। उपस्थित दलितों ने रथ खींचने के लिए ज्यों ही रथ के पास जाकर उसे स्पर्श किया कि चारों ओर से पत्थरों और लाठियों की वर्षा शुरू हो गयी। जबरदस्त संघर्ष हुआ, कई लोग लहुलुहान हो गये। बीच बचाव में डॉ. अम्बेडकर को भी चोटें आयी। इस घटना से कई गाँवों में प्रतिक्रिया हुई तथा कई वर्षों तक मुकदमा चला। अंत में 5 वर्ष की मुकदमेबाजी व डॉ. अम्बेडकर के अथक प्रयासों व श्रम से अक्टूबर 1935 को अछूतों के लिए मंदिर प्रवेश का कानून बना और कालाराम मंदिर के दरवाजे सबके लिए खुल गये।
गोलमेज सम्मेलन (BR Ambedkar Round Table Conferences)
ब्रिटिश सरकार ने भारत की समस्याओं पर विचार करने के लिए कई भारतीय नेताओं को आमंत्रित किया। इसके लिए कई सम्मेलन व बैठकें हुई जिन्हें राउंड टेबल कांफ्रेंस या गोलमेज परिषद् कहा जाता है।
प्रथम गोलमेज परिषद् 12 नवम्बर 1930 को लंदन में शुरू हुई जिसमें दलितों का प्रतिनिधित्व करने के लिए डॉ. अम्बेडकर गये। इस गोलमेज सभा में दलितों के हितों की बात कहने के साथ साथ भारत की आज़ादी की माँग डॉ. अम्बेडकर ने की।
डॉ. अंबेडकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि “150 वर्षों के ब्रिटिश राज्य में हमारी हालत वैसी ही रही है, जैसी पूर्व में थी। ऐसी सरकार से हमारा क्या भला होगा? मजदूर और किसानों का शोषण करने वाली सरकार हम नहीं चाहते। हमारे दुःख हम स्वयं दूर करेंगे और इसके लिए हमारे हाथों में राजनैतिक सत्ता चाहिये। वह जमाना बीत गया जब आप फैसला करते थे और भारत मानता था। वह जमाना अब कभी नहीं लौटेगा. डॉ. अम्बेडकर का जोश और आक्रामक भाषण सुन अंग्रेज हड़बड़ा गए।
सितम्बर 1931 को दूसरी गोलमेज परिषद् में भी बाबा साहेब ने दलितों की वकालत करते हुए, भारत की आज़ादी हेतू तर्कपूर्ण भाषण दिया।
डॉ. अम्बेडकर के सतत् प्रयत्नों से अछूतों को मिले पृथक् निर्वाचन अधिकार के विरूद्ध गाँधीजी ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। गांधीजी के अनशन से सारे देश में चिंता की लहर दौड़ गयी। बहुत से कांग्रेसी नेता गांधीजी को बचाने के लिए डॉ. अम्बेडकर के पास पहुंचे।
पूना पैक्ट समझौता (BR Ambedkar Poona Pact)
डॉ. अम्बेडकर ने उनसे पूछा-जब ईसाईयों और मुसलमानों को पृथक् निर्वाचन का अधिकार मिला तब गांधीजी ने उसके विरोध में अनशन क्यों नहीं किया? यदि आप लोग अछूतों को पृथक् निर्वाचन का आधिकार नहीं देना चाहते तो फिर दूसरा कोई हल बताइए। पर केवल गांधीजी को बचाने के लिए मैं पिछड़े वर्गों के हितों की बलि देने को तैयार नहीं हूँ। तत्पश्चात् उच्चकोटि के भारतीय नेताओं के सतत् प्रयासों से गाँधीजी तथा बाबा साहेब के बीच एक समझौता हुआ, जिस पर 24 सितम्बर 1932 को हस्ताक्षर हुए। इतिहास में यही समझौता “पूना पैक्ट” के नाम से जाना जाता है। इस पर अछत समझे जाने वाले लोगों की ओर से बाबा साहेब ने तथा सवर्णों की ओर से मदन मोहन मालवीय ने हस्ताक्षर किए। इस संधि से राजगोपालाचारी इतने अधिक आनन्दित हुये कि उन्होने बाबा साहेब से अपना फाउन्टेन पेन ही बदल लिया । अछूतों का आरक्षण इसी समझौते (पूना पैक्ट) का ही एक अनुच्छेद है जो भारतीय समाज की सामाजिक, सास्कृतिक, राजनैतिक तथा आर्थिक समस्याओं को हल करने हेतू है, जिसे भारत के महान विद्वानों, राष्ट्र निर्माताओं तथा कर्णधारों ने स्वीकारा है।
बाबा साहेब का राजनीतिक सफ़र (Babasaheb Bhimrao Political Journey)
1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के अनुसार 1937 में आम चुनाव कराये गये। उस समय कांग्रेस के अलावा उदारवादी, मुस्लिम लीग और दूसरे दल चुनाव के लिए तैयारी करने लगे लेकिन दलितों का कोई राजनैतिक दल नहीं था। ऐसी नाजुक स्थिति में 1936 में डॉ. अम्बेडकर ने “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी” का गठन किया। उनकी पार्टी ने केवल बंबई प्रांत में चुनाव लड़ा क्योंकि अखिल भारतीय स्तर पर उनकी पार्टी चुनाव लड़ने में असमर्थ थी। 17 फरवरी 1937 को चुनाव हुए। कुल 15 स्थान अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हुए। बाबा साहेब की पार्टी ने 13 स्थान आरक्षित व 2 सामान्य सीटों पर भी चुनाव जीता। चुनाव में कांग्रेस पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। परिणामस्वरूप 1937 में 8 प्रांतों में कांग्रेस की सरकारें बनीं। “इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी’ ने बंबई प्रेसीडेंसी में विपक्षी दल के रूप में कार्य किया।
आरम्भ में डॉ. अम्बेडकर केवल दलित जातियों का ही संगठन बनाना चाहते थे परन्तु बाद में उन्होनें अनुभव किया कि सांप्रदायिकता के आधार पर पार्टियां नहीं बनानी चाहिए। इसलिए “दलित” शब्द के स्थान पर उन्होंने “लेबर” शब्द रखा। क्योंकि दलित में श्रमिक भी शामिल होता है। बाद के दिनों में दलितों की राजनीति में विस्तार तो हुआ लेकिन विकास के स्थान पर उसमें बिखराव अधिक आया। 1942 में पुरानी लेबर पार्टी को डॉ. अम्बेडकर ने “शैड्युल्ड कास्ट्स फेडरेशन’ में बदल दिया। 1946 में आम चुनाव हुए लेकिन फेडरेशन को एक भी सीट नहीं मिल पाई। कांग्रेस ही आरक्षित और सामान्य सीटों पर विजयी हुई, यह संयुक्त निर्वाचन व्यवस्था का ही परिणाम था। बाद में बंगाल सभा के अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधियों में उन्हें मुस्लिम लीग की सहायता से संविधान सभा के लिए चुनवा लिया गया।
श्रमिकों के अधिकारों की नींव रखी
डॉ. अम्बेडकर ने जीवन के हर क्षेत्र का विचार किया। स्वतंत्रतापूर्व वायसराय ने 7 जुलाई 1942 को अपनी कार्यकारिणी समिति के सदस्य के रूप में डॉ. अम्बेडकर को नियुक्त कर श्रम विभाग सौंपा। सन् 1942-1946 तक ऐसे त्रिपक्ष परिषदों का आयोजन किया गया जिसमें मजदूरों के सुख सुविधा एवं हितों से संबंधित अनेक विषय चर्चा में आए। इन वर्षों में डॉ. अम्बेडकर ने मजदूरों/कामगारों के संदर्भ में 24 कानून समंत किए। मजदूर संगठनों को सरकार की मंजूरी मिलनी चाहिए, ऐसा डॉ. अम्बेडकर को लगता था। डॉ. अम्बेडकर ने एक सरकारी विधेयक तैयार किया और वह बिल 1946 में संसद में रखा गया। आज मजदूरों के 14 से घटाकर 8 घंटे काम करने, श्रमजीवी महिलाओं को प्रसूति के दौरान अवकाश, नेशनल एम्प्लॉयमेंट पॉलिसी का कार्यान्वयन, शक्तिशाली ट्रेड यूनियन, हड़ताल का अधिकार, वेतन बढ़ोतरी, भत्ते, बोनस आदि सुविधाएं डॉ. अम्बेडकर के श्रम मंत्री के कार्यकाल में ही स्वीकृत हुई।
अगस्त 1947 में स्वाधीन भारत के जिस मंत्रिमंडल की घोषणा की गयी, उसमें डॉ. अम्बेडकर का नाम भी सम्मिलित था। केन्द्रीय मंत्रिमंडल में वे प्रथम दलित थे, जो मंत्री बने
डॉ. आंबेडकर का इस्तीफा
27 सितम्बर 1951 को डॉ. अम्बेडकर ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। त्यागपत्र के पीछे यूं तो बहुत से कारण थे लेकिन उनमें से मुख्य कारण निम्न थे
- डॉ. अम्बेडकर को ऐसा महसूस हुआ कि अछूत जातियों के हितों की बराबर उपेक्षा की जा रही है, उन्हें इस बात के लिए बेहद अफसोस था कि संविधान में पिछड़ी जातियों के लिए किसी (संरक्षण) की कोई व्यवस्था नही की गई।
- विदेश नीति में अनेक त्रुटियों का होना।
- नेहरू जी का विभिन्न मामलों, कार्ययोजनाओं पर आश्वासन देने के बाद उन्हें भुला देना।
- हिन्दू कोड बिल।
भारत के संविधान के निर्माता (BR Ambedkar Father of Indian Constitution)
प्रत्येक राष्ट्र का अपना एक संविधान होता है और इसी के द्वारा उस देश की शासन व्यवस्था निश्चित की जाती है। भारत का भी अपना एक संविधान है, यह संविधान लिखित और विस्तृत है। सर आइवर जैनिंग्स का कहना है कि ” भारत का संविधान संसार में सबसे अधिक लम्बा और विस्तृत संविधान है।
15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी शासन से स्वतंत्र हुआ और भारतीय इंडिपेंडेंस एक्ट लागू हुआ। 19 अगस्त 1947 को एक संविधान प्रारूप निर्मात्री समिति बनाई गई। इस समिति का अध्यक्ष डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को नियुक्त किया गया। भारत का संविधान बनाने में डॉ. अम्बेडकर को ही सबसे अधिक मेहनत करनी पड़ी थी। उन दिनों उनकी एक एक बैठक 18 – 18 घंटे की हो जाया करती थी। डॉ. अम्बेडकर पर संविधान निर्माण का कितना भार था, इसका उल्लेख करते हुए प्रारूप समिति के ही सदस्य श्री टी.टी. कृष्णामाचारी ने 5 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में दिए गए अपने भाषण में कहा कि “सदन सम्भवतः इस बात से अवगत है कि आपके द्वारा मनोनीत सात सदस्यों में से एक ने इस्तीफा दे दिया था। उसकी पूर्ति की गई। एक सदस्य की मृत्यु हो गई परन्तु उसके स्थान की पूर्ति नही हुई। एक सदस्य सुदूर अमेरिका में हैं और उनका स्थान भी नहीं भरा गया। एक सदस्य राजकीय मामलों में व्यस्त हैं अतएव उनका स्थान भी एक सीमा तक खाली रहता है। स्वास्थ्य संबंधी कारणों से एक या दो सदस्य दिल्ली से दूर हैं और वे अपना काम नही संभाल पाते। इसलिए कुल मिलाकर संविधान के प्रारूप को तैयार करने का सारा उत्तरदायित्त्व डॉ. अम्बेडकर पर ही आ पड़ा है, और मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि हम उनके प्रति बड़े आभारी हैं।
दिन रात परिश्रम के उपरांत डॉ. अम्बेडकर के नेतृत्व में संविधान का प्रारूप तैयार किया गया। संविधान प्रारूप निर्मात्री समिति के अध्यक्ष डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने संविधान का यह प्रारूप संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू को सौंप दिया। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने इसको स्वीकार व अंगीकृत किया। परन्तु भारत के प्रथम घोषित स्वतंत्रता दिवस 26 जनवरी 1930 की पुण्य स्मृति में इसको 26 जनवरी 1950 को ही लागू किया गया। इसलिए हम प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाकर तथा प्रत्येक वर्ष 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाकर गौरवान्वित होते हैं। प्रथम संविधान दिवस 26 नवम्बर 2015 को मनाया गया
भारतीय संविधान का अवलोकन करने के उपरांत कोलम्बिया विश्वविद्यालय, अमेरिका ने संविधान शिल्पी डॉ बी आर अम्बेडकर को 5 जनवरी 1952 को एल.एल डी. की उपाधि से विभूषित किया।
संविधान की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अम्बेडकर साहब ने कहा था कि संविधान चाहे कितना भी अच्छा हो, यदि उसको व्यवहार में लाने वाले लोग अच्छे न हों तो संविधान निश्चय ही बरा साबित होगा। अच्छे लोगों के हाथों में बुरे संविधान का भी अच्छा साबित होने की संभावना रहती है। भारत के लोग इसके साथ कैसा व्यवहार करेंगें यह कौन जान सकता है ?
डॉ. अम्बेडकर ने संविधान की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत हमारे समाज में व्याप्त बुराईयों और कुरीतियों का अंत कर दिया। उन्होंने संविधान की धारा 15 के अंतर्गत धर्म, जाति, लिंग, मूलवंश या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को कानूनी अपराध घोषित किया और कठोर दंड व जुर्माने की व्यवस्था की।
इस प्रकार संविधान की धारा 19 के अंतर्गत डॉ. अम्बेडकर ने भारत के सभी नागरिकों को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता दिला दी जबकि इससे पूर्व मजदूरों को जमींदारों के सामने, नौकर का अपने मालिक के समक्ष, दलितों का तथाकथित सवर्ण हिन्दूओं के आगे तथा स्त्रियों का पुरूषों के सामने बोलना भी अपराध माना जाता था।
संविधान की धारा 23 के अनुसार शोषण के विरूद्ध अधिकार बनाकर, उन्होंने गरीबों, बंधुआ मजदूरों व सर्वहारा वर्ग का दर्द मिटाया।
देश का शैक्षणिक स्तर सुधारने की खातिर डॉ. अम्बेडकर ने संविधान की धारा 24 में बाल मजदूरी को रोकने व संविधान की धारा 45 में राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों के अंतर्गत अनिवार्य शिक्षा का कानून बनाया।
जब तक भारत में लोकतंत्र रहेगा और संविधान की पालना की जाती रहेगी, तब तक बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर का नाम “संविधान निर्माता” के रूप में जाना जाता रहेगा। सम्पूर्ण भारत उनके इस योगदान के लिए आभारी रहेगा।
बाबा साहेब का बौद्ध धर्म में परिवर्तन (BR Ambedkar in Buddhism)
बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने हिंदू धर्म में सुधार करने तथा उसे मानवीय धर्म बनाने में पूरी शक्ति लगा दी। सन् 1935 में येवला नामक जगह पर एक सभा में उन्होंने धर्मांतरण की घोषणा की थी। उसके बाद विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने डॉ. अम्बेडकर को अपनी ओर आकृष्ट करने की कोशिश की परन्तु उन्हें कोई धर्म नहीं ऊँचा व उनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर होने लगा। 20 वर्षों तक संसार के सभी धर्मों का गहन अध्ययन करने के बाद बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने 5 लाख साथियों के साथ प्राचीन बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर अपने हाथों से भारत भूमि पर बौद्ध धर्म का दीया, जो सदियों तक बुझा रहा, को पुनः प्रज्वलित किया। बाबा साहेब मानवता और अहिंसा के महान् उपासक थे तथा दलितों के मानवीय उत्थान के निमित्त ऐसे किसी भी साधन का, जिसमें लेसमात्र भी हिंसा हो को उन्होंने कभी समर्थन नहीं किया।
वह ऐसे धर्म में दीक्षित हुए जो हिंसा का घोर विरोधी है जो भारतीय धर्म है। स्पष्ट है कि डॉ. अम्बेडकर ने साधन की पवित्रता तथा राष्ट्रीय हितों को समान महत्त्व दिया।
नागपुर से लौटने के बाद डॉ. अम्बेडकर दिल्ली आए तो उनका स्वास्थ्य कमजोर होने लगा। इसके बावजूद डॉ. अम्बेडकर ने चौथी संसार बौद्ध कांफ्रेंस में शामिल हाने हेतू काठमांडू (नेपाल) जाने का निश्चय किया और 14 नवम्बर 1956 को विमान द्वारा पटना से काठमांडू के लिए रवाना हुए।
बाबा साहेब का धार्मिक योगदान
डॉ. अम्बेडकर जी के बौद्ध धर्म ही चुनने के पीछे जो भाव था वो उन्होंने प्रखर विचारक, बद्धिजीवी व अपने मित्र श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी को इन शब्दों में बताया – मैं अपने जीवन के संध्याकाल में पहुंच चुका हूँ। हमारे लोगों पर आजकल संसार भर के भिन्न-भिन्न देशों के भांति-भांति के विचारों का एक प्रकार का आक्रमण जैसा हो रहा है। संघर्षरत लोगों को, इस देश के मुख्य प्रवाह से अलग करने के और दूसरे देशों की ओर आकृष्ट करने के भारी प्रयत्न चल रहे हैं। मेरे अपने ही करने के भारी प्रयत्न चल रहे हैं। मेरे अपने ही बहुत से साथी जो अस्पृश्यता, गरीबी और असमानता से बहुत दुःखी है, इस बाढ़ में बह जाने को तैयार बैठे हैं। फिर दूसरों के बारे में क्या होगा? उन्हें राष्ट्रीय जीवन की मुख्य धारा से अलग नहीं होना चाहिए; और मुझे उनको रास्ता दिखाना ही चाहिए। साथ ही हमें आर्थिक और राजनैतिक जीवन में भी कुछ परिवर्तन करने ही होंगे। इसी कारण से मैंने बौद्धधर्म स्वीकार किया।
श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने अपन पुस्तक “सामाजिक क्रांतीजी वाटचाल आणि डॉ. अम्बेडकर में लिखा कि जिस प्रकार सवर्णों और कम्युनिज्म के बीच गोलवलकर एक बाधा हो सकते हैं। उसी प्रकार अस्पृश्यों व कम्युनिज्म के बीच डॉ. अम्बेडकर एक बाधा हैं।
डॉ. अम्बेडकर ने वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था व अस्पृष्यता पर गहन अध्ययन किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “who were he Shudras” में शूद्रों की उत्पत्ति से शुरू करते हुए आर्यों का विभिन्न पहलुओं पर विश्लेषण करने बाद अपने निष्कर्ष दिये। डॉ. अम्बेडकर ने आर्यों को न केवल प्रजाति होने से बल्कि वे उनके बारे में विदेशी आक्रमणकारी होने के सिद्धांत को भी आलोचनात्मक निष्कर्ष के बाद नकार देते हैं। उन्होंने अपने शब्दों में स्पष्ट किया कि “आर्यों को विदेशी प्रजाति और भारत पर उनके आक्रमण का सिद्धांत मात्र एक मान्यता और धारणा है इससे अधिक कुछ भी नहीं”।
डॉ. अम्बेडकरजी को पुस्तकों का बड़ा चाव था। अपने निवास स्थान के एक भाग को उन्होंने “राजगृह” नाम दे रखा था जो वास्तव में उनका पुस्तकालय था। जब उनकी आंखें खराब हो गयी तो उन्हें एक ही बात का विशेष दुःख था कि वे पढ़ नहीं सकते थे। वे जब भी कहीं जाते ढेर सारी पुस्तकें खरीद लाते। एक बार न्यूयॉर्क में उन्होंने 2 हजार से भी अधिक पुस्तकें खरीद डालीं। उनकी अपनी लिखी हुई कुछ पुस्तकें हैं – अनटचेबल्स (अस्पृश्य), बुद्ध एंड हिज गास्पेल (बुद्ध और उनके उपदेश), रिवोल्युशन एंड काउंटर रिवोल्युशन इन इंडिया (भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति), बुद्ध एंड कार्ल मार्क्स और रिडल ऑफ हिन्दुइज्म (हिन्दुत्त्व की पहेली)। उनके ग्रन्थों से पता चलता है कि उनका अध्ययन कितना विशाल, उनकी जानकारी कितनी अथाह थी और वे कितने स्वतंत्र विचारक थे।
डॉ भीमराव अम्बेडकर की का निधन (Baba Saheb Ambedkar Death)
काठमांडू से डॉ. अम्बेडकर दिल्ली पँहुचने के पश्चात् बहुत थकावट महसूस करते थे। उनका स्वास्थ्य भी अब काफी खराब होने लगा था। फिर भी उन्होंने कठिन परिश्रम करना नहीं छोड़ा। वे कहा करते थे कि “जब मेरे सामने इतना सारा काम करने को पड़ा है, तो मैं अस्वस्थता के सामने सिर नहीं झुकाऊँगा।” जिस शमां ने कई वर्ष लाखों लोगों को प्रकाश दिया, जो अत्याचारों से पीड़ित लोगों को अपने प्यार के नीचे गर्मी पँहुचाती रही और जो कई वर्ष नूर ही नूर बिखेरती रही, वो अचानक 6 दिसम्बर 1956 की रात/प्रातः बुझ गई। बाबा साहेब की मृत्यु का समाचार सारे संसार में जंगल की आग की भाँति फैल गया। बाबा साहेब का पार्थिव शरीर दिल्ली से अंतिम सफर करते हुए विमान द्वारा 7 दिसम्बर 1956 को बम्बई पँहुचा। बाबा साहेब के इकलौते लड़के यशवंतराव अम्बेडकर ने सायं सात बजे चिता को आग दिखाई। बाबा साहेब ने दलित वर्गों के लिए असह्य दुःख उठाये और उनके लिए सतत् लड़ाई लड़ी। बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बेइन्साफी, जुल्म तथा गैर बराबरी के विरूद्ध जीवन भर संघर्ष किया। लाखों लोगों को जगाकर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर सदा की नींद सो गए।
मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मान
संविधान की रचना के लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा, क्योंकि उनके द्वारा रचित संविधान के अनुरूप चलकर ही आज भारत उत्तरोत्तर विकास की ओर अग्रसर है। यदि आज की भारतीय नारी घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर पुरूष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती है, यदि आज भारत आत्मनिर्भर है और यदि आज भारत विकासशील देशों की प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ता जा रहा है तो बहुत हद तक इस सब का श्रेय बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को जाता है। कालांतर में भारत सरकार ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार “भारत रत्न” (1990) से अलंकृत किया।
स्रोत – युग निर्माता (डॉ भीमराव अम्बेडकर)
लेखक – गिरीश शास्त्री
निष्कर्ष – आज के इस लेख में हम आपको डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जीवनी (Dr Bhimrao Ambedkar Biography in Hindi) के बारे में बताया। अपना सुझाव देना है तो कमेंट करके जरूर बताये।
FAQ
Q : भीमराव अम्बेडकर का जन्म कब हुआ था
Ans : 14 अप्रैल 1891 को
Q : डॉक्टर भीमराव आंबेडकर का जन्म स्थान कहाँ है?
Ans : डॉ॰ आम्बेडकर नगर जिसका पहले नाम महूँ हुआ करता था.
Q : भीमराव अंबेडकर का मृत्यु कैसे हुआ?
Ans : लम्बी बीमारी के चलते
Q : बीआर अंबेडकर की मृत्यु कब हुई?
Ans : 6 दिसंबर 1956 को
Q : डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?
Ans : कुल 32 डिग्रियां
Q : डॉ भीमराव अम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन क्यों किया उन्होंने कौन सा धर्म अपनाया?
Ans : बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने 5 लाख साथियों के साथ प्राचीन बौद्ध धर्म की दीक्षा ली.
Q : बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर के वर्तमान मे जीवित परिवार का विवरण
Ans : बाबा साहब के पोते प्रकाश यशवंत अम्बेडकर (पॉलिटिशियन), आनंदराज अम्बेडकर(पॉलिटिशियन), भीमराव यशवंत, रमाबाई आनंद.
Q : डॉ भीमराव अम्बेडकर ने किस वर्ष यह स्पष्ट किया था की वह हिन्दू धर्म को छोड़ेगे
Ans : 1956 में
Q : डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की असली कास्ट क्या है?
Ans : महार जाति
Q : भारत के संविधान के निर्माता कौन है?
Ans : डॉ. भीमराव अम्बेडकर
Q : भीमराव अंबेडकर की पुण्यतिथि कब?
Ans : 6 दिसंबर
Q : भीमराव अंबेडकर की जयंती कब?
Ans : 14 अप्रैल
Q : 14 अप्रैल 2023 को बाबा साहब का कौन सा जन्मदिन है?
Ans : 132वी जयंती
इन्हे भी पढ़े
nice jai bhim