महाराणा प्रताप का जीवन परिचय, इतिहास, जयंती, हिस्ट्री, पूरा नाम, पत्नियां, जन्म, कहानी, पुत्र, पुण्यतिथि, जयंती, मृत्यु, तलवार, पिता, भाई, युद्ध, भाला, लड़ाई, हाथी, शारीरिक शक्ति, वीरता के दोहे, हाइट (Maharana Pratap History in Hindi, Spouse, Children, Sword Weight, Bhala Weight, Father, Died, Horse, Birth Date)
देश में जब मुग़ल का प्रभाव बढ़ रहा था और बड़े से बड़े राजपूत राजा मुगलों की अधीनता स्वीकार कर रहे थे, उस बीच महाराणा प्रताप सिंह एक ऐसे राजपूत राजा बन कर उभरे जिन्होंने ना सिर्फ कभी मुगल की अधीनता स्वीकार की, बल्कि उनके साथ एक कड़ा संघर्ष किया। ये मेवाड़ के महाराणा थे जिन्होंने 35 साल तक राज किया। मुगल बादशाह अकबर से इनकी प्रतिद्वंद्विता जगजाहिर थी। अकबर ने कई बार इन्हें पकड़ने की कोशिश की लेकिन हर बार महाराणा प्रताप वीरता और साहस का परिचय देते हुए बचने में कामयाब हुए। इन्होंने अपने जीवन काल में कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े हैं, जिन्होंने भारत देश के भविष्य को दिशा देने में एक अहम भूमिका निभाई है। महाराणा प्रताप सिंह मां भारती के एक ऐसे वीर सपूत थे, जिन्होंने अपना बलिदान दे दिया, लेकिन कभी अधीनता स्वीकार नहीं की। आज के आर्टिकल में हम आपको भारत का वीर पुत्र महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi) और उनकी शौर्य की कहानी बताने वाले है।
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय (Maharana Pratap History in Hindi)
नाम (Name) | महाराणा प्रताप |
पूरा नाम (Full Name) | महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया |
जन्म तारीख (Date Of Birth) | 9 मई 1540 |
जन्म स्थान (Place) | कुंभलगढ़ दुर्ग, राजस्थान |
उम्र (Age) | 56 साल (मृत्यु तक) |
निधन की तारीख (Date of Death) | 19 जनवरी 1597 |
निधन का कारण (Cause of Death) | धनुष की डोरी को कसने के दौरान दुर्घटना |
निधन स्थान (Place Of Death) | चावंड, राजस्थान |
राज्याभिषेक (Coronation) | 28 फरवरी, 1572 गोगुंदा मे |
शासनकाल (Reign ) | 1572-1597 |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
जाति (maharana pratap cast) | राजपूत |
राजवंश (Dynasty) | मेवाड़ के सिसोदिया |
रियासत (Princely State) | मेवाड़ रियासत |
हल्दीघाटी युद्ध (Battle of Haldighati) | 18 जून 1576 |
लंबाई (maharana pratap height in feet) | 7.5 फीट |
वजन (Weight) | 110 किलो |
घोड़े का नाम (maharana pratap horse name) | चेतक |
हाथी का नाम (Elephant Name) | रामप्रसाद |
शिक्षक (Teacher) | राघवेंद्र |
विवाह (Marriage) | 1557 |
भाला-कवच और तलवारों का वजन (maharana pratap sword and bhala weight) | 208 किलो |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
महाराणा प्रताप का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Birth and early life of Maharana Pratap)
महाराणा प्रताप का जन्म मेवाड़ के राजा उदय सिंह द्वितीय के यहाँ 9 मई 1540 को मेवाड़ के कुंभलगढ़ में हुआ। इनकी मां जयवंता बाई थी, इनके तीन छोटे भाई भी थे, शक्ति सिंह, विक्रम सिंह और जगमाल सिंह। इनकी कोई सगी बहने नहीं थी हालांकि दो सौतेली बहने जरूर थी जिनका नाम चांद कवर और मान कंवर था। उदय सिंह द्वतीय की वैसे तो 18-20 पत्नियां थी जिनकी कई सारी संताने थी जिनमें से महाराणा प्रताप सबसे बड़े थे। महाराणा प्रताप बचपन से ही बहुत ही व्यवहार कुशल थे, तलवारबाजी, घुड़सवारी और युद्ध के लिए आवश्यक कौशल इन्होंने बहुत जल्दी सीख लिया। इनकी प्रतिभा को देखते हुए ही अधिकतर राज दरवारो की इच्छा थी कि उदय सिंह के बाद महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ की राजगद्दी संभाले।
पिता का नाम (Maharana Pratap Father Name) | महाराणा उदय सिंह द्वितीय |
माता का नाम (Maharana Pratap Mother Name) | सोनगरा |
भाई का नाम (Maharana Pratap Brother Name) | शक्ति सिंह, वीरमदेव, जत्र सिंह, कल्हा, शार्दुल सिंह, रूद्र सिंह, जगमाल, सगर, अगर, शाह पंचायन, नारायण दास, लूणकरण, महेश दास, सुल्तान, भाव सिंह, नागराज, नेत्र सिंह, वेरीसाल, साहेब खान, मान सिंह, और चांद सिंह |
पत्नी का नाम (maharana pratap spouse) | महारानी अजब्धे पंवार, अमरबाई राठौर, शहमति बाई, अलमदेबाई चौहान, रत्नावती बाई, लखाबाई, जसोबाई चौहान, चंपाबाई जंथी, सोलनखिनीपुर, फूलबाई राठौर और खीचर आशाबाई |
बेटे के नाम (Maharana Pratap Son Name) | अमर सिंह, सहसमल, भगवानदास, गोपाल, काचरा, दुर्जनसिंह, सांवलदास, कल्याणदास, चंदा, पूर्णमल, शेखा, रामसिंह, हाथी, नाथा, जसवंतसिंह, माना, रायभान |
बेटी का नाम (Maharana Pratap Daughter Name) | रखमावती, कुसुमावती, रामकंवर, दुर्गावती, सुक कंवर |
महाराणा प्रताप की पत्नियां (Maharana Pratap Spouse)
महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां और 25 बेटे थे. महाराणा प्रताप की पहली पत्नी महारानी अजब्धे पंवार थी. उन्होंने साल 1557 में सिर्फ 17 साल की उम्र में उनसे शादी की। इस शादी से महाराणा प्रताप के पहले बेटे और उत्तराधिकारी अमर सिंह प्रथम का जन्म साल 1559 में हुआ। अजब्धे और महाराणा प्रताप सबसे अच्छे दोस्त थे जिन्हें पति-पत्नी बनने से पहले प्यार हो गया था. ऐसा कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने राजपूतों को एकजुट करने के लिए दस और रानियों से शादी की थी.
महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi)
अकबर का चित्तौड़ पर कब्जा
अकबर यह अच्छी तरह जानता था कि चित्तौड़ पर कब्जा करना बिल्कुल आसान नहीं है और गलती से भी किसी को यह खबर लग गई कि वह चितौड़ पर हमला करके उसे कब्जाना चाहता है, तब तो यह काम असंभव हो जाएगा। इसलिए सन 1567 में वह अपने महल से यह कहकर निकला कि वह शिकार खेलने जा रहा है। उसके साथ कुछ सिपाही भी थे लेकिन उनका असली लक्ष्य चित्तौड़ पर कब्जा करना था।
उन्होंने चित्तौड़ को घेर लिया। दुश्मन के ऐसे अचानक हमले के लिए उदय सिंह तैयार नहीं थे, इसलिए सभी वरिष्ठ सरदारों ने यह सलाह दी कि उदय सिंह और राजकुमार प्रताप सिंह को वहां से निकल जाना चाहिए ताकि अकबर के खिलाफ युद्ध जारी रहे, उदय सिंह भी इसी के पक्ष में थे, लेकिन महाराणा प्रताप सिंह ने साहस का परिचय देते हुए कहा कि नहीं हमें मुगल का सामना करना चाहिए।
उस वक्त महाराणा प्रताप सिर्फ 27 वर्ष के थे हालांकि प्रताप सिंह को बाद में वरिष्ठ सरदारों की बात मानकर महल से जाना पड़ा और इसी के साथ 1567 में अकबर ने चित्तौड़ के किले पर कब्जा कर लिया.
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
महाराणा प्रताप के राज्याभिषेक का पूरा घटनाक्रम भी बहुत ही दिलचस्प है। महाराणा प्रताप वैसे तो अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थे, इसलिए राजगद्दी के आधिकारिक उत्तराधिकारी महाराणा प्रताप ही थे लेकिन लेकिन शुरुआत में ऐसा नहीं हुआ। उदय सिंह की सबसे प्यारी पत्नी धीरबाई भटियानी थी, जिनका बेटा जगमाल सिंह था। वह चाहती थी कि इनका बेटा आगे चलकर राजा बने। अपनी पत्नी की इच्छा के सामने उदय सिंह भी ज्यादा कुछ नहीं कह सके और जगमाल सिंह को राजा बना दिया।
अब यह वह समय था जब दिल्ली में मुगल बादशाह अकबर का शासन हुआ करता था। अपने पूर्वज मुगल शासकों के विपरीत अकबर तेजी से मुगल सल्तनत का विस्तार कर रहा था और इसके लिए वह युद्ध नीति की जगह कूटनीति का उपयोग कर रहा था। कई राजपूत राजाओं को धन का लालच देकर, उनसे वैवाहिक संबंध बनाकर उनकी सल्तनत को अपने अधीन कर चुका था।
राजा जगमल का स्वभाव भी कुछ लालची किस्म का था, इसलिए कई सरदारों ने यह इच्छा जताई कि जगमल की जगह महाराणा प्रताप को राजा बनाया जाए, हालांकि महाराणा प्रताप जगमल की खातिर मेवाड़ छोड़कर जाने के लिए भी तैयार थे लेकिन कई वरिष्ठ सरदारों की इच्छाओं को देखते हुए वह रुके और इसके बाद जगमल को राजगद्दी छोड़नी पड़ी और अंततः 1 मार्च सन 1573 को महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ।
अकबर की मेवाड़ पर नजर
खिलजी के बाद अकबर दूसरा ऐसा शासक था, जिसने पूरे भारत को एक साम्राज्य के नीचे लाने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की थी, लेकिन मेवाड़ पर अभी भी अकबर का कब्जा नहीं था। अकबर चाहता था कि मेवाड़ से गुजरात जाने के लिए एक स्थाई मार्ग बना दिया जाए लेकिन उसका यह सपना तब तक नहीं पूरा हो सकता था, जब तक मेवाड़ उसके आधीन हो जाए और मेवाड़ अकबर के आधीन तभी हो सकता था जब महाराणा प्रताप सिंह अकबर की अधीनता स्वीकारते। अकबर ने महाराणा प्रताप को कूटनीति से मनाने की कोशिश की। उसने कई नुमाइंदे भेजें जो महाराणा प्रताप को यह समझा सके कि उन्हें अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए लेकिन महाराणा प्रताप अपने निर्णय पर अडिग रहे।
महाराणा प्रताप और मानसिंह की मुलाकात
मानसिंह वैसे तो राजस्थान का एक राजपूत राजा था, लेकिन वो मुगलों के प्रति बहुत वफादार थे। महाराणा प्रताप सिंह अकबर की अधीनता स्वीकार कर ले, यह संदेश मानसिंह भी एक बार लेकर आया था।
ऐसे ही एक बार की बात है शोलापुर विजय के बाद मान सिंह वापस हिंदुस्तान आ रहा था तभी उसने महाराणा प्रताप से मिलने की इच्छा व्यक्त की। उस वक्त महाराणा प्रताप कमलमीर में थे जो कि उदयपुर के पास 3568 फीट ऊंचाई पर स्थित एक जगह है। महाराणा प्रताप को यह जगह काफी सुरक्षित लगती थी, क्योंकि एक तो यह ऊंचाई पर बसी थी और यहां तक पहुंचना भी आसान नहीं था, इसके चारों तरफ खाई बनी हुई थी। अब जैसे ही मानसिंह कमलबीर पहुंचे तो उनका काफी भव्य स्वागत किया गया। स्वागत सत्कार के बाद भोजन इत्यादि की व्यवस्था की गई जिसमें प्रताप सिंह के राजकुमार अमर सिंह ने मेजबानी की। महाराणा प्रताप को उपस्थित न देखकर मान सिंह ने राजकुमार अमर सिंह से पूछा कि ऐसी क्या बात है जो महाराणा प्रताप नहीं हैं? तो उन्होंने बताया कि उनके सिर में दर्द है, लेकिन मानसिंह ने इच्छा जताई कि वे महाराणा प्रताप के साथ ही भोजन करेंगे। यह संदेश जब महाराणा प्रताप तक पहुंचा तो उन्होंने ना चाहते हुए भी मानसिंह के सामने आना ठीक समझा। महाराणा प्रताप ऐसे राजपूत राजाओं से काफी सख्त नफरत करते थे, जिन्होंने मुगल सल्तनत की अधीनता को स्वीकार कर लिया था और मानसिंह उन्हीं में से एक थे। महाराणा प्रताप ने काफी प्रयास किया कि मानसिंह से अपनी नाराजगी ना दिखाए लेकिन वह खुद को नहीं रोक सके और यह कह दिया कि अकेले आए हैं, अपने फूफा को नहीं लेकर आए? अगली बार आना तो अपने फूफा को भी लेकर आना। यह बात उन्होंने इसलिए कही क्योंकि मान सिंह की बुआ का विवाह अकबर से हुआ था। यह बात मान सिंह को बहुत चुभी और जाते-जाते उसने कहा कि तुम्हारा यह अभिमान मैं एक दिन जरूर उतार लूंगा.
हल्दीघाटी का युद्ध
अकबर को अब स्पष्ट हो चुका था कि महाराणा प्रताप सिंह किसी भी शर्त पर झुकने वाले नहीं है, इसलिए युद्ध ही अब आखिरी विकल्प है। इस तरह 18 जून 1576 को हल्दीघाटी में मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप सिंह के बीच एक भीषण युद्ध हुआ, जो 3 घंटे से ज्यादा समय तक चला। हालांकि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं निकला लेकिन कई इतिहासकार कहते हैं कि मुगल बादशाह अकबर को इसमें जीत मिली लेकिन वहीं दूसरे पक्ष का यह कहना है कि इस युद्ध का मुख्य मकसद महाराणा प्रताप सिंह को मारना या बंदी बनाना था जो कि हो नहीं सका इसलिए इस युद्ध में कोई विजेता नहीं था।
महाराणा प्रताप इस युद्ध में 3000 घुड़सवार और 400 भील धनुर्धर के साथ मैदान पर आए थे जबकि अकबर के पास मुगल की एक विशाल सेना थी जिसकी संख्या 10000 से भी ज्यादा बताई जाती है। हालांकि महाराणा प्रताप सिंह के सैन्य छावनी का एक योद्धा भी मुगल के 10 सैनिकों के बराबर था क्योंकि उन्हें इतना उच्च स्तर का प्रशिक्षण दिया गया था।
चेतक का पराक्रम
महाराणा प्रताप यह अच्छी तरह जानते थे कि जब तक अकबरको नहीं मारा जाएगा तब तक वह युद्ध नहीं जीत सकते, लेकिन अकबर तक पहुंचना आसान नहीं था क्योंकि वह एक हाथी के ऊपर बैठा हुआ था और महाराणा प्रताप घोड़े पर सवार थे। मुगल सेना के जितने भी हाथी थे उन सभी के सूंड पर तलवारे भी होती थी, जिससे वह हमला करते थे। ऐसे में अकबर तक पहुंचना कठिन था, लेकिन चेतक ने सूझबूझ दिखाते हुए अकबर के हाथी की तरफ दौड़ लगाया और हाथी के दोनों दांतो पर अपनी दोनों टांगे रखकर एक लंबी छलांग मारी और तभी महाराणा प्रताप ने अपने भाले से अकबर के ऊपर जोरदार प्रहार किया, हालांकि अकबर बस थोड़े अंतर से बच निकला लेकिन अकबर का महावत जरूर मारा गया।
इस हमले में चेतक का दाहिना पैर भी जख्मी हो गया, लेकिन चेतक ने स्वामी भक्ति दिखाते हुए छावनी से दूर जोरदार दौड़ लगाई। कई मुगल सैनिक महाराणा प्रताप के पीछे लगे हुए थे, ताकि उन्हें पकड़कर बंदी बना सके लेकिन चेतक की दौड़ के आगे मुगलिया घोड़ों की दौड़ फीकी साबित हुई। इसी बीच एक 25 फुट चौड़ा नाला पड़ता है जो किसी घोड़े के लिए कूदना लगभग असंभव था, लेकिन चेतक इसे नही पार करता तो महाराणा प्रताप का कैद होना भी निश्चित था। चेतक ने इतनी लंबी छलांग लगाई कि वह नाला पार कर गया, जबकि मुगल सैनिक के घोड़े नाले को पार नहीं कर पाए और इस तरह चेतक ने महाराणा प्रताप की जान बचाई।
देवर की लड़ाई
हल्दीघाटी युद्ध मे महाराणा प्रताप ने लगभग आधी सेना खो दी थी, और उदयपुर, कुंभलगढ़, गोगुंडा, छप्पन जैसे कई महत्वपूर्ण इलाके मुगल के कब्जे में चले गए। तब महाराणा प्रताप ने सीधा युद्ध करने की वजाय गोरिल्ला युद्ध करना शुरू कर दिया। उन्होंने मुगल सेना को गोरिल्ला युद्ध से चुन चुन कर मारा, जिससे अकबर बहुत परेशान हुआ और 5000 सैनिक वाले कई अभियान महाराणा प्रताप को पकड़ने के लिए भेजे, लेकिन किसी भी अभियान को सफलता नही मिली। इसी दौरान महाराणा प्रताप आर्थिक बदहाली से गुजर रहे थे। वो और उनका पूरा परिवार घास की रोटी खाकर गुजारा कर रहे थे, लेकिन इसके बाद भी उनके चेहरे पर परेशानी की कोई शिकन तक नही दिखती थी। तब महाराणा प्रताप के मंत्री भामाशाह ने काफी मदद की। उन्होंने महाराणा प्रताप के साथ मिलकर एक बार फिर सैनिकों का गठन किया जिसमें 10,000 से ज्यादा सैनिक थे और एक बड़े हमले की योजना बनाई। 16 सितंबर 1582 को, दशहरा के दिन महाराणा प्रताप ने मेवाड़ जीतने का संकल्प किया और पूरी सेना को 2 भागो में बाँट दिया, जिसमें एक का नेतृत्व महाराणा प्रताप और दूसरे का अमर सिंह कर रहे थे। महाराणा प्रताप सिंह ने देवर पर हमला किया, यहाँ मुगल की किलेबन्दी थी, जिसकी देखरेख सुल्तान खान कर रहा था। इस युद्ध मे मुगलों को पराजय मिली। अमर सिंह ने सुल्तान खान को मार दिया, जिसके बाद 36000 मुगल सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और देवर पर महाराणाप्रताप का कब्जा हो गया। इसके बाद आमेट और कुंभलगढ़ पर हमला करके उसे भी जीत लिया। दो जगह पराजय देखने के बाद मुगल सेना खुद ही उदयपुर छोड़कर भाग गई, और वहाँ भी महाराणा प्रताप सिंह का कब्जा हो गया। इतिहासकारो की नजर में देवर की लड़ाई महाराणा प्रताप सिंह के जीवन का एक बेहद प्रमुख युद्ध था जिसमें चित्तौड़ और मंडलगढ़ को छोड़कर बाकी पूरे मेवाड़ को जीत लिया था।
महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु
महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु (maharana pratap died) 19 जनवरी 1597 को हुई थी। उनकी मृत्यु की वजह बनी, एक शिकार के दौरान आई चोट, जिससे वो उबर नही सके। इनकी मृत्यु के बाद इनके सबसे बड़े बेटे अमर सिंह महाराणा बने। महाराणा प्रताप जीवन भर मुगलों की अधीनता नही स्वीकार किये थे और और मृत्यु शैय्या पर अपनी आखिरी सांस लेने से पहले अपने बेटे को भी यही सलाह दी थी कि जान चली जाए लेकिन गुलामी स्वीकार मत करना।
निष्कर्ष :- आज के इस आर्टिकल में हमने आपको बताया महाराणा प्रताप का इतिहास (Maharana Pratap History in Hindi) के बारें में. करते है आपको यह जानकरी जरुर पसंद आई होगी.
FAQ
Q : महाराणा प्रताप सिंह कौन थे?
Ans : मेवाड़ में सिसोदिया वंश के राजा
Q : महाराणा प्रताप सिंह की मृत्यु कैसे हुई?
Ans : धनुष की डोर खींचने से
Q : महाराणा प्रताप की सबसे प्रिय रानी कौन थी?
Ans : महारानी अजबदे पंवार
Q : महाराणा प्रताप की पत्नी कितनी थी?
Ans : 14 पत्नियां
Q : महाराणा प्रताप के कुल कितने बच्चे थे?
Ans : 22 बच्चे
Q : महाराणा प्रताप के कितने बेटे और कितनी बेटियां थी?
Ans : 17 बेटे और 5 बेटियां
Q : महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ
Ans : 9 मई 1540
Q : महाराणा प्रताप जयंती कब है
Ans : 9 मई
Q : महाराणा प्रताप का पूरा नाम क्या है?
Ans : महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया
Q : महाराणा प्रताप की तलवार कितने किलो की थी
Ans : 25 किलो
Q : महाराणा प्रताप के पिता का नाम क्या था?
Ans : महाराणा उदय सिंह द्वितीय
Q : महाराणा प्रताप के कितने भाई थे
Ans : 24 भाई
Q : महाराणा प्रताप की पत्नी अजबदे की मृत्यु कैसे हुई
Ans : हल्दीघाटी की लड़ाई के बाद चोट लगने के कारण
Q : महाराणा प्रताप के पुत्र का नाम क्या था
Ans : अमर सिंह
Q : महाराणा प्रताप का जन्म कहां हुआ था
Ans : कुंभलगढ़ दुर्ग, राजस्थान
Q : महाराणा प्रताप के हाथी का क्या नाम था
Ans : रामप्रसाद
Q : महाराणा प्रताप का वजन कितना था
Ans : 110 किलो
Q : महाराणा प्रताप का भाला कितने किलो का था
Ans : 208 किलो
Q : महाराणा प्रताप पुण्यतिथि कब है
Ans : 19 जनवरी को
Q : महाराणा प्रताप को किसने मारा
Ans : महाराणा प्रताप अपने धनुष की डोर को खींचते समय चोट लगने की वजह से हुई
Q : क्या महाराणा प्रताप का खानदान आज भी है?
Ans : अरविन्द सिंह मेवाड़
Q : क्या महाराणा प्रताप के वंशज आज भी जिंदा है?
Ans : हाँ, लक्ष्यराज सिंह
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