नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय | Netaji Subhas Chandra Bose Biography Hindi

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नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय, जीवनी, इतिहास, बायोग्राफी, कहानी , निबंध, विचार, जयंती, के बारे में, सुविचार, जन्म, मृत्यु ,पुण्यतिथि, भाषण, एजुकेशन, पत्नी, परिवार, धर्म, जाति, घर, करियर, विवाह   (Netaji Subhas Chandra Bose Biography Hindi, Wikipedia, Jayanti, Birthday, Quotes, Books, birthday, Information, History, Religion, Cast, Marriage, wife, Education, Essay, Death Anniversary,Born, Died, Death Reason)

देश को गुलामी और दासता के जीवन से मुक्त कराने के लिए हमारे देश के कई महापुरुषों ने अपने अपने तरीके से प्रयास किए, उन्हीं में से एक नेताजी सुभाष चंद्र बोस है, जिन्होंने अंग्रेजों के हर एक प्रतिकार का जवाब उन्हीं की भाषा में दिया. अपने दुश्मन के ईट का जवाब पत्थर से देने वाली कहावत नेता जी के चरित्र पर बिल्कुल सही बैठती है। नेताजी पहले और एकमात्र ऐसे नेता बने, जिन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला करने के लिए अपनी खुद की एक सेना बनाई, जिसे आजाद हिंद फौज का नाम दिया गया।  नेताजी के द्वारा दिए गए कई नारे जैसे कि ‘जय हिंद’ और ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ आज भी हर भारतीय के हृदय में देश के लिए कुछ कर गुजरने का स्पंदन पैदा कर देते हैं।

तो आज के इस लेख में हम आपको नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय (Subhas Chandra Bose Biography Hindi) से जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में विस्तार से आपको बताएंगे।

Netaji Subhas Chandra Bose Biography Hindi 

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय (Subhas Chandra Bose Biography Hindi)

नाम (Name) सुभाष चंद्र बोस (Subhas Chandra Bose)
असली नाम (Real Name) नेता जी सुभाषचंद्र बोस
जन्म तारीख (Date Of Birth) 23 जनवरी 1897
सुभाष चंद्र बोस जयंती (Subhas Chandra Bose Birthday) 23 जनवरी
जन्म स्थान (Place) कटक, उड़ीसा
उम्र (Age) 48 साल
मृत्यु की तारीख (Date of Death) 18 अगस्त, 1945
मृत्यु का कारण (Death Cause) विमान दुर्घटना में जलने से
मृत्यु स्थान (Place Of Death) ताइवान, जापान
व्यवसाय  (Profession) स्वतंत्रता सेनानी
राजनीतिक दल (Political Party) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
शिक्षा (Educational Qualification) स्नातक
स्कूल (School) प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल
कॉलेज (College) स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कलकत्ता
नागरिकता (Citizenship) भारतीय
भाषा (Languages) हिंदी, इंग्लिश     
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) विवाहित
पिता का नाम (Subhas Chandra Bose Father Name) जानकीनाथ बोस
माता का नाम (Subhas Chandra Bose Mother Name) प्रभावती देवी
पत्नी का नाम (Subhas Chandra Bose Wife Name) एमिली शेंकल
पुत्री का नाम (Subhas Chandra Bose Daughter Name) अनीता बोस

सुभाष चंद्र बोस का जन्म और परिवार (Subhas Chandra Bose Birth and Family)

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। ये एक हिंदू कायस्थ परिवार से ताल्लुक रखते थे। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था। इनके पिता कटक में ही वकालत किया करते थे, क्योंकि इनके पिता शुरुआत में एक सरकारी वकील थे इसलिए सुभाष चंद्र बोस के परिवार का एक अलग ही सम्मान समाज में हुआ करता था। हालांकि बाद में उन्होंने प्राइवेट वकालत करना शुरू कर दिया।  ये विधानसभा के एक माननीय सदस्य भी थे और इनके इन्हीं उपलब्धियों के कारण अंग्रेजों ने जानकीनाथ बोस को रायबहादुर खिताब दिया।

जानकी नाथ और प्रभावती के कुल 14 बच्चे थे, जिसमें सुभाष चंद्र बोस 9 वी संतान थी। अपनी बहनों और सात भाइयों में से सुभाष चंद्र बोस को सबसे ज्यादा लगाव शरदबाबू से था। 

सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा (Subhas Chandra Bose Birth And Education)

सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा नेप्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल और रेवेनशा कॉलेजियेट स्कूल में हुई। वर्ष 1915 में उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की, हालाँकि परीक्षा से पहले उनका स्वास्थ्य खराब था, जिसके कारण वे अच्छी तरह से अध्ययन नहीं कर सके, इसके बाद उन्होंने बी.ए. प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और 1919 में बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।

सुभाष चंद्र बोस की रूचि शुरू से सेना में भर्ती होने की थी, लेकिन आंखों की ज्योति ठीक ना होने के कारण उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया। इनका आध्यात्मिक की तरह की बहुत गहरा और रुझान था, इसीलिए मात्र 15 वर्ष की आयु में ही इन्होंने विवेकानंद के द्वारा लिखे सभी साहित्य पूरी तरह पढ़ लिया। महर्षि दयानंद सरस्वती और रविंद घोष जैसे आध्यात्मिक जगत की पराकाष्ठा में पहुंचे व्यक्तियों के विचार, सुभाष चंद्र बोस को बहुत प्रभावित करते थे। 

हालांकि जीवनयापन करने के लिए एक नौकरी भी चाहिए थी और उनके पिता की बहुत ज्यादा इच्छा थी कि सुभाष चंद्र बोस भारतीय सिविल सेवक बने, लेकिन यह परीक्षा बहुत कठिन थी, इसीलिए इसकी तैयारी करने के लिए सुभाषचंद्र बोस को इंग्लैंड जाना पड़ता और उन्होंने तय किया कि वो इस परीक्षा में बैठेंगे, जिसके बाद 15 सितंबर 1919 को वह इंग्लैंड रवाना हो गए।  वहां उन्होंने इस परीक्षा की जमकर तैयारी की और 1920 में इस परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ जिसमें सुभाषचंद्र बोस को चौथा स्थान प्राप्त हुआ था। 

परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने यह नौकरी ज्वाइन कर ली, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी उन्हें रास आती थी, और इससे उनके अंदर एक द्वंद ने जन्म लिया, जिसमें वो फंस गए और उसका निराकरण करने के लिए उन्होंने अपने बड़े भाई शरदबाबू को एक पत्र लिखकर यह पूछा कि क्या उन्हें यह नौकरी करनी चाहिए? ये जानते हुए भी कि उनके अंदर महर्षि अरविंद और दयानंद सरस्वती के विचार कुछ और करने को प्रेरित कर रहे हैं,  और आखिरकार 22 अप्रैल 1921 को उन्होंने  आईसीएस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 

सुभाष चंद्र बोस का राजनैतिक जीवन (Subhas Chandra Bose Political Life)

उन दिनों कोलकाता में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देशबंधु चितरंजन दास का बहुत ज्यादा नाम था। नेताजी भी इनके काम से बहुत प्रभावित थे, उनके साथ काम करना चाहते थे, और जब वह इंग्लैंड में थे तभी उन्होंने पत्र व्यवहार के जरिए देशबंधु चितरंजन दास से उनके साथ काम करने की इच्छा जाहिर की, जिसके बाद वह भारत आ गए।  देशबंधु चितरंजन दास भी महात्मा गांधी के ही सहयोगी थे, इसीलिए जब सुभाषचंद्र बोस भारत आए तो उन्हें सबसे पहले महात्मा गांधी से मुलाकात करने का अवसर मिला, और 20 जुलाई 1921 को ऐतिहासिक तारीख बनी जब महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस पहली बार मिले। 

नेताजी को महात्मा गांधी ने देशबंधु के साथ काम करने का सुझाव दिया और वह करने भी लगे। पूरे भारत में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन की गूंज थी, इसलिए नेता जी भी इसमें शामिल हो गए लेकिन चौरा चौरी की अकस्मात घटना के कारण इस आंदोलन को बंद करना पड़ा।  अब आंदोलन तो भले ही बंद हो गया लेकिन कई कांग्रेसी नेता इस आंदोलन को बंद करने के पक्ष में नहीं थे, उन्हीं में से एक थे देशबंधु जिन्होंने कांग्रेस के अंदर ही एक स्वराज पार्टी स्थापित कर दी। इस पार्टी ने महापालिका का चुनाव जीत लिया। जिसके बाद सुभाषचंद्र बोस को महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया गया। इस पद पर रहते हुए नेता जी ने इतने अच्छे परिवर्तन किए जिससे हर किसी के मन में नेताजी की एक अच्छी छवि बन गई और बहुत ही कम समय में यह एक ख्याति प्राप्त नेता बन गए और इनका कद बढ़कर जवाहरलाल नेहरू के बराबर हो गया। 

नेताजी की यूरोप यात्रा

नेताजी को अपने जीवन में कई बार कारावास में समय गुजारना पड़ा। 1930 में भी वह कारावास में ही थे, तभी उनकी तबीयत खराब हो गई और यह इतनी खराब हो गई कि अंग्रेजों को डर लगने लगा कि कहीं कारावास में ही नेताजी की मृत्यु ना हो जाए, इसलिए उन्होंने डॉक्टर की सलाह पर नेताजी को यूरोप में इलाज कराने के लिए कहा नेताजी भी मान गए और वह यूरोप चले गए। 

यूरोप प्रवास के दौरान ही नेता जी इटली भी गए और वहां के तानाशाह मुसोलिनी से मिले. मुसोलिनी और नेताजी के बीच काफी अच्छे संबंध स्थापित हो चुके थे और इसीलिए मुसोलिनी ने यह वादा भी किया कि स्वतंत्रता संग्राम के इस आंदोलन में वह नेता जी का साथ देगा।  मुसोलिनी से अच्छे संबंध के कारण ही बाद में नेताजी हिटलर से भी मिल पाए हालांकि हिटलर का भारत के प्रति कुछ अच्छा रवैया नहीं था और उसने ऐसा कोई वादा, नेताजी से नहीं किया। 

यूरोप में ही नेता जी की मुलाकात विट्ठल भाई पटेल से हुई। इन दोनों के बीच महात्मा गांधी के कार्यों के संबंध में बहुत चर्चा हुई और काफी हद तक इन लोगों ने महात्मा गांधी के कार्यों की आलोचना भी की, लेकिन कुछ समय बाद बीमारी के चलते विट्ठल भाई पटेल की मृत्यु हो जाती है और दोनों साथ में कुछ आगे कार्य नहीं कर पाते। 

नेताजी का कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष बनना

1938 में महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस को चुना। ये इनकी पहली पसंद थे, लेकिन नेताजी और महात्मा गांधी के कार्यपद्धति में बहुत अंतर था और शायद इसीलिए महात्मा गांधी को नेताजी के द्वारा किए गए कार्य पसंद नहीं आए और नतीजतन 1939 में जब दोबारा कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुए तो महात्मा गांधी ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को समर्थन नहीं दिया, इनकी जगह पट्टाभि सीतारमैया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, हालांकि रविंद्र नाथ टैगोर, मेघनाथ साहा और प्रफुल्ल चंद्र रॉय जैसे कई बड़ी शख्सियत ने नेताजी के ही अध्यक्ष बने रहने की वकालत की पर गांधीजी ने नहीं सुनी और काफी समय बाद अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस पार्टी में चुनाव, जिसमें नेताजी को 203 मतों से जीत हासिल हुई। 

हालांकि इसके बाद भी महात्मा गांधी खुश नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस पार्टी के सभी सदस्यों से साफ-साफ कहा कि जिन्हें नेताजी का कार्यकलाप पसंद नहीं है वह पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं और इस तरह पार्टी के कई लोगों ने नेताजी का साथ नहीं दिया और मजबूरन 1939 में नेता जी को अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा।

जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस के अंदर ही फॉरवर्ड ब्लॉक नाम की एक पार्टी बनाई लेकिन बाद में नेता जी को ही कांग्रेस पार्टी से निकाले जाने के कारण यह पार्टी भी कांग्रेस से पूरी तरह अलग हो गई। 

1939 में जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उसमें इंग्लैंड की स्थिति कमजोर थी, इसीलिए उनका यह मानना था कि इस कमजोर स्थिति का भारत को पूरा फायदा उठाना चाहिए और अपने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में तीव्रता लानी चाहिए लेकिन महात्मा गांधी इसके पक्ष में नहीं थे हालांकि नेता जी के नेतृत्व में फारवर्ड ब्लाक में अंग्रेजो के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजा दिया था। इसी दल ने हालवेट स्तम्भ को तोड़ा था जो गुलामी का प्रतीक था। 

नेताजी की जापान यात्रा

सुभाषचंद्र बोस की गतिविधियों से अंग्रेजी हुकूमत डर गए और उन्होंने सुभाष चंद्र बोस सहित पार्टी के समस्त नेताओं को बंद कर दिया, लेकिन सुभाष चंद्र बोस आमरण अनशन पर बैठ गए जिसके बाद अंग्रेजों ने इन्हें इनके घर में ही नजरबंद कर दिया लेकिन वहां से किसी तरह सुभाषचंद्र बोस भागने में कामयाब रहे और अपना भेष बदलकर रूस की राजधानी मास्को से होते हुए इटली पहुंच गए, जहां हिटलर से मुलाकात हुई। हालांकि इस मुलाकात का कोई सुखद परिणाम नहीं हुआ, जिसके बाद उन्होंने जापान की यात्रा की और जापान में ही कई बड़े नेताओं से दोस्ती करने के बाद आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की। 

जापान के खिलाफ युद्ध में कई भारतीयों ने ब्रिटेन की तरफ से लड़ाई लड़ी थी, जिन्हें जापान ने कैद कर लिया था लेकिन सुभाष चंद्र बोस के कहने पर इन्हें रिहा कर दिया गया और इन्हीं लोगों से मिलकर बनी आजाद हिंद फौज. 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द की नींव रखी जिसका मतलब था आजाद भारत की सरकार और आश्चर्यजनक बात यह रही कि इस सरकार को 9 देशों ने मान्यता भी दी।

6 जुलाई 1944 को नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो से महात्मा गांधी के नाम एक भाषण दिया और इस भाषण का सिर्फ एकमात्र उद्देश्य था कि महात्मा गांधी को आजाद हिंद फौज की स्थापना उद्देश्य के बारे में स्पष्ट जानकारी दी जा सके। अपने भाषण में उन्होंने महात्मा गांधी से इस चीज का भी आग्रह किया कि जापानी सेना से मदद लेने में हिचकिचाएं नहीं और यही वह भाषण था जिसमें सुभाष चंद्र बोस ने पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा था, तभी से महात्मा गांधी के नाम के साथ राष्ट्रपिता जोड़ा जाने लगा।

अंडमान और निकोबार पर कब्जा

जापानी सेना और आजाद हिंद फौज के जवानों ने मिलकर अंडमान और निकोबार दीप समूह पर अटैक किया, जिसमें अंग्रेजों को यह दोनों द्वीप छोड़कर भागना पर और इस तरह यह सुभाष चंद्र बोस के नियंत्रण में आ गया। इसके बाद इंफाल और कोहिमा में भी इन दोनों सेनाओं ने हमला किया जो इन्होंने लगभग जीत ही लिया था, लेकिन दूसरी तरफ द्वतीय विश्वयुद्ध में जापान की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, उसके सहयोगी देश जर्मनी और इटली भी बुरे हाल में फंसे थे ऐसे में जापान को इंफाल और कोहिमा छोड़कर वापस आना पड़ा और इसे आजाद हिंद फौज भी कमजोर हो गई जिसका नतीजा यह हुआ कि यह दोनों इलाके आजाद हिंद फौज की नियंत्रण से निकल गए। 

सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु (Subhas Chandra Bose Death)

दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बावजूद देश को आजाद कराने का यह बिगुल थमने ना पाए इसके लिए उन्होंने दूसरी और से मदद लेने की सोची और इसीलिए  वो 18 अगस्त 1945 को मंचूरिया के लिए हवाई जहाज से निकल गए लेकिन  23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने जानकारी दी कि एक विमान दुर्घटना में  जो कि सैगोन में घटी थी, उसमें नेता जी गंभीर रूप से जख्मी हो गए थे और  ताइहोकू सैनिक अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।  लेकिन जानकारी पुष्ट नहीं थी इसलिए 1956 और 1977 में आयोग का गठन करके इसकी सत्यता का पता लगाने की कोशिश हुई और दोनो आयोग ने कहा कि ये खबर सच है। 

1999 में मनोज कुमार मुखर्जी में एक आयोग और बना, जिसे ताइवान सरकार ने बताया कि 1945 में उस जगह कोई विमान हादसा हुआ ही नही था, जिसमें नेता जी के मारे जाने का दावा किया जा रहा है, हालांकि सरकार ने आयोग की रिपोर्ट नही मानी। 

आज भी नेताजी सुभाषचंद्र बोस की मृत्यु एक अनसुलझा रहस्य है,  जो शायद हमेशा एक रहस्य बनकर ही न रहे, लेकिन अपने कार्यो से नेताजी ने एक आम भारतीय के हृदय में अपनी जो जगह बनाई है, वो सदा रहेगी। 

निष्कर्ष :- तो आज के इस लेख में हमने आपको बताया सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय (Subhas Chandra Bose Biography Hindi) के बारे में. उम्मीद करते है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी. अगर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करके जरूर बताइए. अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो रेटिंग देकर हमें प्रोत्साहित करें.

FAQ

Q : सुभाष चंद्र बोस का जन्म कहां हुआ था
Ans : कटक, उड़ीसा

Q : सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब हुआ था
Ans : 23 जनवरी 1897 को

Q : सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु कब हुई
Ans : 18 अगस्त 1945 को

Q : सुभाष चंद्र बोस कौन थे
Ans : स्वतंत्रता सेनानी

Q : सुभाष चंद्र बोस जयंती कब है
Ans : 23 जनवरी को

Q : सुभाष चंद्र बोस के कितने बच्चे थे
Ans : एक बेटी  

Q : सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि कब है?
Ans : 18 अगस्त

Q : सुभाष चंद्र बोस की पत्नी का नाम क्या है?
Ans : एमिली

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