15 अगस्त (स्वतंत्र दिवस) का इतिहास और महत्व, के बारे में, निबंध, कविता, भारत को कैसे मिली आजादी, इंडिपेंडेंस डे (15th August History In Hindi, independence day speech, Essay, Date, Facts)
Independence Day 2023:आजादी एक ऐसी अनमोल चिड़िया है, जिसको सभी पसंद करते है. आजादी किसे पसंद नहीं है। चाहे पशु पक्षी हो या मानव, सभी की इच्छा होती है कि उस पर किसी का अनावश्यक शासन न हो। अनावश्यक शासन यानि परतंत्रता अर्थात गुलामी एक ऐसा जहर है, जो किसी के जीवन को भी नर्क कर देता है और जब यह स्थिति एक बड़े से देश के साथ हो, वहां के नागरिको के साथ हो, तो फिर उस दुखदायी पल की कल्पना करने से भी भय महसूस होता है। जी हाँ, हम बात कर रहें है हमारी प्रिय मातृभूमि भारत की। भारत की उस दुःखद स्थिति और उस दुःखद स्थिति से बाहर आने की तारीख की, यानि 15 अगस्त की।
आज के इस लेख में हम आपको 15 अगस्त (स्वतंत्र दिवस) का इतिहास और महत्व (15 August History In Hindi) बताने जा रहे है जिसे समझाना आपके लिए बेहद जरुरी है. यह जानकरी आपको स्कूल में आयोजित प्रतियोगिता में भाग लेकर उसे सुसज्जित करने में सहायता प्रदान करेगा.
स्वतंत्रता दिवस का इतिहास (History of Independence Day)
भारत को अंग्रेजी शासन से जिस योजना के अधीन आजादी मिली थी उसे लार्ड माउंटबेटन योजना के नाम से जाना जाता है। उस समय भारत में लार्ड माउंटबेटन वाइसरॉय के पद पर था। ब्रिटेन की संसद के द्वारा नियुक्त वाइसरॉय ही उस समय भारत का प्रधान शासक कहलाता था उसी का शासन पुरे देश में चलता था।
दरअसल, भारत को आजाद करना अंग्रेजो की मज़बूरी बन गई थी। इसके अनेक कारण थे। जिसमें द्वितीय विश्वयुद्ध में ब्रिटेन सहित कई विकसित देशो की अर्थव्यवस्था का तहस नहस होना, अमेरिका का सुपर पॉवर बनना, ब्रिटेन का आर्थिक रूप से कमजोर होना, भारत में आजादी के लिए आंदोलनकारियों द्वारा विदेशी सत्ता का हर ओर घोर करना, सुभाष चंद्र बोस के द्वारा संघटित शक्ति से अंग्रेजो पर धावा बोलना, अंग्रेजों को अब भारत से अधिक आर्थिक लाभ का न होना और भारत की सभी जनमानस के द्वारा अंग्रेजी सत्ता का हर मोर्चे पर हिंसक विरोध करना मुख्य कारण कहे जा सकते है। दूसरी ओर ब्रिटेन अब इतना शक्तिशाली नहीं रह गया था कि अब वो भारत जैसे बड़े देश पर उतनी दूर से आकर शासन चला सकें। परिणामतः ब्रिटेन की संसद ने नवनियुक्त वायसरॉय लार्डमाउंबेटन के लिए एक आदेश पारित किया था जिसमें कहा गया था कि 30 जून, 1948 को भारत के समक्ष सत्ता हस्तांतरण की घोषण कर दें।
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इसलिए अब यह तय हो गया था कि 1948 के मध्य तक भारत आजाद हो जाएगा। लेकिन उस समय जिन्ना के नेतृत्व में हो रहे अलग मुस्लिम देश पाकिस्तान बनाने के कारण पुरे देश में मुस्लिम के द्वारा बड़े पैमाने पर दंगे किये जा रहे थे। वे हिंसक आन्दोलन कर रहे थे, जिसमें वे हिन्दुओ को लगातार निशाना बना रहे थे। देश में हर ओर अशांति ही अशांति थी। ईधर अंग्रेजी सरकार इन आंदोलन से अपने आपको दूर रखे हुए थी। उन्हें भारत के विभाजन में न तो कोई आपत्ति थी और न ही खुली समर्थन। क्योकि अब अंग्रेजी सरकार को भारत में शासन चलाने में अधिक रूचि नहीं रह गई थी। परिणामतः लार्डमाउंटबेटन ने तय समय से पहले ही भारत को आजाद (independence day in hindi) करने की घोषणा कर दी।
15 अगस्त 1947 से पहले भारत के गुलामी के वो दिन
भारत 15 अगस्त, 1947 से पहले अंग्रेजों के हाथों गुलाम था और देश की शासन व्यवस्था का सारा बागडोर अंग्रेजो के द्वारा चलाया जा रहा था। लेकिन देश के महान सपूत व आजादी के दीवाने भी कब तक पीछे रहने वाले थे। वे भी अपनी जान परिवार की परवाह किये ही लगातार अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। देश में आजादी के लिए लगातार आंदोलन हो रहे थे। उधर अंग्रेज अपनी क्रूरतापूर्ण दमनकारी नीतियों से उन्हें दबाने में लगे थे। मूली गाजर की तरह अंग्रेज आंदोलनकारियों की हत्या कर रहे थे। उन्हें तरह तरह की यातनाएं दी जा रही थी। उन्ही यातनाओ में, जिसको हम किसी मानव को दी जाने वाली यातनाओं की पराकाष्ठा भी कह सकते है, वह था – ‘काला पानी की सजा’।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार स्वतंत्रता सेनानियों पर लगातार कहर ढाये जा रही थी। अंग्रेजी सरकार अपने इसी घृणित उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारत के महान वीर सपूतो को काला पानी की सजा दिया करती थी। अंग्रेजो ने भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर सेल्युलर जेल बनाया था, इसी सेल्युलर जेल को काला पानी के नाम से जाना जाता था। यहाँ पर कैदियों को एक से बढ़कर एक यातनाएं दी जाती थी। देश के महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर भी वहां की सजा काट चुके थे। वास्तव में, वो सेल्युलर जेल एक ऐसा जेल था, जो कैदी को हर पल मौत से भी बढ़कर यातना देता था।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रजो सरकार ने लाखो भारतीय आंदोलनकारियों को फांसी दे दी। अनेको को बिना किसी न्याय प्रक्रिया के ही फांसी दे दी गई। वैसे कानून भी उसी का था, अदालत भी उसी की थी और शासन की बागडोर भी उसी का था। इसलिए वो जो भी करता, वही कानून होता था। अनेको भारतीय आंदोलनकारियों को तोपों के मुँह पर बांधकर उड़ा दिया गया और कई ऐसे थे जिन्हे तिल तिल कर मरने के लिए भेज दिया गया था, जो काला पानी के नाम से जाना जाता था।
अंग्रेजो ने भारत को 15 अगस्त को ही क्यों आजाद किया
लार्ड माउंटबेटन ने तय समय से पहले ही यानि 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजाद करने की घोषण कर दी। लार्ड माउंटबेटन के द्वारा 15 अगस्त को चुनने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण भी था। यह लार्ड माउंटबेटन की व्यक्तिगत सोच थी। दरअसल लार्ड माउंटबेटन इस तिथि (तारीख) को शुभ मानते थे। इसके अलावे लार्ड माउंटबेटन का इस तारीख को शुभ मानने का एक दूसरा कारण भी था और वो कारण था, द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान के द्वारा ब्रिटेन के सामने 15 अगस्त, 1945 की तारीख को आत्मसमर्पण करना। बस इन्ही कारणों से लार्ड माउंटबेटन ने भारत को आजाद करने के लिए इस तारीख को चुना।
लेकिन भारत में ज्योतिष शास्त्र के जानकार इस तारीख के विरोध में थे। कारण यह था कि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यह एक अशुभ दिन था और इस दिन देश की आजादी भविष्य के लिए अमंगलकारी था। इस कारण ज्योतिषियों में इस तारीख को लेकर घोर नाराजगी थी। कहा जाता है लार्ड माउंटबेटन भारत के ज्योतिषियों की नाराजगी से उत्पन्न परिस्थिति से अवगत था मगर वो अपनी सोच पर अड़ा था। कई लोगो ने माउंटबेटन को 15 अगस्त, के बदले कई अन्य तारीख को विकल्प के रूप में सुझाएँ मगर लार्ड माउंटबेटन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा।
अंत में, ज्योतिषियों ने ही दूसरा उपाय निकाला। ज्योतिषियों ने लार्ड माउंटबेटन जो 14 और 15 अगस्त की मध्यरात्रि का देश की सत्ता हस्तांतरित करने का सुझाव दिया। इसके लिए ज्योतिषियों ने उन्हें समझाया कि अंग्रेजी में समय का बदलना हिंदी से अलग होता है जैसे हिंदी में दिन की शुरुआत जहाँ सूर्योदय से मानी जाती है तो वही अंग्रेजी में रात के 12 बजे से ही अगले दिन की शुरुआत हो जाती है और कैलेंडर की तारीख बदल जाती है। दरअसल 14 अगस्त की मध्य रात्रि 11 बजकर 51 मिनट से 15 अगस्त की आरम्भिक समय रात्रि 12 बजकर 15 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त था और यह मुहूर्त ज्योतिषशास्त्र में शुभ माना जाता है। इसलिए उस 24 मिनट में ही सत्ता का हस्तांतरण की प्रक्रिया जैसे भाषण व हस्ताक्षर आदि करना तय किया गया। ज्योतिषियों के इस दबाव से माउंटबेटन सहित भारतीय नेता भी सहमत हो गए। परिणामतः 200 वर्षो तक चली आजादी की लड़ाई का सुखद फल मात्र 24 मिनट के अंदर मिल गया और भारत को 14 अगस्त की मध्यरात्रि और 15 की तारीख की शुरुआत में ही आजादी मिल गई। इस तरह भारत को 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों से आजादी मिली। अगले सुबह झंडा फहराया गया और तभी से 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा और प्रत्येक प्रधानमन्त्री प्रत्येक 15 अगस्त पर देश की आन – बान – शान तिरंगा को फहराने लगे। देश भर के सभी सरकारी, प्राइवेट स्कूलों, कॉलेजों व अन्य सस्थानो में राष्ट्रीय कार्यक्रमों का आयोजन किया जाने लगा, उत्सव आयोजन किये जाने लगे। 15 अगस्त को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
स्वतंत्रता दिवस का महत्व
200 वर्षो तक चले आजादी के संघर्ष के बाद भारत आजाद हुआ। इसके लिए अनगिनत स्त्री-पुरुष अंग्रेजो के हांथो घोर यातना सहे, मृत्यु को गले लगाया, घर परिवार का त्याग किया, कई सेनानियों ने काले पानी की सजा काटी मगर फिर भी अंग्रेजो से लड़ते रहे। कारण क्या था – कारण एक था – देश की आजादी। आज हम जिस आजादी से जीवन जी रहे है ये सब हमारे पूर्वजो के महान त्याग, उन महान स्त्री-पुरुषों के बलिदान के कारण सम्भव हुआ है। भारत का विश्व के उन देशो में प्रथम स्थान आता है जिसकी आजादी के लिए सबसे अधिक जाने गई, लम्बे समय तक यातनाएं सही।
भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, खुदीराम, भगत सिंह, लाला लाजपत राय, वीर सावरकर जैसे अनेकोनेक महान क्रांतिकारियों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। ऐसे अनेक अनेक स्त्री-पुरुष थे, जिनके नाम किसी इतिहास के पन्ने पर दर्ज नहीं है। वे गुमनाम है मगर उन्होने जो किया, आज उन्ही के प्रयास के कारण हम सभी आजादी का आनंद ले रहें है। वे लोग भले ही किसी इतिहास के पन्ने में नहीं है मगर उनके अलमोल त्याग व बलिदान निश्चित रूप से हम सभी भारतीयों के ह्रदय में हमेशा था और आगे भी रहेगा। जय हिंदी।
निष्कर्ष – आज के इस लेख में हमने आपको 5 अगस्त (स्वतंत्र दिवस) का इतिहास और महत्व (15 August History In Hindi) के बारें में बताया. उम्मीद करते है आपको यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी. अगर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करके जरूर बताइए. अगर आपको लेख अच्छा लगा हो तो रेटिंग देकर हमें प्रोत्साहित करें.
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