स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय, जीवनी, इतिहास, बायोग्राफी, हिस्ट्री,निबंध, विचार, अनमोल वचन, जयंती, कोट्स, के बारे में, सुविचार, जन्म, मृत्यु ,पुण्यतिथि, भाषण, आत्मचरित्र, एजुकेशन, पत्नी, परिवार, राष्ट्रीय युवा दिवस, धर्म, जाति, घर, करियर, विवाह (Swami Vivekananda Biography Hindi, Wikipedia, Jayanti, Birthday, Quotes, Books, National Youth Day, Information, History, Religion, Cast, Marriage, Education, Essay, Death Anniversary,Born, Died, Death Reason)
आज अगर दुनिया के लोग हिंदू धर्म की मान्यताओं और शिक्षाओं के बारे में जानते हैं तो इसका बहुत बड़ा श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है. स्वामी विवेकानंद एक दार्शनिक, लेखक होने के साथ-साथ एक साधु थे, जिन्होंने वेदांत से पूरे पश्चिम को अवगत कराया। इसके पहले भारत में बहुत तेजी से धर्मांतरण हो रहे थे, ईसाई मिशनरी लोगों को बहका कर धर्मांतरण करने के लिए मजबूर कर रहे थे, लेकिन स्वामी विवेकानंद ने पूरे भारत में भ्रमण कर लोगों के ह्रदय में अपने धर्म के प्रति सम्मान और गर्व की भावना को जागृत किया।
विवेकानंद की विचारधारा भविष्य की थी आज भी जब युवा विवेकानंद के विचारों से परिचित होता है तो उसके अंदर जीवन के प्रति एक सकारात्मक भावना और काम के प्रति एक नया उत्साह भर जाता है। इसी विवेकानंद के जन्मदिवस 12 जनवरी को हर वर्ष युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। तो आज के इस लेख में हम आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekananda Biography in Hindi) के बारे में पूरी जानकरी देने वाले है.
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekananda Biography in Hindi)
नाम (Name) | स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) |
असली नाम (Real Name) | नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त |
जन्म तारीख (Date Of Birth) | 12 जनवरी 1863 |
राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) | 12 जनवरी |
जन्म स्थान (Place) | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल |
उम्र (Age) | 39 साल |
मृत्यु की तारीख (Date of Death) | 4 जुलाई 1902 |
मृत्यु स्थान (Place Of Death) | बेलूर मठ, हावड़ा |
धर्म (Religion) | हिन्दू धर्म |
गुरु (Guru) | रामकृष्ण परमहंस |
फिलोसिफी (Philosophy) | आधुनिक वेदांत, राज योग |
संस्थापक (Founder) | रामकृष्ण मिशन (1897), रामकृष्ण मठ, न्यूयॉर्क की वेदांत सोसाइटी |
शिक्षा (Educational Qualification) | बैचलर ऑफ़ आर्ट्स डिग्री (1884) |
स्कूल (School) | कलकत्ता मेट्रोपॉलिटन स्कूल |
कॉलेज (College) | प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता |
नागरिकता (Citizenship) | भारतीय |
साहित्यिक कार्य (Literary works) | राज योग (1896), कर्म योग (1896), भक्ति योग (1896), ज्ञान योग, माई मास्टर (1901), कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान (1897) |
भाषा (Languages) | हिंदी, इंग्लिश |
वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | अविवाहित |
स्मारक (Memorial) | बेलूर मठ. बेलूर, पश्चिम बंगाल |
स्वामी विवेकानंद का जन्म और आरंभिक जीवन (Swami Vivekananda Birth and Early Life)
स्वामी विवेकानंद का जन्म मकर संक्रांति के दिन 12 जनवरी 1863 को भारत के कोलकाता में उनके पैतृक घर में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था। इनके पिताजी विश्वनाथ दत्तात्रेय जो कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था जो कि ग्रहणी थी और बहुत ही धर्म परायण थे। इनके पिता का स्वभाव काफी तर्कशील था।
अपने कुल में साधु बनने वाले विवेकानंद अकेले व्यक्ति नहीं थे विवेकानंद के पहले उनके दादाजी दुर्गाचरण दत्ता ने मात्र 25 वर्ष की आयु में ही गृहस्थ जीवन से संन्यास ले लिया और साधु बन गए। क्योंकि मां काफी धर्म परायण थी इसलिए इन्हें शुरू से ही बहुत अध्यात्मिक माहौल में रखा गया और इसका असर यह हुआ कि विवेकानंद की रूचि शुरू से ही अध्यात्म की तरफ बहुत ज्यादा थी। इनकी रूचि साधुओं में बहुत ज्यादा दिखाई देती खासकर ऐसे साधु जो अपना घर बार छोड़कर घुमंतू साधु बन चुके हैं। विवेकानंद का स्वभाव बचपन से ही बहुत चंचल था इसके चंचल स्वभाव से इनकी मां बड़ी परेशान होती, तभी जब यह बहुत ज्यादा शैतानी करते तो इनकी मां हाथ में जल लेकर शिव शिव का जप करके इनके सर पर डाल दी थी जिसके बाद इनके अंदर एक अलग प्रकार की शांति आ जाती है. विवेकानंद की रुचि शुरू से ही ध्यान में थी, वे राम सीता शिव और हनुमान जी की मूर्ति और फोटो के सामने ध्यान करने बैठते थे
स्वामी विवेकानंद का जन्म और शिक्षा (Swami Vivekananda Birth And Education)
जब स्वामी विवेकानंद केवल 8 वर्ष के थे, तब उन्होंने मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूशन में अपनी पढ़ाई शुरू की। 1879 में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। यहीं परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने 1884 में कला स्नातक की डिग्री पूरी की। उन्हें दर्शन धार में इतिहास सामाजिक विज्ञान कला साहित्य जैसे तमाम विषयों के अध्ययन में काफी रुचि थी. एक ओर विजय पश्चिमी दर्शन और इतिहास का अध्ययन करते थे तो दूसरी ओर रामायण, भागवत, गीता, वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत जैसे विषयों का गहन अध्ययन करते थे। एक ओर उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में भी महारत हासिल थी, तो दूसरी ओर वे खेलों में सक्रिय रूप से भाग लेते थे।
स्वामी विवेकानंद का सफ़र (Swami Vivekananda Life Journey)
स्वामी विवेकानंद के आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत 1880 में उस वक्त हुई जब वो साधारण ब्रह्मा समाज के सदस्य बने. साधारण ब्रह्म समाज जो कि ब्रह्म समाज से ही टूट कर बना था क्योंकि इसकी विचारधारा, ब्रह्म समाज की विचारधारा से थोड़ी अलग थी। साधारण ब्रह्म समाज में पश्चिमी दर्शन को भी सम्मिलित किया गया था. साधारण ब्रह्म समाज ने हिंदुओं के केंद्रीय मान्यताओं जैसे कर्म का सिद्धांत, पुनर्जन्म, वेदों का अधिकार एवं बहुदेववाद जैसे तमाम विचारधारा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया।
इन्होंने हिंदुओं की मान्यताओं में ईसाई धर्म की मान्यता मिश्रित करने का पूरा प्रयास किया और उसे ज्यादा सर्वश्रेष्ठ बताया। अब चूंकि विवेकानंद भी एक तर्कशील प्राणी थे, इसलिए उन्हें पश्चिम दर्शन ज्यादा तर्कसंगत लगता, इसलिए अपने शुरुआती आध्यात्मिक सफर में वह एक नास्तिक थे. पर उनकी भूख इतनी तीव्र थी कि यह साधारण दर्शन उनके लिए पर्याप्त ज्ञान नहीं था, इसलिए वह किसी निर्णय पर पहुंचने से पहले और खोज करना चाहते थे और यही पर उनका एक नैसर्गिक प्रश्न जो बहुत ज्यादा प्रचलित है वह आया कि “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”
गुरु रामकृष्ण से पहली मुलाकात (Ramakrishna Paramahamsa and Swami Vivekananda)
1882 में स्वामी विवेकानंद पहली बार दक्षिणेश्वर गए और वहां उनकी मुलाकात स्वामी रामकृष्ण से हुई। विवेकानंद का मुख्य उद्देश्य रामकृष्ण से मिलना था। यहाँ रामकृष्ण से मिलने के बाद, कई विषयों पर चर्चा हुई, रामकृष्ण ने अपने दर्शन के बारे में बात की, जिसे विवेकानंद ने ‘कल्पना की कल्पना’ और ‘मतिभ्रम’ कहकर नकार दिया।
क्योंकि विवेकानंद साधारण ब्रह्मा समाज के एक सदस्य थे, इसलिए उनकी विचारधारा भी वैसे ही थी। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के बहु दैववाद, काली पूजा, मूर्ति पूजा जैसे तमाम विषयों का जोरदार खंडन किया और उन्हें सिर्फ एक अंधविश्वास बताया, लेकिन रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद के सभी तर्कों को बहुत अच्छे से जवाब दिया और उन्हें सभी दिशाओं से सोचने के लिए प्रेरित किया। हालांकि इस पहली मुलाकात में विवेकानंद ने रामकृष्ण को गुरु के रूप में स्वीकार नहीं किया, लेकिन उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए। इसलिए वे समय-समय पर रामकृष्ण परमहंस से मिलने दक्षिणेश्वर आते थे।
स्वामी विवेकानंद के पिता की मृत्यु 1884 में हो जाती है, जिसके बाद उनके पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है। कर्ज का बोझ इतना था कि सबका जीना मुश्किल हो गया था, विवेकानंद आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे, रिश्तेदार भी उन पर पुश्तैनी घर छोड़ने का दबाव बना रहे थे. ऐसे में विवेकानंद के सुकून की जगह दक्षिणेश्वर मठ में राम कृष्ण से मुलाकात ही बनी।
रामकृष्ण ने उन्हें कई बार सलाह दी कि वह मां काली से धन मांग ले लेकिन विवेकानंद ने 3 बार मां काली के समक्ष प्रार्थना की, लेकिन एक भी बार उन्होंने धन की कामना नहीं की। वह हर बार मां काली से उन्हें ज्ञान देने की प्रार्थना करता था। इस तरह धीरे-धीरे स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के दर्शन और विचारों से प्रभावित होने लगे। उन्हें उनकी सारी बातें समझ में आने लगीं और फिर वह समय आया जब स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु स्वीकार कर लिया, क्योंकि मां काली से स्वामी विवेकानंद का साक्षात्कार कराया था.
रामकृष्ण मठ की स्थापना (Establishment of Ramakrishna Math)
रामकृष्ण परमहंस गले के कैंसर से पीड़ित थे और इसी बीमारी के कारण 1886 में कोसीपुर में उनकी मृत्यु हो गई। उन्होंने अपनी मृत्यु से पूर्व अपने शिष्य को भगवा वस्त्र देकर कहा था कि मानव सेवा ही ईश्वर की सबसे बड़ी पूजा है। इसके अलावा सभी शिष्यों को मठ के बाकी अन्य शिष्यों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई।
स्वामी विवेकानंद को भी सभी शिष्यों का मुखिया मानने का आदेश दिया गया था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद मठ बिखरने लगा। रामकृष्ण परमहंस में आस्था रखने वाले लोगों ने दान देना बंद कर दिया, ऐसे में शिष्यों का जीवन बहुत कठिन हो गया। दान न मिलने से उन्हें वर्तमान मठ का किराया देना भी बड़ा मुश्किल पड़ता था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने बारानगर में एक नया घर लिया, जो देखने में तो बहुत ही जर्जर था, लेकिन किराया बहुत कम था, जिसे मिली हुई भिक्षा से आसानी से दिया जा सकता था और यही से रामकृष्ण मठ की स्थापना हुई।
स्वामी विवेकानंद का भारत भ्रमण (Swami Vivekananda’s Travels in India)
सन 1888 में स्वामी विवेकानंद अपना मठ छोड़ देते हैं और एक घुमंतू साधु का जीवन जीने लगते हैं। उनका न कोई निवास स्थान था, न कोई कीमती वस्तु, वे सब प्रकार से स्वतंत्र थे। संपत्ति के नाम पर उनके पास केवल एक कमंडल और दो पुस्तकें थीं, जिनमें से एक श्रीमद्भगवद्गीता और दूसरी द इमिटेशन ऑफ क्राइस्ट थी। पूरे 5 वर्षों तक स्वामी विवेकानंद ने ऐसा ही जीवन व्यतीत किया। वह देश के अलग-अलग हिस्सों में जाते, और वहां के धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों के बारे में समझते, लोगों के दुख दर्द को करीब से महसूस करते। उन्होंने हर धर्म के लोगों से मुलाकात की और उनसे जो कुछ सीखने लायक था, वह सीखा।
इस दौरान उनके आजीविका का एकमात्र साधन भिक्षा था। पूरे भारत की यात्रा करने के लिए उन्होंने पैदल मार्ग को चुना लेकिन कहीं-कहीं श्रद्धालुओं की तरफ से कुछ मदद मिली तो उसे भी स्वीकार कर लेते। इस प्रकार पूरे 5 वर्ष भारत भ्रमण करने के बाद 31 मई, 1893 को वे पहली बार विदेश यात्रा पर निकले। यह विदेश यात्रा शिकागो के लिए थी। जहां पर उन्होंने विश्व धर्म सम्मेलन में अपना बहुत ही ओजस्वी वक्तव्य दिया था।
शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन (Swami Vivekananda’s chicago Dharma Sammelan)
1893 से 1897 तक विवेकानंद ने पहली बार पश्चिमी देशों की यात्रा की। इस यात्रा में चीन, जापान, कनाडा होते हुए वो 30 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंचे जहां उन्होंने 11 सितंबर 1893 को धर्म संसद में भाषण दिया. जैसे ही उन्होंने मंच पर खड़े होकर “अमेरिका की बहनों और भाइयों” कहा तो मंच के सामने बैठी 7000 लोगों ने खड़े होकर तालियों से उनका सम्मान किया और पूरे 2 मिनट से भी ज्यादा समय तक तालियां बजाई। इस मंच से इनका भाषण इतना ओजस्वी था कि सभी न्यूज़पेपर में स्वामी विवेकानंद की प्रशंसा की गई। स्वामी विवेकानंद के भाषण को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया, अपने वक्तव्य में स्वामी विवेकानंद ने धार्मिक सहिष्णुता की बात कही और उन्होंने कहा कि रास्ते कई होते हैं पर मंजिल सबकी एक है, ठीक वैसे ही जैसे अलग-अलग नदियां जाकर समुद्र में ही मिलती हैं।
विवेकानंद की प्रसिद्धि बढ़ने से हजारों लोगों में धर्म और उसके चिंतन संबंधी नए विचारों ने जन्म लिया. जिसके बाद विवेकानंद ने कई व्याख्यान से उन सभी लोगों के शंकाओं का निवारण किया। पूरे 2 साल तक अमेरिका में व्याख्यान देने के बाद 1894 में होने वेदांत सोसाइटी की स्थापना न्यूयॉर्क में की।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना (Ramakrishna Mission and Swami Vivekananda)
यूरोप में अपना काम पूरा करने के बाद, वह 15 जनवरी 1897 को यूरोप से भारत के लिए रवाना हुए। यहां श्रीलंका के कोलंबो में उनका भव्य स्वागत किया गया, जिसके बाद वे कोलकाता के लिए रवाना हो गए. 1 मई 1897 को कोलकाता में ही स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका प्रमुख उद्देश्य वेदांत की शिक्षा को बढ़ाने के अलावा हिंदू धर्म में वर्णित 4 योग ज्ञान, भक्ति, कर्म और राजयोग की समुचित व्याख्या करना था।
विवेकानंद ने अपने जीवनकाल में कई लोगों को प्रभावित किया, जिनमें से एक थे जमशेदजी टाटा, जिन्होंने टाटा कंपनी की शुरुआत की थी। 1993 में जब विवेकानंद पश्चिम की यात्रा कर रहे थे तब इनकी मुलाकात जमशेदजी से हुई थी, जिस वक्त जमशेदजी ने अपने भविष्य के प्रोजेक्ट के बारे में विवेकानंद से चर्चा की थी तब विवेकानंद ने इनका मार्गदर्शन किया था।
स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा (Swami Vivekananda and America)
जून 1899 में, स्वामी विवेकानंद एक बार फिर स्वामी तुरीयानंद और बहन निवेदिता के साथ ब्रिटेन के लिए रवाना हुए । यहां कुछ समय व्याख्यान देने के बाद वे अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने सैन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में वेदांता सोसाइटी की स्थापना की। लेकिन उन्होंने शांति आश्रम भी शुरू किया। अमेरिका में अपना काम खत्म करने के बाद वे पेरिस के लिए रवाना हो गए। वर्ष 1900 में पेरिस में ही उन्होंने लिंगम की पूजा और श्रीमद्भगवद्गीता की प्रामाणिकता के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। इसके बाद एथेंस, मिस्र, इस्तांबुल जैसे कई देशों की यात्रा करने के बाद 9 दिसंबर 1900 को वे भारत लौट आए।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु (Swami Vivekananda)
4 जुलाई, 1902 को जिस दिन स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि ली थी, उस दिन कोई अंदाजा नहीं लगा सकता था कि आज स्वामी विवेकानंद आखिरी बार इसी अवस्था में देखे जा रहे हैं। वह सुबह उठने के बाद बेलूर मठ में उसी प्रकार ध्यान करते जैसे पहले हमेशा करते थे। इसके बाद अपने शिष्यों को शुक्ल यजुर्वेद, योग, संस्कृत और व्याकरण जैसे कुछ विषयों के बारे में पढ़ाया और शाम 7:00 बजे वे ध्यान करने के लिए अपने कमरे में चले गए और सभी को परेशान न होने के लिए कहा। लेकिन काफी देर तक बाहर न आने पर जब उनके शिष्यों ने कमरे में देखा तो पाया कि स्वामी की मृत्यु 9:20 बजे हुई थी। जांच करने पर पता चला कि उसके सिर के मस्तिष्क की एक रक्त वाहिका फट गई थी।
योग के जानकार ने कहा कि असल में वह ब्रह्मरंध्र थी, जहां स्वामी विवेकानंद ने अपने प्राणों को स्थापित किया और उसके बाद उस रक्त वाहिका को भेदते हुए प्राण सिर से निकल गए। योग में किसी योगी की सर्वोच्च स्थिति यही है जिसे महासमाधि कहा जाता है।
निष्कर्ष :- तो आज के इस लेख में हमने आपको बताया स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekananda Biography in Hindi) के बारे में. उम्मीद करते है आपको यह जानकरी जरुर पसंद आई होगी.
FAQ
Q : स्वामी विवेकानंद जयंती कब है
Ans : 12 जनवरी को
Q : राष्ट्रीय युवा दिवस कब मनाया जाता है?
Ans : 12 जनवरी को
Q : 12 अगस्त को कौन सा दिवस मनाया जाता है?
Ans : राष्ट्रीय युवा दिवस
Q : विवेकानंद जी का नारा क्या था?
Ans : उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत
Q : स्वामी विवेकानंद ने शादी क्यों नहीं की
Ans : सांसारिक भोग-विलास से ऊपर उठकर जीने की उनकी चेतना जैसे-जैसे आकार लेने लगी, वैसे-वैसे वे विवाह प्रस्तावों को ‘ना’ कहते रहे
Q : स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण क्या है?
Ans : दिमाग की नस फटने की वजह से
Q : स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे
Ans : रामकृष्ण परमहंस
Q : स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ था
Ans : 12 जनवरी 1863 को
Q : स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि कब है?
Ans : 4 जुलाई
Q : स्वामी विवेकानंद की मृत्यु कब हुई थी
Ans : 4 जुलाई, 1902 को
Q : स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या था
Ans : नरेंद्रनाथ विश्वनाथ दत्त
Q : स्वामी विवेकानंद ने कितने घंटे भाषण दिया था
Ans : शिकागो में 11 सितंबर 1983 को विश्व धर्म सम्मेलन में कई घंटो तक भाषण दिया था.
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