रॉयल एनफील्ड की फर्श से अर्श तक की कहानी 

Photo Credit - Royal-Enfield 

कई सालो से बुलट की डुग डुग डुग की आवाज मोटरसाइकिल की पहली पहचान बन गई है.

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1955 में भारतीय सेना बुलट को पेट्रोलिंग के लिए काम में लिया करती थी. एक समय था एनफील्ड जब विदेशी हुआ करती थी लेकिन आज स्वदेशी है.

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एक समय ऐसा था जब रॉयल एनफील्ड बर्बाद होने की कगार पर थी. लेकिन 2004 में सिद्धार्थ लाल आयशर मोटर्स के सीईओ बने. 

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उस वक्त आयशर मोटर्स के अंतर्गत 15 कंपनी बिजनेस कर रही थी लेकिन सिद्धार्थ ने 13 कंपनी को बंद कर पूरा फोकस रॉयल एनफील्ड पर किया.

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हार्ले डेविडसन के मेनेजर और डुकाटी के एक सदस्य को टीम में जोड़ा और रणनीति तैयार की.

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21 से 35 साल की उम्र के लोगो को ध्यान में देते हुए एनफील्ड का मेकओवर बदला. रंगों का खास ध्यान दिया गया.

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इसमें क्लासिक 350, बुलेट, इंटरसेटर 650, हिमालयन, कॉन्टिनेंटल जीटी 650, मेंटॉर 350, स्क्रेम 411 मॉडल निकाले.  

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2021 और 22 में 5 लाख 96 हज़ार रॉयल एनफील्ड बेचीं गई और रॉयल एनफील्ड ऑफ़ द ईयर चुनी गई.

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